नई दिल्लीः भारतीय महासागर के उत्तरी और मध्य भागों में घुलित सीसा की मात्रा खतरनाक रूप से बढ़ रही है। नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ ओशनोग्राफी (गोवा) और एकेडमी ऑफ साइंटिफिक एंड इनोवेटिव रिसर्च (गाजियाबाद) द्वारा किए गए एक संयुक्त अध्ययन में यह चिंताजनक खुलासा हुआ है।

अध्ययन के अनुसार, इस क्षेत्र में घुलित सीसा की सांद्रता (गाढ़ापन) 23 से 114 पिकोमोल तक पाई गई, जो अटलांटिक और प्रशांत महासागरों की तुलना में कहीं अधिक है। इसके अलावा, अध्ययन में स्पष्ट उत्तर-दक्षिण घटती प्रवृत्ति भी देखी गई है, यानी उत्तरी हिस्सों में प्रदूषण ज्यादा और दक्षिणी हिस्सों में कम है।

भारत और चीन से सबसे अधिक सीसा उत्सर्जन

यह अध्ययन वैज्ञानिक छाया यादव, सुनील कुमार सिंह और वेंकटेश चिनि द्वारा किया गया था, जिसके अनुसार, भारत और चीन जैसे एशियाई देशों में कोयले के दहन से निकलने वाले सीसा उत्सर्जन में पिछले 33 वर्षों में 4.3 से 4.8 गुना तक की वृद्धि हुई है। वर्ष 2023 में भारत द्वारा 12.5 हजार टन और चीन द्वारा 82.8 हजार टन सीसा वायुमंडल में छोड़ा गया।

अध्ययन में कहा गया है कि कोयला जलाने के अलावा, भारतीय महासागर डिपोल जैसी जलवायु घटनाएं और रेत-धूल के तूफान भी दक्षिणी भारतीय महासागर में सीसा की मात्रा बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

वायुमंडलीय मार्ग से समुद्र में पहुंचता है सीसा

रिपोर्ट के अनुसार, वायुमंडलीय मार्ग वह मुख्य रास्ता है जिससे सीसा खुले समुद्र तक पहुंचता है। तटीय क्षेत्रों के समीप सतही जल पर इसका सर्वाधिक प्रभाव देखा गया है। खासतौर पर गंगा-ब्रह्मपुत्र नदी तंत्र द्वारा बंगाल की खाड़ी में लाए गए अवसाद इस क्षेत्र में सीसा की अधिकता के लिए जिम्मेदार माने गए हैं।

स्वास्थ्य और पर्यावरण के लिए गंभीर खतरा

सीसा एक विषाक्त धातु है जो मानव स्वास्थ्य पर गहरा असर डाल सकती है। विशेष रूप से बच्चों और गर्भवती महिलाओं के लिए यह अत्यंत खतरनाक हो सकता है। वैज्ञानिकों ने यह भी चेतावनी दी है कि कम स्तर पर भी सीसे का लगातार संपर्क मानव मस्तिष्क के विकास को प्रभावित कर सकता है और इसके संपर्क में आने वालों में आगे चलकर आपराधिक व्यवहार की प्रवृत्ति तक देखी गई है।

उद्योगों से बढ़ता हुआ खतरा

पिछले एक दशक में सीसा के स्रोतों में भी बदलाव देखा गया है। लीड युक्त पेट्रोल के कम इस्तेमाल के बावजूद कोयला आधारित बिजली उत्पादन, धातु प्रसंस्करण, और अन्य औद्योगिक गतिविधियों से सीसे की मात्रा में भारी इजाफा हुआ है। औद्योगिक स्रोतों से निकले धातुएं सामान्य क्रस्टल एयरोसोल की तुलना में समुद्री जल में अधिक घुलनशील होती हैं, जिससे समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र पर गंभीर असर पड़ता है।

वैज्ञानिकों ने जोर दिया है कि भारतीय महासागर क्षेत्र में सीसे की नियमित निगरानी और नियंत्रण नीतियों की तत्काल आवश्यकता है। औद्योगिक विकास और पर्यावरण संरक्षण के बीच संतुलन स्थापित करना अब समय की मांग है।