नई दिल्ली: रूस और चीन चांद पर न्यूक्लियर पावर प्लांट विकसित करने की महत्वाकांक्षी परियोजना पर काम कर रहे हैं। एक रिपोर्ट के अनुसार, इस परियोजना में भारत ने भी रुचि दिखाई है।
हालांकि भारत सरकार और भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) द्व्रारा अभी तक इस मामले पर अपनी भागीदारी या फिर इसे लेकर किसी किस्म की चर्चा की पुष्टि नहीं की है।
रूस की सरकारी परमाणु निगम रोसाटॉम के प्रमुख एलेक्सी लिखाचेव ने संकेत दिया है कि चीन के साथ भारत ने भी इस परियोजना के लिए अपनी रुचि दिखाई है। परियोजना के तहत रूस चांद पर एक छोटा न्यूक्लियर पावर प्लांट बनाना चाहता है।
बता दें कि साल 2020 से भारत और चीन के रिश्ते सही नहीं है। इसी साल जून के महीने में पूर्वी लद्दाख की गलवान घाटी में दोनों सेनाओं के बीच हिंसक झड़प के बाद दोनों देशों के बीच तनाव पैदा हो गया था।
इस झड़प में 20 भारतीय जवानों की जान गई थी जबकि पहले चीन ने अपने किसी जवानों के मारे जाने की खबर से इनकार किया था। बाद में एक अन्य रिपोर्ट में यह कहा गया था कि इस झड़प में 40 चीनी जवानों की मौत हुई है।
इस घटना के कारण भारत ने चीन से अपने रिश्ते और कारोबार को काफी हद तक सीमित भी कर लिया था। पिछले चार सालों के दौरान कई कोशिशों के बाद भी इनके रिश्ते अभी भी सुधरे नहीं हैं।
ऐसे में क्या रूस के इस परियोजना पर क्या भारत और चीन साथ मिलकर काम करने के लिए तैयार हो सकते हैं, यह तो आने वाला समय ही बताएगा।
क्या है रूस की महत्वाकांक्षी परियोजना
मार्च 2021 में रूस के रोस्कोस्मोस और चीन के सीएनएसए ने बीच अंतर्राष्ट्रीय चंद्र अनुसंधान स्टेशन (ILRS) पर सहयोग करने के लिए एक समझौता हुआ था। इस परियोजना के तहत चीन चांग ई 6, चांग ई 7 और चांग ई 8 जैसे तीन मिशन लॉन्च करने की तैयारी में है।
परियोजना को जरूरी टेकनॉलिजी को दूर से प्रयोग करने के लिए रोबोटिक बेस के आधार को तैयार करने के लिए लॉन्च किया जाएगा। चीन का पहला मिशन साल 2026 के लिए योजनाबद्ध है और परियोजना साल 2028 तक पूरी होने की उम्मीद है।
इस परियोजना के तहत रूस और चीन चांद पर एक छोटा परमाणु ऊर्जा संयंत्र बनाने की तैयारी में है जिससे चांद पर आधा मेगावाट की बिजली पैदा किया जा सकेगा। रूस के अनुसार, न्यूक्लियर पावर प्लांट मानवयुक्त बेस के लिए बिजली बनाएगा जिसे साल 2036 स्थापित करने की योजना है।
चांद पर परमाणु संयंत्र का प्राथमिक लक्ष्य निरंतर ऊर्जा यानी बिजली की आपूर्ति करना है खास कर चांद की लंबी 14-दिन की रातों के दौरान जब सौर ऊर्जा उपलब्ध नहीं होगी।
इस परियोजना से भारत के जुड़ने से क्या होगा
भारत और चीन के बीच अभी तनाव की स्थिति हैं, ऐसे में क्या दोनों देश अपने मतभेदों को दरकिनार कर इस परियोजना के लिए साथ में काम करेंगे। यह तो आने वाले वक्त ही बताएगा लेकिन अगर ऐसा होता है तो इसके जरिए दोनों देशों को अपनी मतभेदों को दूर करने और अपने संबंधों को बढ़ाने का एक अवसर मिलेगा।
रूस परमाणु ऊर्जा में काफी आगे हैं जबकि चीन ने अंतरिक्ष की जानकारी क्षेत्र में काफी उन्नति की है, वहीं भारत को अपने चांद के मिशनों में उसे काफी सफलता हासिल है।
इनके मिल कर साथ में काम करने से इस परियोजना के सफल होने की संभावना काफी हद तक बढ़ जाएगी है। बता दें कि रूस साल 2036 तक रिएक्टर तैनात करने की योजना बना रहा है जबकि भारत साल 2050 तक चांद पर आधार स्थापित करने की तैयारी में हैं।