'अधिकारी टॉम, डिक और हैरी नहीं हैं', सरकार ने कर्नाटक हाई कोर्ट में एक्स को क्या जवाब दिया?

इससे पहले मार्च में केंद्र ने कर्नाटक उच्च न्यायालय को सौंपे गए एक विस्तृत हलफनामे में सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म द्वारा 'सहयोग' पोर्टल को 'सेंसरशिप' टूल बताने पर कड़ी आपत्ति जताई थी।

Elon Musk

Photograph: (IANS)

बेंगलुरु: एलन मस्क के सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स और केंद्र सरकार के बीच कानूनी लड़ाई मंगलवार को तेज हो गई। एक मामले में एक्स के वकील ने कोर्ट में सुनवाई के दौरान सरकार पर 'हर टॉम, डिक और हैरी' (कोई भी ऐरा-गैरा) अधिकारी को प्लेटफॉर्म से कंटेंट हटाने के आदेश जारी करने की अनुमति देने का आरोप लगाया। 

समाचार एजेंसी रॉयटर्स की रिपोर्ट के अनुसार एक्स के वकील की ओर से इस तरह की टिप्पणी के बाद सरकार की कानूनी टीम की ओर से भी कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त की गई। यह सबकुछ कर्नाटक हाई कोर्ट में एक सुनवाई के दौरान हुआ।
दरअसल, एक्स ने एक सरकारी वेबसाइट को चुनौती देते हुए उसे 'सेंसरशिप पोर्टल' बताया है। 

सुनवाई के दौरान एक्स के वकील केजी राघवन ने एक हालिया मामले का हवाला दिया जिसमें भारतीय रेलवे ने रेलवे ट्रैक पर दौड़ रही एक कार के वायरल वीडियो को हटाने की मांग की थी। इस वीडियो को लेकर एक्स ने कहा था कि यह न्यूज के तौर पर है। 

टॉम डिक हैरी वाली शब्दावली पर सरकार ने जताई आपत्ति

रॉयटर्स के अनुसार एक्स के वकील राघवन ने कोर्ट में कहा, 'यही खतरा है, माई लॉर्ड, और अब बहुत हो चुका है, अगर हर टॉम, डिक और हैरी अधिकारी इसके लिए अधिकृत है।' इस पर सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने तत्काल आपत्ति जताई और कहा, 'अधिकारी टॉम, डिक या हैरी नहीं हैं... वे वैधानिक अधिकारी हैं। किसी भी सोशल मीडिया को पूरी तरह से अनियमित होकर कामकाज की उम्मीद नहीं करनी चाहिए।' 

इससे पहले मार्च में, केंद्र ने कर्नाटक उच्च न्यायालय को सौंपे गए एक विस्तृत हलफनामे में सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म द्वारा 'सहयोग' पोर्टल को 'सेंसरशिप' टूल बताने पर कड़ी आपत्ति जताई थी। साथ ही इस आरोप को 'दुर्भाग्यपूर्ण' और 'निंदनीय' कहा था।

एक्स ने तब कहा था कि सरकार ने 'सहयोग पोर्टल' नाम से एक वेबसाइट बनाई है जिससे सरकार की अलग-अलग एजेंसियां कंटेंट हटाने का आदेश दे सकती हैं।

भारत सरकार ने पहले क्या तर्क दिए थे?

भारत में सोशल मीडिया पर कंटेंट-ब्लॉकिंग तंत्र को एक्स कॉर्प की कानूनी चुनौती के जवाब में सरकार ने तर्क दिया था कि प्लेटफॉर्म ने सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम के प्रावधानों, विशेष रूप से धारा 69ए और 79(3)(बी) को गलत समझा है। केंद्र ने जोर देकर कहा कि धारा 69ए स्पष्ट रूप से उचित जांच और प्रक्रियाओं के साथ विशेष परिस्थितियों में ब्लॉकिंग आदेशों का प्रावधान करती है। 

यहां बता दें कि इनफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी (आईटी) एक्ट की धारा 69A के तहत केंद्र सरकार या उनके अधिकारियों के पास ये अधिकार होता है कि वो इंटरनेट से कोई कंटेंट हटाने का आदेश दें। वहीं, आईटी एक्ट की धारा 79 का एक प्रावधान 'इंटरमीडियरी' के लिए है। ये वो वेबसाइट या प्लेटफॉर्म हैं जो खुद 'थर्ड-पार्टी' के कंटेंट डालती हैं। उदाहरण के तौर पर गूगल, फेसबुक, एक्स आदि को ले सकते हैं।

इस धारा में कहा गया है कि अगर सरकार या उसके अधिकारी इंटरमीडियरी को सूचित कि उनकी वेबसाइट पर कोई गैर कानूनी चीज डली है तो उसे हटाने की जिम्मेदारी इंटरमीडियरी की होगी। साथ ही ऐसे कंटेंटे के लिए इन वेबसाइट को जिम्मेदार नहीं ठहराया जाएगा।

केंद्र ने इस बात पर भी जोर दिया कि एक विदेशी कमर्शियल कंपनी के रूप में एक्स को भारतीय कानून के तहत तीसरे पक्ष की सामग्री प्रकाशित करने या उसका बचाव करने का कोई अधिकार नहीं है। ट्विटर से जुड़े एक मामले में कर्नाटक उच्च न्यायालय के पिछले फैसले का हवाला देते हुए सरकार ने दोहराया कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19 और 21 ऐसी संस्थाओं पर लागू नहीं होते हैं। केंद्र ने कहा कि कंटेंट मॉडरेशन पर भारत का कानूनी ढांचा वैधानिक और संतुलित है और सरकार के अतिक्रमण का संकेत नहीं देता है।

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