वॉशिंगटन: अमेरिका की एक अदालत ने फैसला सुनाते हुए कहा है कि गूगल ने अपनी प्रतिस्पर्धा को खत्म करने और ऑनलाइन सर्च और विज्ञापन में एकाधिकार बनाए रखने के लिए गलत तरीके का सहारा लिया है।
कोर्ट के तरफ से यह फैसला गूगल जैसी बड़ी टेक कंपनी के लिए यह एक बड़ा झटका हो सकता है। इस फैसले से कंपनी के काम करने के तरीकों में भी बदलाव हो सकता है।
दरअसल, साल 2020 में अमेरिकी न्याय विभाग द्वारा गूगल के खिलाफ मुकदमा दायर किया गया था। ऑनलाइन सर्च बाजार पर लगभग 90 फीसदी कंट्रोल करने के आरोप में गूगल के खिलाफ मुकदमा दायर किया गया था जिस पर अब जाकर कोर्ट का फैसला आया है।
बता दें कि अमेरिकी एंटीट्रस्ट अधिकारी ने इंडस्ट्री में प्रतिस्पर्धा बढ़ाने के लिए काम कर रहे हैं। ऐसे में गूगल के खिलाफ किया गया यह मुकदमा उन मुकदमों में शामिल है जो दुनिया के सबसे बड़ी टेक कंपनी गूगल के खिलाफ दायर की गई है।
हालांकि यह अभी तय नहीं हुआ है कि गूगल और उसकी मूल कंपनी अल्फाबेट के खिलाफ कोर्ट क्या आदेश देगा। इस सिलसिले में अगली सुनवाई में इस पर फैसला होगा।
कोर्ट ने क्या कहा
फैसला सुनाते हुए अमेरिकी जिला न्यायाधीश अमित मेहता ने कहा है कि स्मार्टफोन और ब्राउजर पर डिफ़ॉल्ट सर्च इंजन बने रहने के लिए गूगल ने अरबों डॉलर का भुगतान किया है जिससे बाजार की प्रतिस्पर्धा प्रभावित हुई है।
जज मेहता ने गूगल को एक एकाधिकारवादी बताया जो अपने एकाधिकार को बनाए रखने के लिए काम करता है। संघीय नियामकों ने मेटा, अमेजन और एपल जैसी बड़ी टेक कंपनियों पर एकाधिकारवादी होने का आरोप लगाते हुए उनके खिलाफ अन्य मुकदमे भी दायर किए हैं।
कोर्ट यह दे सकता है आदेश
अमेरिकी जिला अदालत ने गूगल को अवैध एकाधिकार के गलत इस्तेमाल का दोषी पाया है। हालांकि अभी यह साफ नहीं हुआ है कि गगूल को कोर्ट के तरफ से क्या निर्देश दिया जा सकता है लेकिन इसे लेकर कुछ बातें सामने आ रही है।
जब कभी भी कोई यूजर नया फोन लेता है और उसे पहली बार चालु करता है तो उसे उसमें कुछ चीजें डिफॉल्ट के तौर पर मिलती है। इसी तरीके से यूजर को डिफॉल्ट के तौर पर डिफॉल्ट सर्च इंजन भी फोन में डाली मिलती है।
इस डिफॉल्ट सर्च इंजन के फोन में मौजूद होने से यूजर के पास गूगल के सर्च इंजन को इस्तेमाल करने के अलावा और कोई दूसरा विकल्प नहीं बचता है।
यूजरों को मिलेगा यह विकल्प
इससे जुड़े जानकारों का कहना है कि ऐसा हो सकता है कि कोर्ट यह आदेश दे दे कि अमेरिकी एंड्रॉइड यूजर को उनके फोन में डिफॉल्ट सर्च इंजन के रूप में अन्य विकल्प भी दिया जाए न कि केवल उन्हें बाई डिफॉल्ट गूगल सर्च इंजन ही मिले।
यही नहीं कुछ और जानकारों का यह भी कहना है कि यह भी हो सकता है कि कोर्ट अल्फाबेट के अन्य उत्पादों जैसे एंड्रॉइड या क्रोम से गूगल को अलग करने का भी निर्देश दे दे।
दोहरा सकता है 1984 का एटी एंड टी का केस
अगर कोर्ट अल्फाबेट के अन्य उत्पादों को अलग करने का निर्देश दे देता है तो यह 1984 के अमेरिकी टेलीकॉम कंपनी एटी एंड टी के उस मामले की तरह ही होगा जिसमें कोर्ट के फैसले के बाद कंपनी का विभाजन हुआ था जिसके बाद अमेरिका में कई छोटी और स्वतंत्र क्षेत्रीय फोन कंपनियां बनी थी।
कोर्ट के फैसले के बाद बाजार में व्यापक गिरावट के बीच अल्फाबेट के शेयरों में 4.5 फीसदी की गिरावट देखी गई है। बता दें कि 2023 में अल्फाबेट की कुल बिक्री में गूगल विज्ञापन का हिस्सा 77 प्रतिशत था।
अमेरिकी न्याय विभाग के वकील ने क्या दलील दी है
