नई दिल्ली: भारत में परिवहन सिस्टम की तस्वीर आने वाने दिनों में किस हद तक बदल सकती है, इसका एक उदाहरण सामने आ गया है। भारतीय रेलवे ने आईआईटी मद्रास के साथ मिलकर भारत के पहले 410 मीटर लंबे हाइपरलूप टेस्ट ट्रैक के निर्माण को पूरा कर लिया है। भारत की परिवहन प्रौद्योगिकी में इसे एक उल्लेखनीय प्रगति माना जा सकता है।
केंद्रीय रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव ने चेन्नई में बने इस टेस्ट ट्रैक का गुरुवार देर रात एक वीडियो साझा करते हुए इस उपलब्धि की घोषणा की। मंत्री ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर पोस्ट किया, ‘भारत का पहला हाइपरलूप परीक्षण ट्रैक (410 मीटर) पूरा हो गया है।’ यह पहल आईआईटी मद्रास की ‘अविष्कार हाइपरलूप टीम’ और संस्थान द्वारा संचालित स्टार्टअप TuTr का संयुक्त प्रयास है।
इकोनॉमिक्स टाइम्स की एक रिपोर्ट के अनुसार ‘अविष्कार हाइपरलूप टीम’ में आईआईटी मद्रास के स्नातक और स्नातकोत्तर दोनों से 76 छात्र शामिल हैं।
Watch: Bharat’s first Hyperloop test track (410 meters) completed.
👍 Team Railways, IIT-Madras’ Avishkar Hyperloop team and TuTr (incubated startup)
📍At IIT-M discovery campus, Thaiyur pic.twitter.com/jjMxkTdvAd
— Ashwini Vaishnaw (@AshwiniVaishnaw) December 5, 2024
क्या है हाइपरलूप सिस्टम?
हाइपरलूप एक बेहद तेज गति वाली परिवहन प्रणाली है। पूरी दुनिया में इस पर और शोध और काम जारी है। इसके जरिए लंबी दूरी के बीच यात्रा को समय को काफी कम किया जा सकता है। यह जमीनी परिवहन का यह नया रूप है। इसमें यात्री एक फ्लोटिंग पॉड में 700 मील प्रति घंटे (लगभग 1,127 किलोमीटर/घंटा) की रफ्तार से यात्रा कर सकेंगे।
इसे आसान भाषा में समझें तो एक वैक्यूम ट्यूब में विशेष कैप्सूल में बैठकर अत्यधिक तेज गति से यह यात्रा होगी। यह गति इतनी तेज होगी कि चंद पलों में आप एक जगह से दूसरी जगह पहुंच जाएंगे। यह कैप्सूल एक बस के आकार का हो सकता है, जिसमें 30 से 40 यात्री एक साथ बैठ सकेंगे। चूंकि वैक्यूम जैसी स्थिति होने से घर्षण नहीं के बराबर होगा। ऐसे में कैप्सूल की स्पीड काफी बढ़ाई जा सकती है। हाइपरलूप के लिए ट्रैक जमीन के ऊपर या नीचे बनाया जा सकता है।
एक और दिलचस्प बात ये भी है कि ट्रेनों या कारों के विपरीत, जिनमें पहिए होते लगे होते हैं, हाइपरलूप सिस्टम में कैप्सूल के तैरने जैसी स्थिति या घर्षण को कम करने के लिए मैग्नेटिक लेविटेशन (मैग्लेव) तकनीक का उपयोग किया जा सकता है। मैग्लेव ट्रेनें चीन, जापान और दक्षिण कोरिया सहित कई देशों में पहले से इस्तेमाल हो रही हैं। इनमें ट्रेन के पटरियों के कुछ इंच ऊपर तैरते हुए दौड़ने के लिए इलेक्ट्रोमैग्नेट्स का उपयोग होता है।
एलन मस्क ने दिया था हाइपरलूप का आइडिया!
हाइपरलूप का कॉन्सेप्ट हालांकि कई सालों से मौजूद रहा है लेकिन 2013 में एलोन मस्क ने इसे लोकप्रिय बनाया। 2013 में स्पेसएक्स के संस्थापक और टेस्ला के सीईओ एलोन मस्क ने हाई-स्पीड परिवहन प्रणाली पर एक श्वेत पत्र जारी किया, जिसके बाद हाइपरलूप तकनीक में दुनिया की रुचि जगी
मस्क ने लोगों और माल के परिवहन के लिए अमेरिका के लॉस एंजिल्स और सैन फ्रांसिस्को के बीच एक सेवा शुरू करने का प्रस्ताव रखा, जो हाई-स्पीड रेल लिंक से सस्ता और तेज होगा।
इस विचार के आधार पर हाइपरलूप सपने को साकार करने के लिए 2014 में ‘हाइपरलूप वन’ कंपनी की स्थापना की गई थी। हालांकि, वर्जिन के संस्थापक रिचर्ड ब्रैनसन से सहयोग प्राप्त करने वाली कंपनी को पिछले साल काम बंद करना पड़ा। यह परियोजना संकट में पड़ गई।
वैसे, तमाम चुनौतियों के बावजूद, हाइपरलूप ने भारत सहित दुनिया के अन्य देशों का ध्यान खींचा है। इसी साल सितंबर में नीदरलैंड स्थित हाइपरलूप कंपनी हार्ड्ट ने वीनदम में अपने यूरोपीय हाइपरलूप केंद्र में किसी वाहन के इस तकनीक के साथ पहले सफल परीक्षण की जानकारी दी। मस्क की अपनी फर्म द बोरिंग कंपनी भी भूमिगत सुरंगों का उपयोग करके हाइपरलूप तकनीक पर शोध कर रही है।
भारत का हाइपरलूप का सपना…
हाइपरलूप सिस्टम भविष्य में भारत के लिए बेहद उपयोगी साबित हो सकता है। भारत में इसके आगमन से न सिर्फ भारतीय परिवहन प्रणाली बदल सकती है बल्कि यह पर्यावरण के अनुकूल और काफी किफायती साधन भी साबित हो सकेगा।
मौजूदा स्थिति की बात करें तो आईआईटी मद्रास के डिस्कवरी कैंपस में बनाए गए इस टेस्टिंग ट्रैक को भारतीय रेलवे, आईआईटी मद्रास की अविष्कार हाइपरलूप टीम और TuTr हाइपरलूप स्टार्टअप की साझेदारी से तैयार किया गया है। इस 410 मीटर लंबे ट्रैक पर टेस्ट शुरुआत सबसे पहले 100 किलोमीटर प्रति घंटा की गति से की जाएगी। इसके बाद दूसरे चरण में और लंबे ट्रैक पर 600 किलोमीटर प्रति घंटे तक की रफ्तार तक का टेस्ट किया जाएगा।