टेस्ला के सीईओ एलन मस्क इसी महीने भारत दौरे पर आने वाले हैं। मस्क की यात्रा से पहले इसकी चर्चा खूब है कि वह इस यात्रा के दौरान अपने सैटेलाइट-आधारित इंटरनेट सेवा स्टारलिंक के भारत में शुरू करने की घोषणा कर सकते हैं। न्यूज एजेंसी IANS के अनुसार एलन मस्क की भारत यात्रा से पहले स्टारलिंक को कथित तौर पर संचार मंत्रालय से अस्थायी मंजूरी मिल भी गई है।
रिपोर्ट के मुताबिक अनुमोदन प्रक्रिया इस समय संचार मंत्री अश्विनी वैष्णव के डेस्क पर है और कुछ सुरक्षा मुद्दों पर गृह मंत्रालय से अंतिम मंजूरी का इंतजार है। आईए जानते हैं कि स्टारलिंक इंटरनेट आखिर क्या है, कैसे यह काम करता है और कैसे यह तकनीक आगे चलकर भारत के लिए अहम साबित हो सकता है। साथ ही इसकी स्पीड और कीमतों की भी बात करेंगे।
Starlink इंटरनेट सर्विस क्या है?
इसकी आधिकारिक वेबसाइट के अनुसार स्टारलिंक दरअसल सैटेलाइट इंटरनेट नेटवर्क है जो धरती की सतह के बेहद करीब (550 किमी ऊपर) चक्कर काट रहे हजारों कृत्रिम उपग्रहों पर निर्भर है। इस तरह से ये सभी सैटेलाइट पूरी धरती को कवर करते हैं। ये सैटेलाइट दूसरे अन्य सैटेलाइट की तुलना में पृथ्वी की बेहद निचली कक्षा में हैं और इसलिए हाई स्पीड ब्रॉडबैंड इंटरनेट सर्विस मुहैया कराते हैं।
सैटेलाइट इंटरनेट (स्टारलिंक) कैसे काम करता है?
सैटेलाइट इंटरनेट की तकनीक को आसान भाषा में समझे तो आपका इंटरनेट सेवा प्रदाता मसलन स्टारलिंक या कोई अन्य सिग्नल को उपग्रह को भेजता है। यह सिग्नल सैटेलाइट द्वारा वापस धरती पर भेजा जाता है जो आपके घर में लगा एंटीना रिसीव करता है। एंटीना से यह सिग्नल आपके घर में लगे मॉडेम को भेजा जाता है, और इस तरह इंटरनेट काम करता है।
एलोन मस्क की कंपनी स्पेसएक्स (SpaceX) के इस दूरसंचार परियोजना का लक्ष्य अगले कुछ दशकों में कुल 42,000 छोटे-छोटे उपग्रहों को अंतरिक्ष में लॉन्च भेजना है, ताकि पूरी पृथ्वी कवर की जा सके। स्वतंत्र अनुसंधान डेटाबेस ब्रॉडबैंड नाउ (BroadbandNow) के अनुसार, अभी इस परियोजना के लिए भेजे गए कुल सैटेलाइट की संख्या करीब 4300 है। वैसे बता दें कि इंसानों द्वारा स्पेस प्रोग्राम शुरू किए जाने के बाद अब तक कुल 15000 से अधिक उपग्रह अंतरिक्ष में प्रक्षेपित किए गए हैं, जिनमें से 10 से ज्यादा अभी भी पृथ्वी की कक्षा में घूम रहे हैं।
सैटेलाइट इंटरनेट के क्या हैं फायदे?
सैटेलाइट इंटरनेट का सबसे ज्यादा फायदा दूरदराज के इलाकों में नजर आ सकता है। उन इलाकों में जहां पहुंचना बेहद मुश्किल हैं, वहां इस तकनीक का इस्तेमाल बखूबी किया जा सकेगा। कोई भी आराम से इंटरनेट का फायदा उठा सकेगा। वैसे मस्क कई बार यह कहते भी रहे हैं कि उनका मकसद स्टारलिंक को उन क्षेत्रों तक पहुंचना है, जहां इंटरनेट कनेक्टिविटी एक बड़ी समस्या है।
स्टारलिंक इंटरनेट के लिए क्या-क्या चाहिए?
