Starlink vs BharatNet: पिछले कुछ वर्षों में भारत में डिजिटल क्षेत्र में जबर्दस्त वृद्धि हुई हैं। यह अभी भी लगातार जारी है। इस बीच एलन मस्क के सैटेलाइट इंटरनेट सर्विस 'स्टारलिंक' के भारत में आने को लेकर चर्चाएं तेज हैं। स्टारलिंक भारत में आता है तो देश में इंटरनेट कनेक्टिविटी के मामले में संभवत: एक और बड़ा कदम होगा। हालांकि, स्टारलिंक के आने की चर्चाओं के साथ यह चर्चा भी सोशल मीडिया पर तेज हो गई है कि फिर भारतनेट (BharatNet) का क्या होगा? भारतनेट क्या है और क्या है BharatNet vs Starlink की ये पूरी बहस, इसे समझते हैं।

BharatNet क्या है?

इसे 2011 में नेशनल ऑप्टिकल फाइबर नेटवर्क (NOFN) के रूप में लॉन्च किया गया। बाद में भारतनेट नाम दिया गया। भारत सरकार की इस परियोजना का उद्देश्य ऑप्टिकल फाइबर के माध्यम से 2.5 लाख से अधिक ग्राम पंचायतों को हाई-स्पीड ब्रॉडबैंड से जोड़ना है।

इसे राज्य और केंद्र सरकार के फंड से पूरा किया जाना है। इसका अहम उद्देश्य ग्रामीण डिजिटलीकरण के लिए बड़ा आधार तैयार करना है। साथ ही इसके माध्यम से ई-गवर्नेंस से लेकर टेलीमेडिसिन और ऑनलाइन शिक्षा जैसी चीजों को ग्रामीण भारत तक आसानी से पहुंचाने का लक्ष्य है।

अहम बात ये है कि निजी इंटरनेट सर्विस प्रोवाइडर से इतर भारतनेट का उद्येश्य मुनाफा कमाना नहीं है। इसका उद्देश्य इंटरनेट तक पहुँच को लोकतांत्रिक बनाना और भारत के शहरी और ग्रामीण परिदृश्यों के बीच इस क्षेत्र में संतुलन कायम करना था।

स्टारलिंक क्या है?

स्टारलिंक असल में अमेरिकी कंपनी स्पेसएक्स का सैटेलाइट इंटरनेट वेंचर है, जो पृथ्वी की निचली कक्षा में स्थित सैटेलाइट के जरिए हाई-स्पीड ब्रॉडबैंड सेवा मुहैया करता है। स्टारलिंक टावरों या फाइबर केबल पर निर्भर रहने के बजाय, सैटेलाइट से संचार पर निर्भर है। इसमें केबल की जरूरत नहीं पड़ती और एक एंटीना से घर पर आसानी से इंटरनेट पहुंच सकता है।

इसका सबसे बड़ा फायदा ये है कि दूरदराज या ग्रामीण क्षेत्र में केबल का जाल बिछाने की जरूरत नहीं होगी। कंपनी पहले से ही 60 से ज़्यादा देशों में काम कर रही है और खुद को ऐसे क्षेत्रों के लिए एक समाधान के रूप में पेश कर रही है जहाँ फाइबर आसानी से नहीं पहुँच सकता।

BharatNet vs Starlink की बहस क्यों छिड़ी है?

यह बहस तकनीक को लेकर नहीं है। यह बहस एक तरह से इसे लेकर है कि भारत के डिजिटल भविष्य को कौन नियंत्रित करेगा? स्टारलिंक तेज सर्विस और तत्काल सुदूर क्षेत्रों में भी इंटरनेट की सेवा मुहैया कराने का भरोसा देता है। हालांकि साथ ही कई सवाल भी खड़े होते हैं। इसमें डेटा सुरक्षा से लेकर सर्विस का मूल्य और एक बाहरी बड़ी कंपनी के स्थानीय बाजार से निष्पक्ष प्रतिस्पर्धा तक जैसी बातें शामिल हैं।

भारतनेट प्रोजेक्ट पूरी तरह से भारतीय है। इसकी योजना राष्ट्रीय प्राथमिकताओं को ध्यान में रखकर बनाई गई है, न कि कोई फायदा या रिटर्न को ध्यान में रखकर। स्टारलिंक 2022 से भारतीय बाजार में प्रवेश करने की कोशिश कर रहा है और इसके अब जल्द भारत में सेवाएं शुरू करने की संभावना है।

एनडीटीवी के अनुसार दूरसंचार विभाग के सूत्रों के हवाले से यह बात सामने आई है कि एलन मस्क की कंपनी अभी 600 से 700 Gbps की इंटरनेट स्पीड दे सकती है और 12 महीने के भीतर भारत में परिचालन शुरू करने वाली है। 
दूरसंचार विभाग के सूत्रों ने बताया कि प्रारंभिक बीमिंग क्षमता एक समय में केवल 30,000 से 50,000 यूजर के लिहाज से ही होगी और वह भी कुछ शहरों या क्षेत्रों में। हालांकि, 2027 तक यह क्षमता 3 टीबीपीएस या टेराबाइट प्रति सेकंड तक बढ़ जाएगी।

क्या स्टारलिंक और भारतनेट एक साथ चलेंगे?

अभी देखा जाए तो भारतनेट और स्टारलिंक अलग-अलग जरूरतों के लिए हैं।
भारतनेट जबकि घने ग्रामीण इलाकों और संस्थागत कनेक्टिविटी के लिए ज़्यादा उपयुक्त है, वहीं स्टारलिंक बेहद दूरदराज के इलाकों, आपदा क्षेत्रों और पूर्वोत्तर, हिमालय या लक्षद्वीप जैसे द्वीपों जैसे कठिन इलाकों में मदद कर सकता है।

हालांकि, बड़ी चिंता यह है अगर स्टारलिंक सस्ते, तेज कनेक्शनों की वजह से बाजार में फैलता है तो यह भारतनेट मॉडल को कमजोर कर सकता है। खासकर भारतनेट के लिए जिन इंफ्रास्ट्रक्चर और स्थानीय सेवा प्रदाताओं का इस्तेमाल किया जाएगा, उनका बिजनेस प्रभावित होगा।

सोशल मीडिया पर कई यूजर कह रहे हैं कि भारतनेट को हाइब्रिड मॉडल की ओर बढ़ना चाहिए, जिसमें फाइबर और सैटेलाइट तकनीक दोनों शामिल हों। हालाँकि भारत सरकार ने इस बारे में कुछ नहीं कहा है। वैसे, कुछ मीडिया रिपोर्ट में दावा किया गया है कि हाइब्रिड मॉडल पर विचार किया जा रहा है।