Strawberry Moon 2025: बुधवार, 11 जून 2025 को आकाश में एक दुर्लभ और मनमोहक खगोलीय घटना देखने को मिलेगी- स्ट्रॉबेरी मून। यह पूर्णिमा न केवल अपनी खूबसूरती के लिए खास होगी, बल्कि खगोलविज्ञान और सांस्कृतिक परंपराओं के लिहाज से भी एक महत्वपूर्ण घटना है।
इस बार यह चंद्रमा लगभग 20 वर्षों में सबसे नीचे क्षितिज पर उगेगा, जिससे यह एक गर्माहट भरी सुनहरी चमक के साथ नजर आएगा। भारत सहित उत्तरी गोलार्ध के लोग सूर्यास्त के बाद, विशेष रूप से दक्षिण-पूर्वी दिशा में, इस दुर्लभ दृश्य का आनंद ले सकेंगे।
नाम के पीछे की परंपरा और संस्कृति
हर साल की हर पूर्णिमा को एक पारंपरिक नाम दिया जाता है, जो उस समय होने वाले प्राकृतिक परिवर्तनों या मौसमी बदलावों को दर्शाता है। उदाहरण के लिए, फरवरी की पूर्णिमा को 'स्नो मून' कहा जाता है क्योंकि यह बर्फबारी के मौसम से जुड़ी होती है, जबकि जुलाई की पूर्णिमा 'बक मून' कहलाती है, क्योंकि इसी समय नर हिरणों (बक) के सींग उगने की प्रक्रिया शुरू होती है। इसी तरह, जून की पूर्णिमा को 'स्ट्रॉबेरी मून' कहा जाता है, क्योंकि यह गर्मियों की शुरुआत और स्ट्रॉबेरी की फसल के पकने के मौसम के साथ मेल खाती है।
‘स्ट्रॉबेरी मून’ नाम की जड़ें उत्तर अमेरिका की मूल अमेरिकी जनजातियों में हैं। अल्गोंक्विन जनजाति इसे उन दिनों का प्रतीक मानती थी जब जंगली स्ट्रॉबेरी पकती थीं। यह नाम यह नहीं दर्शाता कि चंद्रमा गुलाबी या स्ट्रॉबेरी जैसा दिखेगा, बल्कि यह फलों की कटाई और गर्मियों की शुरुआत से जुड़ा है। यही कारण है कि इसी पूर्णिमा को विभिन्न संस्कृतियों में रोज़ मून, हनी मून, मीड मून और हॉट मून जैसे नाम भी दिए गए हैं।
प्राचीन स्वदेशी ज्ञान प्रणालियों में चंद्र चक्रों के जरिए मौसम और कृषि चक्र को समझा जाता था। यूरोपीय उपनिवेशवादियों ने भी बाद में इन नामों को अपनाकर अपनी मौसम-संबंधी परंपराओं में जोड़ा। आज ये नाम न केवल Old Farmer’s Almanac ( किसानों का पंचांग) में बल्कि सोशल मीडिया और आधुनिक खगोल चर्चाओं में भी आम हो चुके हैं।
क्यों है 2025 का स्ट्रॉबेरी मून इतना खास?
इस वर्ष की स्ट्रॉबेरी मून एक खगोलीय घटना मेजर लूनर स्टैंडस्टिल से जुड़ी है, जो हर 18.6 वर्षों में घटती है। इस दौरान चंद्रमा आकाश में अपने सबसे ऊँचे और सबसे निचले बिंदु तक पहुँचता है। 11 जून को यह पूर्णिमा अत्यंत निचली स्थिति में उगेगी और अस्त होगी, जिससे यह क्षितिज के करीब एक अद्भुत सुनहरी आभा के साथ दिखेगी- जिसे वैज्ञानिक रूप से "हनी मून इफेक्ट" कहा जाता है। अगली बार यह दृश्य 2043 में ही देखने को मिलेगा।
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विज्ञान की दृष्टि से इसका महत्व
खगोलविज्ञान की नजर से स्ट्रॉबेरी मून के समय सूर्य, पृथ्वी और चंद्रमा एक विशेष सीध में होते हैं, जिससे ज्वारीय प्रभाव बढ़ जाता है, यह तटीय पारिस्थितिक तंत्रों पर महत्वपूर्ण असर डालता है। चंद्रमा की सतह पर स्थित गड्ढे (क्रेटर) और मैदान (मारिया) इस समय अधिक स्पष्ट नजर आते हैं। इसके अलावा, चंद्रमा की निचली स्थिति से वायुमंडलीय प्रभाव जैसे प्रकाश का प्रकीर्णन, अपवर्तन और रंग परिवर्तन जैसी घटनाएँ और भी अधिक रोचक बन जाती हैं।
भारत में इसे कैसे देखें?
भारत में स्ट्रॉबेरी मून को देखने के लिए बुधवार, 11 जून को सूर्यास्त के तुरंत बाद खुले आकाश वाले स्थान पर जाएँ और दक्षिण-पूर्व दिशा की ओर नज़र डालें। शहर की रोशनी से दूर किसी अंधेरी जगह पर जाना बेहतर होगा। यदि आप इस अद्भुत दृश्य को और नजदीक से देखना चाहते हैं, तो दूरबीन या टेलीस्कोप का उपयोग करें। फोटोग्राफी के शौकीन इस दृश्य को कैमरे और ट्राइपॉड की मदद से कैद कर सकते हैं।