स्टारलिंक किसी भी ग्राहक को एक इंस्टॉलेशन उपकरण किट देता है। इसमें स्टारलिंक एंटीना, राउटर, एक सैटेलाइट लिंक केबल और एक एसी केबल शामिल है। स्टारलिंक इंटरनेट के ठीक-ठीक इस्तेमाल के लिए यह भी जरूरी है कि आसमान साफ रहे। अगर आसमान साफ नहीं रहता है, मसलन बारिश हो रही है या बादल छाए हुए हैं…तो ऐसे में सैटेलाइट से सिग्नल रिसीव करने में दिक्कत हो सकती है और फिर इंटरनेट के इस्तेमाल में भी समस्या आएगी।
स्टारलिंक सैटेलाइट इंटरनेट की कीमत और स्पीड क्या होगी?
अधिकांश सैटेलाइट इंटरनेट सेवाएं एक जियोस्टेसियनरी सैटेलाइट से सिग्नल बाउंस करती हैं। ये सैटेलाइट एक बस के आकार के हैं और पृथ्वी की सतह से 22,000 मील की दूरी पर परिक्रमा कर रहे हैं। इसके उलट स्टारलिंक 63 गुना कम ऊंचाई पर है और आकार में भी छोटे हैं। ये कक्षा में भी एक-दूसरे से ज्यादा करीब हैं और ऐसे में सिग्नल का आदान-प्रदान भी तेजी से होता है। ऐसे में इसके तहत यूजर्स को 25 और 220 एमबीपीएस के बीच डाउनलोड स्पीड मिल सकती है। स्टारलिंक के मुताबिक, अपलोड स्पीड आमतौर पर 5 से 20 एमबीपीएस के बीच है।
स्टारलिंक इंटरनेट सर्विस की बात करें तो अभी यह बहुत सस्ता तो कतई नहीं है। अमेरिका में स्टारलिंक $120 प्रति माह (करीब 10 हजार भारतीय रुपये) से शुरू होता है और आपके द्वारा चुनी गई योजना के आधार पर यह $5,000 (4 लाख रुपये) तक जा सकता है। भारत में अगर इस सर्विस को शुरू करने की मंजूरी मिलती है, तो देखना होगा कि यहां के लोगों के लिए मस्क कैसे प्लान लेकर आते हैं।
स्टारलिंक सैटेलाइट इंटरनेट किन-किन देशों में हैं?
फिलहाल स्टारलिंक इंटरनेट सेवाएं 54 देशों में उपलब्ध हैं। इसमें अमेरिका, कनाडा, यूके, फ्रांस, नीदरलैंड्स, डेनमार्क, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड जैसे देश शामिल हैं। स्टारलिंक की वेबसाइट के अनुसार अफ्रीका के नाइजीरिया और केन्या जैसे देशों में भी इसकी सर्विस शुरू हो गई है। साथ ही यह भी गौर करने की बात है कि स्टारलिंक इंटरनेट परियोजना पर अभी काम जारी है। करीब 42,000 उपग्रहों को स्पेसएक्स द्वारा पृथ्वी की निचली कक्षा में भेजा जाना है और फिलहाल इस समूचे लक्ष्य के करीब 10 प्रतिशत सैटेलाइट ही भेजे गए हैं।
भारत में स्टारलिंक इंटरनेट के लिए पहले भी प्रयास कर चुके हैं मस्क
मस्क ने पहले भी भारत में अपनी सैटेलाइट इंटरनेट सेवा शुरू करने का प्रयास किया था। आखिरी प्रयास नवंबर 2022 में किया गया था, जब स्टारलिंक ने जीएमपीसीएस लाइसेंस के लिए आवेदन किया था। हालांकि, उचित लाइसेंस के बिना पूर्व-आदेशों पर सरकार के साथ असहमति के कारण देश में नियोजित उपग्रह संचार सेवा परीक्षणों को रद्द कर दिया गया।
सरकार ने पिछले साल दिसंबर में दूरसंचार विधेयक 2023 पारित किया था, जो नीलामी में भाग लेने की जरूरत के बिना उपग्रह-आधारित सेवाओं के लिए स्पेक्ट्रम आवंटन की अनुमति देता है। यह कदम वनवेब, मस्क के स्टारलिंक और अमेजन के कुइपर जैसी कंपनियों के पक्ष में है।
पिछले हफ्ते, टेस्ला और स्पेसएक्स के सीईओ ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिलने के लिए अपनी भारत यात्रा की पुष्टि की। उम्मीद है कि अपनी भारत यात्रा के दौरान वह कई बड़ी घोषणाएं करेंगे, जिसमें स्टारलिंक की लॉन्चिंग और देश में 2 से 3 अरब डॉलर के बीच निवेश शामिल है।