नई दिल्ली: भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने नए लघु उपग्रह प्रक्षेपण यान (एसएसएलवी) को शुक्रवार को सफलतापूर्वक लॉन्च कर दिया। इस लॉन्चिंग के जरिए इसरो ने 175 किलो वजन के अर्थ ऑब्जर्विंग सैटेलाइट (ईओएस-08) का प्रक्षेपण किया। इसके अलावा इस लॉन्चिंग के साथ एक और छोटा उपग्रह ‘एसआर-0’ भी भेजा गया है जिसे स्टार्टअप कंपनी स्पेस रिक्शा ने तैयार किया है। यह एसएसएलवी प्रक्षेपण यान का तीसरा मिशन था। इस मिशन को शुक्रवार सुबह 9:17 बजे आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से अंजाम दिया गया। इसकी उल्टी गिनती शुक्रवार तड़के 2.30 बजे शुरू हो गई थी।
इसरो की ये लॉन्चिंग खास क्यों है?
एसएसएलवी (SSLV-D3) की सफल लॉन्चिंग के बाद अब SSLV को पूरी तरह से ऑपरेशनल रॉकेट का दर्जा मिल जाएगा। इससे पहले इसी रॉकेट के दो उड़ान SSLV-D1 और SSLV-D2 भी हुए थे। SSLV-D1 को 7 अगस्त 2022 को जबकि SSLV-D2 को 10 फरवरी 2023 को लॉन्च किया गया था।
VIDEO | ISRO successfully launches Small Satellite Launch Vehicle-03 (SSLV-D3-EOS-08) from Satish Dhawan Space Centre, Sriharikota, Andhra Pradesh.@isro #SSLVD3
(Full video available on PTI Videos – https://t.co/n147TvqRQz) pic.twitter.com/LxNt29xTvR
— Press Trust of India (@PTI_News) August 16, 2024
एसएसएलवी आकार में छोटा है और इसके निर्माण में करीब 20 करोड़ रुपये का खर्चा आता है। वहीं इसके उलट पीएसएलवी पर 130 से 200 करोड़ रुपये तक का खर्च आता है। इसे तैयार करने में भी कम समय लगता है। इस लिहाज से एसएसएलवी काफी किफायती है।
अंतरिक्ष में 500 किलोग्राम तक वजन ले जाने में सक्षम एसएसएलवी को इसरो द्वारा खास तौर पर कमर्शियल उद्देश्यों के लिए विकसित किया गया है। इसका व्यास सिर्फ 2 मीटर और लंबाई 34 मीटर है। यह छोटे और सूक्ष्म उपग्रहों को कक्षा में स्थापित करने में सक्षम है। हाल के वर्षों में विश्व स्तर पर छोटे प्रक्षेपण (रॉकेट) की की मांग बढ़ रही है ताकि छोटे उपग्रहों को पृथ्वी की निचली कक्षाओं में भेजा जा सके।
इसरो ने क्या कहा?
सफल लॉन्च के बाद इसरो ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर कहा, ‘एसएसएलवी की तीसरी उड़ान सफल है। एसएसएलवी-डी3 ने ईओएस-08 को सटीक रूप से कक्षा में स्थापित कर दिया है।’
वहीं, इसरो प्रमुख एस सोमनाथ ने कहा, ‘आखिरी कक्षा ट्रैकिंग के बाद पता चल सकेगी लेकिन अभी तक जो संकेत मिले हैं उसके हिसाब से सब कुछ सही है।’
72 घंटे में एसएसएलवी किया जा सकता है तैयार
एसएसएलवी की खासियत ये है कि इसे केवल 72 घंटों में असेंबल किया जा सकता है। यह छोटे, सूक्ष्म या नैनो उपग्रहों (10 से 500 किलोग्राम द्रव्यमान) को 500 किमी तक की कक्षा में स्थापित करने में सक्षम है।
इसरो के अनुसार, ‘एसएसएलवी को कम लागत, कम टर्न-अराउंड समय, कई उपग्रहों को समायोजित करने में लचीलापन, ऑन-डिमांड व्यवहार्यता, न्यूनतम लॉन्च इंफ्रास्ट्रक्चर के लिए डिजाइन किया गया है।’
अगस्त 2022 में इसका पहला परीक्षण विफल रहा था, लेकिन फरवरी 2023 में अपनी दूसरी उड़ान से इसने वापसी की। एसएसएलवी ने पहली उड़ान में अपने दो पेलोड ईओएस-02 और एक छोटे क्यूबसैट को गलत कक्षा में स्थापित कर दिया था, जो जल्द ही वापस पृथ्वी पर गिर गये थे।
हालांकि फरवरी 2023 में रॉकेट ने अपने तीन पेलोड ईओएस -07 और दो क्यूबसैट को उनकी निर्दिष्ट 450 किलोमीटर की वृत्ताकार कक्षाओं में सफलतापूर्वक स्थापित किया।