भारतीयों के पैरों के साइज को लेकर पूरे देश में किया गया एक खास सर्वे हाल ही में खत्म हुआ। इस सर्वे का मकसद भारतीयों के जूते-चप्पल की बनावट के लिए एक अलग साइज सिस्टम तैयार करना है। इसका नाम Bha (भ) दिया गया है, जो देश के नाम भारत से लिया गया है। यह सर्वे अब आने वाले समय में भारत में फुटवियर बनाने का नया आधार बन सकता है। अगर इसे (भ) लागू किया जाता है तो भारत में इस्तेमाल हो रहा मौजूदा यूके/यूरोपियन और यूएस साइजिंग सिस्टम बंद हो जाएगा।
फुटवियर के लिए नया साइज सिस्टम…सर्वे में क्या मिला?
इस सर्वे को चेन्नई आधारित काउंसिल ऑफ साइंटिफिक एंड इंडस्ट्रीय रिसर्च (वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद्) और सेंट्रल लेदर रिसर्च इंस्टट्यूट (CSIR-CLRI) ने कराया है। इसे दिसंबर 2021 से मार्च 2022 के बीच किया गया। इस दौरान बांटे गए पांच भौगोलिक क्षेत्रों में 79 स्थानों पर 1,01,880 लोगों को सर्वे में शामिल किया गया। एक औसत भारतीय पैर के आकार, आयाम और संरचना को समझने के लिए इन जगहों पर 3डी फुट स्कैनिंग मशीनें तैनात की गईं थी।
इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के अनुसार सर्वे से पहले, यह माना जा रहा था कि पूर्वोत्तर भारत के लोगों के पैरों का आकार शेष भारत की तुलना में औसतन छोटा होता है। बहरहाल, ये बात सामने आई कि भारतीयों के पैर यूरोपीय या अमेरिकियों की तुलना में अधिक चौड़े है। यूके/यूरोपीय/यूएस आकार प्रणालियों के अनुसार उपलब्ध संकीर्ण जूते की वजह से भारतीय ऐसे जूते का उपयोग कर रहे हैं जो जरूरत से बड़े आकार के हैं। इसके अलावा, कई भारतीयों को अतिरिक्त लंबे, खराब फिटिंग वाले और तंग जूते पहनने पड़ते हैं। यही नहीं, महिलाओं के लिए ऊंची एड़ी के जूते के मामले में बड़े आकार के जूते पहनना असुविधाजनक है और इससे चोट भी लग सकती है।
पुरुषों के मामले में ये बात सामने आई कि बड़े आकार के जूते पैरों पर टिके रहें और फीट लगें, इसके लिए भारतीय जूते के फीतों को जरूरत से कहीं अधिक ज्यादा कड़ा बांधते हैं। इससे शरीर में रक्त का प्रवाह प्रभावित होता है। अपने पैरों की विशिष्टताओं के अनुसार डिजाइन न किए गए जूते पहनने से भारतीय अक्सर चोटों, जूते से पैर के कटने-छिलने का जोखिम उठाते और उनके पैर भी प्रभावित होते हैं। विशेष रूप से बुजुर्ग महिलाओं और मधुमेह रोगियों में यह समस्या ज्यादा है।
भारतीय साइजिंग सिस्टम की जरूरत क्यों पड़ी?
भारत की आजादी से पहले से यहां यूके साइज सिस्टम शुरू हो गया था। इसके अनुसार एक औसत भारतीय महिला 4 से 6 नंबर के जूते पहनती है और एक औसत पुरुष 5 से 11 साइज के जूते पहनता है। चूंकि भारतीयों के पैरों की संरचना, आकार आदि को लेकर कोई स्पष्ट डेटा मौजूद नहीं था, इसलिए भारतीय सिस्टम विकसित करना कठिन था और इस बारे में बहुत गंभीरता से शुरू में सोचा भी नहीं गया।
चूंकी एक भारतीय यूजर के पास अब औसतन 1.5 फुटवियर हैं और साथ ही भारत दुनिया का सबसे अधिक आबादी वाला देश है। ऐसे में यह दुनिया का सबसे बड़े फुटवियर बाजारों में से एक है। साथ ही यहां बड़ी संख्या में जूते भी बनाए जाते हैं। इस उद्योग से जुड़े लोगों के भी अनुसार भारत में ऑनलाइन ऑर्डर किए गए जूतों में से अनुमानित 50 प्रतिशत ग्राहकों द्वारा लौटा दिए जाते हैं। माना जा रहा है कि ‘भ’ के आने से ग्राहक और फुटवियर निर्माताओं दोनों को लाभ होने की संभावना है।
फुटवियर साइज सिस्टम: सर्वे के बाद क्या प्रस्ताव दिए गए हैं?
‘भ’ ने आठ फुटवियर साइज का प्रस्ताव दिया है। इसमें I- शिशु (0 से 1 वर्ष), II- शिशु (1 से 3 वर्ष), III- छोटे बच्चे (4 से 6 वर्ष), IV- बच्चे (7 से 11 वर्ष), V- लड़कियाँ (12 से 13 वर्ष), VI- लड़के (12 से 14 वर्ष), VII – महिलाएं (14 वर्ष और अधिक) और VIII- पुरुष (15 वर्ष और अधिक) शामिल हैं।
माना जा रहा है कि ‘भ’ सर्वे के अनुसार निर्मित जूते देश की लगभग 85 प्रतिशत आबादी के लिए सही फिटिंग वाली होगी और ज्यादा आरामदेह होगी। ‘भ’ को अपनाने का सबसे बड़ा फायदा यह होगा कि फुटवियर निर्माताओं को मौजूदा 10 आकार (यूके सिस्टम) और सात आकार (यूरोपीय प्रणाली) के मुकाबले केवल आठ आकार विकसित करने की आवश्यकता होगी।
बहरहाल, सर्वे को केंद्रीय वाणिज्य मंत्रालय के तहत संचालित उद्योग और आंतरिक व्यापार संवर्धन विभाग (DPIIT) को सिफारिशें सौंप दी गई हैं। डीपीआईआईटी ने इसे भारतीय मानक ब्यूरो (बीआईएस) को भेज दिया है, जो इस साइज सिस्टम को मंजूरी मिलने के बाद इसे लागू कराएगी। इसे पूरी तरह से लागू करने से पहले ट्रायल और टेस्टिंग के लिए कुछ यूजर को दिया जाएगा और फिर उनसे फिडबैक भी लिया जाएगा। ‘भ’ के 2025 में लागू होने की संभावना है।