माइक्रोसॉफ्ट कॉरपोरेशन (Microsoft Corporation) और गूगल एलएलसी (Google LLC) ने दिल्ली हाई कोर्ट के उस आदेश को चुनौती दी है जिसमें इनसे विशेष यूआरएल पर जोर दिए बिना मौजूदा तकनीक की मदद से इंटरनेट से गैर-सहमति वाली अंतरंग तस्वीरों (एनसीआईआई) को हटाने का निर्देश दिया गया था। हाई कोर्ट ने इस बाबत दोनों कंपनियों को गुरुवार को सिंगल बेंच के पास पुनर्विचार याचिका दायर करने को कहा है। अपीलकर्ता कंपनियों ने इस बात पर जोर दिया है कि ऐसी तकनीक अभी विकसित होने की प्रक्रिया में है, और अभी तक यह पूरी तरह से सही नहीं है।
माइक्रोसॉफ्ट, गूगल क्यों पहुंचे हैं हाई कोर्ट…क्या है पूरा मामला?
अपील करने वाली दोनों दिग्गज टेक कंपनियों ने उच्च न्यायालय की सिंगल जज की पीठ के 26 अप्रैल, 2023 के एक आदेश को चुनौती दी है। दरअसल, पिछले साल जस्टिस सुब्रमण्यम प्रसाद की सिंगल बेंच ने आदेश दिया था कि सर्च इंजन उस कन्टेन्ट को हटाने के लिए शिकायतकर्ता से विशेष तौर पर वेबसाइट लिंक की मांग पर जोर नहीं दे सकते, जिसे हटाने का निर्देश दिया गया हो। जस्टिस प्रसाद ने यह भी कहा था कि शिकायतकर्ताओं के अदालत से हस्तक्षेप की बार-बार मांग किए बिना भी गैर-सहमति वाली अंतरंग छवियों को हटाने के लिए आवश्यक तकनीक सर्च इंजनों के पास मौजूद है।
हालांकि, माइक्रोसॉफ्ट और गूगल ने गुरुवार को हाई कोर्ट को बताया कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस तकनीक अभी पूरी तरह से सही नहीं हैं और इस काम के लिए उसे विकसित करने में एक साल या उससे अधिक समय लग सकता है।
माइक्रोसॉफ्ट की ओर से पेश हुए वकील जयंत मेहता ने अदालत को बताया, ‘यह कहना कि आपको आज ही यह करना होगा अन्यथा आपकी इम्यूनिटी (सूचना प्रौद्योगिकी नियमों के तहत) खत्म हो जाएगा, ऐसा नहीं हो सकता। यह काम चल रहा है और मैं उस तक पहुंचने का प्रयास कर रहा हूं। लेकिन यह कहना कि मुझे यह आज ही करना होगा, उचित नहीं है।’
वहीं, Google की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता अरविंद निगम ने कहा कि इंसान की आंखों की तरह एक स्वचालित एल्गोरिदम नहीं पढ़ सकता। यह रिजॉल्यूशन, कॉन्फिगरेशन, वॉटरमार्क आदि पर निर्भर करता है। मैंने यह सब बताते हुए सिंगल जज के सामने हलफनामा दायर किया था लेकिन तर्क खारिज कर दिया गया था।’
‘द हिंदू’ की रिपोर्ट के अनुसार, गूगल ने इससे पहले अदालत को बताया था कि गैर-सहमति वाली अंतरंग तस्वीरों की वैधता उस संदर्भ पर निर्भर करती है जिसमें इसे खींचा गया या साझा किया गया था, जबकि बाल यौन शोषण की सामग्री सभी जगहों पर गैरकानूनी है। टेक कंपनी ने अदालत को बताया कि इसी वजह से गैर-सहमति वाली अंतरंग तस्वीरें रोकने के तमाम प्रयासों के बावजूद इंटरनेट पर वे फिर से दिखाई दे सकती हैं।
बहरहाल, गुरुवार को दलीलें सुनने के बाद कार्यवाहक चीफ जस्टिस मनमोहन और जस्टिस मनमीत पीएस अरोड़ा की खंडपीठ ने कंपनियों से कहा कि वे सिंगल जज पीठ के सामने पिछले साल के आदेश पर पुनर्विचार के लिए याचिका दायर करें। अदालत ने कहा, ‘हमारा विचार है कि अपीलकर्ताओं (माइक्रोसॉफ्ट और गूगल) के लिए रिव्यू पिटिशन दायर करना और तथ्यों को सिंगल जज के सामने लाना उचित होगा। यदि अपीलकर्ता पुनर्विचार याचिका में सिंगल जज के आदेश से संतुष्ट नहीं होते हैं तो वे वर्तमान याचिका को लेकर सुनवाई की मांग कर सकते हैं।’
महिला की याचिका पर पिछले साल आया था आदेश
अप्रैल 2023 का सिंगल जज की पीठ का आदेश एक महिला की याचिका पर आया था। इसमें उसकी अंतरंग तस्वीरें दिखाने वाली कुछ साइटों को ब्लॉक करने और एक शख्स के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने की मांग की गई थी। महिला का कहना था कि वह सोशल मीडिया के माध्यम से इस आरोपी शख्स से परिचित हुई थी।
पिछले साल के फैसले में कोर्ट की ओर से सर्च इंजनों को लेकर यह भी कहा गया कि उन्हें तकनीक नहीं होने की बात कहकर अपने वैधानिक दायित्वों से बचने की अनुमति नहीं दी जा सकती है। कोर्ट ने कहा था कि आवश्यक तकनीक नहीं होने की कंपनियों की बात सुनवाई के दौरान स्पष्ट रूप से झूठ लगी।