नई दिल्ली: भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने सोमवार रात 10 बजे स्पैडेक्स मिशन (SpaDeX) को सफलतापूर्वक लॉन्च किया, जिसका लक्ष्य अंतरिक्ष में डॉकिंग तकनीक में महारत हासिल करना है। स्पेस डॉकिंग एक्सपेरीमेंट (स्पैडेक्स) मिशन के तहत दो उपग्रहों को 30 दिसंबर की रात को श्रीहरिकोटा से पीएसएलवी-सी60 रॉकेट के जरिए प्रक्षेपित किया गया। रॉकेट ने दोनों उपग्रहों को कुछ दूरी पर एक ही कक्षा में सफलतापूर्वक स्थापित किया।
इसरो के अध्यक्ष एस सोमनाथ ने कहा कि डॉकिंग 7 जनवरी को होने का अनुमान है। उन्होंने कहा, ‘नए साल में हमारे लिए डॉकिंग के साथ-साथ POEM (PS4 ऑर्बिटल एक्सपेरिमेंट मॉड्यूल) पर प्रयोग करने का काम है। 2025 में हमारे पास कई मिशन होंगे। इसकी शुरुआत GSLV के जरिए NVS-02 से होगी। आपको नये साल की शुभकामनाएं।’
वहीं, इसरो ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर एक पोस्ट में कहा, ‘स्पैडेक्स तैनात! स्पैडेक्स उपग्रहों का सफल पृथक्करण भारत की अंतरिक्ष यात्रा में एक और मील का पत्थर है।’ इससे पहले रॉकेट की लॉन्चिंग पर उसने लिखा था, ‘लिफ्टऑफ! पीएसएलवी-सी60 ने स्पैडेक्स और 24 पेलोड को सफलतापूर्वक प्रक्षेपित किया।’
Slow-motion liftoff and onboard views! 🚀✨
SpaDeX’s historic mission onboard PSLV-C60 delivers breathtaking visuals, showcasing India’s strides in space exploration. 🌌🛰️
📖 More info: https://t.co/jQEnGi3W2d#SpaDeX #ISRO 🚀
📍 @DrJitendraSingh pic.twitter.com/5eJ6FAiIxI— ISRO (@isro) December 31, 2024
क्या है स्पेस डॉकिंग…क्यों है जरूरी?
सरल भाषा में समझें तो स्पेस डॉकिंग अंतरिक्ष में दो उपग्रहों को जोड़ने की प्रक्रिया है। इससे दोनों उपग्रहों के बीच क्रू मेंबर्स सहित सामान और अन्य उपकरणों की सप्लाई आसानी से की जा सकती है। इस लिहाज से डॉकिंग बेहद अहम तकनीक है। अब इसरो अगर डॉकिंग करने में सफल रहा तो अमेरिका, रूस और चीन के बाद भारत डॉकिंग तकनीक में महारत हासिल करने वाला चौथा देश बनेगा।
इसरो के अनुसार डॉकिंग की प्रक्रिया को अंतरिक्ष में 7 जनवरी को अंजाम दिया जाएगा। दोनों उपग्रह जो भेजे गए हैं, उन्हें अंतरिक्ष में कनेक्ट करने की कोशिश की जाएगी।
🎉 Launch Day is Here! 🚀
Tonight at precisely 10:00:15 PM, PSLV-C60 with SpaDeX and innovative payloads are set for liftoff.
SpaDeX (Space Docking Experiment) is a pioneering mission to establish India’s capability in orbital docking, a key technology for future human… pic.twitter.com/147ywcLP0f
— ISRO (@isro) December 30, 2024
डॉकिंग की प्रक्रिया में सफलता पर ही भारत का चंद्रयान-4 मिशन भी निर्भर है। चंद्रयान-4 मिशन को 2028 में लॉन्च किया जा सकता है, जिसमें चंद्रमा की मिट्टी के सैंपल पृथ्वी पर लाए जाएंगे।
अंतरिक्ष डॉकिंग तकनीक में महारत हासिल करने से भारत अंतरिक्ष यात्रा करने वाले देशों के विशिष्ट क्लब में शामिल हो सकता है। चंद्रयान-4 के अलावा यह भारत के कई आगामी अंतरिक्ष अभियानों के लिए भी महत्वपूर्ण है। इसमें स्पेस में भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन को तैयार करने का सपना भी शामिल है।
कैसे की जाएगी डॉकिंग?
पीएसएलवी ने दो छोटे अंतरिक्ष यान – एसडीएक्स01 (जो डॉकिंग प्रयोग के दौरान चेजर की भूमिका निभाएगा) और एसडीएक्स02 (जो टारगेट की भूमिका निभाएगा) को लेकर उड़ान भरी। प्रत्येक का वजन लगभग 220 किलोग्राम था।
इसरो करीब चार दिन में दोनों उपग्रहों के बीच पर्याप्त दूरी बनाने के बाद ‘भारतीय डॉकिंग सिस्टम’ के सॉफ्टवेयर को सक्रिय करेगा। इसमें चार डॉकिंग सेंसर, पावर ट्रांसफर प्रौद्योगिकी, स्वदेशी नवीन स्वायत्त डॉकिंग रणनीति, और उपग्रहों के बीच स्वायत्त संचार के लिए एक अंतर-उपग्रह संचार लिंक (आईएसएल) शामिल है। इसमें एक ऑटो इंटेलिजेंस भी शामिल है जिससे दोनों उपग्रह एक-दूसरे की स्थिति का पता खुद से लगा सकते हैं।
अभी अंतरिक्ष में डिप्लॉयमेंट के बाद, दोनों स्पेसक्राफ्ट्स की रफ्तार करीब 28,800 किलोमीटर प्रति घंटे की है। इस तरह इनकी गति को नियंत्रित करते हुए डॉकिंग एक चुनौतीपूर्ण प्रक्रिया है।
इसरो के अनुसार, डॉकिंग के बाद दोनों उपग्रहों के बीच इलेक्ट्रिकल पावर ट्रांसफर भी होगा। डॉकिंग के बाद अनडॉकिंग की प्रक्रिया भी की जाएगी और दोनों अपने-अपने पेलोड के ऑपरेशन शुरू करेंगे। इसका मतलब हुआ कि अनडॉकिंग के बाद दोनों स्वतंत्र रूप से फिर से काम करने लगेंगे और एक-दूसरे से दूर जा सकेंगे।
(समाचार एजेंसी IANS की इनपुट के साथ)