सोमवार को कोर्ट का यह फैसला 10 हफ्ते से चलने वाले केस के बाद आया है। अमेरिकी न्याय विभाग के वकील ने कहा है कि गूगल सालाना 10 अरब डॉलर केवल इस बात के लिए खर्च करता है कि वह एपल और सैमसंग जैसे प्लेटफार्मों पर डिफ़ॉल्ट सर्च इंजन के तौर पर बना रहे।
इससे कंपनी को भारी संख्या में यूजर का डेटा मिलता है। यही नहीं इस खर्च के जरिए गूगल ने बाजार में से सार्थक प्रतिस्पर्धा को भी रोकने में कामयाबी हासिल की है। वकील ने आगे कहा कि गूगल सर्च इंजन के रिजल्ट पर दिखाने वाले विज्ञापनों से कंपनी को हर साल अच्छा मुनाफा होता है।
गूगल के वकील ने क्या कहा है
गूगल के वकीलों ने कंपनी का बचाव करते हुए दावा किया यूजर गूगल के सर्च इंजन को पंसद करते हैं क्योंकि यह उनके लिए काफी उपयोगी साबित होता है। वकील ने यह भी कहा है कि गगूल का सर्च इंजन बाजार में उपलब्ध होने वाले अन्य सर्च इंजन से कहीं बेहतर है, इसलिए यह यूजरों की पहली पसंद हैं।
गूगल के वकील ने यह भी कहा है कि ऐसा नहीं है कि गूगल सर्च इंजन को प्रतिस्पर्धा का सामना नहीं करना पड़ता है, बल्कि बिंग सर्च जैसे अन्य सर्च इंजन से इसे भारी प्रतिस्पर्धा भी मिलती है।
फैसले के खिलाफ अपील करेगा अल्फाबेट
मामले में अल्फाबेट ने कहा है कि गूगल यूजर को सबसे अच्छा और बेहतर सर्च इंजन प्रदान करता है और इसे आसानी से एक्सेस किए जाने के लिए इसे अनुमति दी जानी चाहिए। अल्फाबेट ने कोर्ट के इस फैसले के खिलाफ अपील करने की योजना बनाई है।
फैसले सुनाते हुए जज मेहता ने कहा है कि डिफॉल्ट सर्च इंजन बनने के लिए भारी कीमत चुकाई जाती है। इस तरह की कीमत चुकाने के बाद बाजार में प्रतिस्पर्धा खत्म हो जाती है क्योंकि हर कंपनी के पास इतने पैसे नहीं है कि वे इतने पैसे खर्च कर गूगल की तरह डिफॉल्ट सर्च इंजन पर बने रह सके।
गूगल के एक और मामले में सितंबर में होगी सुनवाई
गूगल विज्ञापन से जुड़े एक और अन्य मामले में सिंतबर में सुनवाई होने वाली है। बता दें कि इससे पहले भी गूगल पर इस तरह के आरोप लग चुके हैं जिसमें उसे यूरोप में भारी जुर्माना भी देना पड़ा था।
फैसले पर क्या मिली है प्रतिक्रिया
कोर्ट के इस फैसले को अमेरिकी अटॉर्नी जनरल मेरिक गारलैंड ने ऐतिहासिक जीत बताया है। उन्होंने कहा है कि कोई भी कंपनी कानून से ऊपर नहीं है और न्याय विभाग अविश्वास कानूनों को लागू करना जारी रखेगा।
फैसले पर व्हाइट हाउस की भी प्रतिक्रिया सामने आई है और इसे प्रतिस्पर्धा की जीत करार दिया गया है। गौर करने वाली बात यह है कि पूर्व राष्ट्र्पति डोनाल्ड ट्रंप के शासन के दौरान यह मामला शुरू हुआ था।
सर्च इंजन के टॉप प्लेयर
एक रिपोर्ट के अनुसार, इंटरनेट पर ऑनलाइन सर्च का बाजार लगभग 200 बिलियन डॉलर का है।
1. गगूल-लगभग 91 फीसदी मार्केट शेयर
2. माइक्रोसॉफ्ट बिंग- लगभग 3 फीसदी मार्केट शेयर
3. बैदू (चीन)- लगभग 1.5-2 फीसदी मार्केट शेयर
4. याहू- लगभग 1-1.5 फीसदी मार्केट शेयर
5. यैंडेक्स- लगभग 1-1.5 फीसदी मार्केट शेयर
कोर्ट के फैसले के किसे होगा फायदा
अदालत का यह फैसला कई मायनों में महत्वपूर्ण है। अमेरिकी न्याय विभाग और गूगल के बीच करीब एक साल तक चलने वाला यह मुकदमा पिछले 25 सालों में अमेरिका में सबसे बड़े अविश्वास के केसों में से एक है।
अगर कोर्ट के तरफ से गूगल को कोई आदेश दिया जाता है और इससे उसके सर्च इंजन पर प्रभाव पड़ता है तो इसका सीधा फायदा माइक्रोसॉफ्ट के बिंग को होगा। ऐसा इसलिए क्योंकि माइक्रोसॉफ्ट एज ब्राउजर पर माइक्रोसॉफ्ट बिंग एक प्रमुख सर्च इंजन है जिसे इस फैसले का सीधा लाभ मिलेगा।