पृथ्वी पर जीवन के लिए नदियां आवश्यक हैं। यह मानव सभ्यता के विकास और समृद्धि में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती रही हैं। कई सभ्यताएं नदियों के किनारे विकसित हुईं। हालांकि जलवायु परिवर्तन के कारण कई नदियां संकट में है। कुछ नदियों में पानी की मात्रा कम हो रही है। इसी वजह से, वैज्ञानिकों ने दुनिया की नदियों में मौजूद पानी की मात्रा का पता लगाने के लिए कई अध्ययन किए हैं।
नासा द्वारा किए गए एक ताजा शोध के मुताबिक 1980 से 2009 तक धरती पर बहने वाली नदियों में पानी की कुल मात्रा औसतन 539 घन मील (2246 घन किलोमीटर) थी। यह मिशिगन झील (अमेरिका) के पानी के आधे और सभी ताजे पानी के लगभग 0.006 फीसदी के बराबर है। और वैश्विक मात्रा का 2.5 फीसदी है। यह अध्ययन दुनिया की 30 लाख नदियों पर किया गया है।
नासा की जेट प्रोपल्शन प्रयोगशाला के शोधकर्ता डॉ. सेड्रिक डेविड और उनके सहयोगियों ने इस अध्ययन के लिए एक नई तरीका अपनाया। इस तरीके में दुनिया भर की लगभग 30 लाख नदी की धाराओं को मापने वाले यंत्रों के आंकड़ों को कंप्यूटर मॉडल के साथ मिलाया गया। यह अध्ययन नेचर जियोसाइंस जर्नल में प्रकाशित हुआ है।
अध्ययन में पाया गया कि अमेजन नदी का घाटी वह क्षेत्र है जहां सबसे ज्यादा पानी जमा रहता है। अमेजन नदी में लगभग 850 घन किलोमीटर पानी है, जो दुनिया भर के कुल पानी का लगभग 38% है। इसी घाटी से हर साल सबसे ज्यादा पानी 6,789 घन किलोमीटर समुद्र में भी जाता है। यह वैश्विक महासागरीय निर्वहन का 18% है, जो 1980 से 2009 तक औसतन 37,411 घन किमी प्रति वर्ष था। इसके बाद दक्षिण अमेरिका में अमेजन नदी के उत्तर में बहने वाली नदियों ओरिनोको, कैटैटुम्बो का स्थान आता है, जिनका निर्वहन लगभग 6% है। कॉन्गो नदी का निर्वहन 6% और गंगा-ब्रह्मपुत्र नदी प्रणाली 5% है। समुद्र में पानी छोड़ने की दर में सबसे अधिक बदलाव अमेजन, नील, ला प्लाटा और कॉंगो नदी घाटियों में पाया गया।
चूँकि नदी का बहाव नेगेटिव यानी उल्टा बहाव संभव नहीं हो सकता – अध्ययन के नजरिए से ऊपर की ओर प्रवाह नहीं होता है, यह संभव है कि कुछ नदियों से जितना पानी अंदर गया उससे कम पानी बाहर आया हो। यही शोधकर्ताओं ने कोलोराडो, अमेजन और ऑरेंज नदी घाटियों के कुछ हिस्सों, साथ ही दक्षिण-पूर्वी ऑस्ट्रेलिया के मुर्रे-डार्लिंग बेसिन में पाया। इससे पता चलता है कि इंसान ज्यादा मात्रा में इन नदियों का पानी इस्तेमाल कर रहे हैं। ये बताता है कि इंसानों का इन नदियों पर प्रभाव पड़ रहा है, जिससे पर्यावरण पर बोझ बढ़ सकता है और भविष्य में पानी की कमी भी हो सकती है।
अध्ययन के मुताबिक, नदियों से समुद्र में कितना पानी बहता है, इसका कई बार अनुमान लगाया लेकिन नदियों में कितना पानी जमा (स्टोरेज) होता है इसका अनुमान अनिश्चित रहा है। शोधकर्ताओं का इस बारे में कहना था कि धरती पर कितना पानी है हमेंं नहीं पता है। जनसंख्या वृद्धि और जलवायु परिवर्तन इसको और जटिल बना रहे हैं। जो नदिया मानव आबादी से दूर हैं उनके अवलोकन की कमी है जिस कारण बेहतर अनुमान लगाने में मुश्किलें आती हैं। एक और बात है कि छोटी-छोटी नदियों के जल स्तर और प्रवाह की निगरानी रखने वाले स्ट्रीम गेज की संख्या बड़ी नदियों की तुलना में काफी कम है। लिहाजा नदियों में बहने वाला बारिश का पानी और बर्फ से परिवर्तित पानी का आकलन करना मुश्किल होता है।
भारत में जल संकट को लेकर मार्च में केंद्रीय जल आयोग ने एक रिपोर्ट जारी किया था। रिपोर्ट में गंगा, नर्मदा, तापी, ब्रह्मपुत्र, गोदावरी, सिंधु, पेन्नार, साबरमती,महानदी, कावेरी समेत कई नदियों के जलस्तर में तेजी से गिरावट को दर्शाया गया था। रिपोर्ट के अनुसार, भारत के 150 प्रमुख जलाशयों में उनकी कुल क्षमता से 36% कम पानी है। वहीं 86 जलाशयों में पानी 40% या उससे कम पानी है। इन जलाशयों में कुल उपलब्ध जल भंडार 8.865 बिलियन घन मीटर (BCM) है, जो उनकी कुल क्षमता का केवल 17 प्रतिशत है। यह आंकड़ा पिछले साल इसी अवधि (29 प्रतिशत) और इसी अवधि के दस साल के औसत (23 प्रतिशत) की तुलना में काफी कम है।
रिपोर्ट में बताया गया कि दक्षिणी क्षेत्र में कम जल भंडार की स्थिति सूखे की बिगड़ती स्थिति और इन राज्यों में सिंचाई, पेयजल आपूर्ति और पनबिजली उत्पादन के लिए संभावित चुनौतियों का संकेत देती है। इसके विपरीत, असम, ओडिशा और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों वाले पूर्वी क्षेत्र में पिछले साल और दस साल के औसत की तुलना में जल भंडार स्तर में सकारात्मक सुधार हुआ है। हालांकि गंगा नदी बेसिन में सिर्फ 41.2 फीसदी पानी ही मौजूद है। जबकि नर्मदा में 46.2 प्रतिशत, गोदावरी में 34.76 प्रतिशत , महानदी में 49.53 फीसदी , ताप्ती में 56 प्रतिशत और साबरमती में 39.54 फीसदी पानी की कमी है।