रांचीः झारखंड की राजधानी रांची में 34वें राष्ट्रीय खेलों के लिए 2006-2008 के बीच बनाए गए मेगा स्पोर्ट्स कॉम्प्लेक्स में कथित अनियमितताओं की जांच को लेकर सीबीआई की क्लोजर रिपोर्ट पर विशेष अदालत ने सख्त आपत्ति जताई है। अदालत ने मेगा कॉम्पलेक्स पर रिपोर्ट को आधी-अधूरी बताते हुए कहा कि इसे बिना पूरी जांच और जरूरी गवाहों से पूछताछ किए ही दाखिल कर दिया गया। परियोजना की लागत में भारी बढ़ोतरी और सरकारी धन के गबन के आरोपों की सही तरीके से जांच न करने पर कोर्ट ने सीबीआई को कड़ी फटकार लगाई।
कितने करोड़ के गबन का आरोप
इस परियोजना के निर्माण के दौरान सरकारी धन के गबन के आरोप लगाए गए थे। शुरुआती अनुमान में इस परियोजना की लागत 206 करोड़ रुपये आंकी गई थी, लेकिन बाद में यह बढ़कर 425 करोड़ रुपये हो गई। इसके अलावा, निर्माण कार्य के लिए परामर्शदाता कंपनी और अन्य कंपनियों की नियुक्ति में भी अनियमितताओं के आरोप लगाए गए थे। यह राष्ट्रीय खेल 12 फरवरी से 26 फरवरी, 2011 के बीच आयोजित हुए थे।
विशेष न्यायाधीश प्रभात कुमार शर्मा ने पिछले महीने अपने आदेश में कहा कि सीबीआई ने संबंधित लोगों से पूछताछ किए बिना ही फाइनल क्लोजर रिपोर्ट प्रस्तुत कर दी। अदालत ने यह भी कहा कि “यह नहीं कहा जा सकता कि जांच सही ढंग से की गई है।”
कब शुरू हुई जांच
सीबीआई की जांच झारखंड हाईकोर्ट द्वारा अप्रैल 2022 में दायर की गई कुछ जनहित याचिकाओं के आधार पर शुरू की गई थी। दिसंबर 2023 में, सीबीआई ने इस मामले में क्लोजर रिपोर्ट दाखिल की थी। जांच एजेंसी की 27 दिसंबर की क्लोजर रिपोर्ट के अनुसार, “जांच के दौरान किसी भी व्यक्ति या सरकारी अधिकारी की ओर से कोई आपराधिकता नहीं पाई गई।”
सीबीआई अदालत ने क्या कहा?
हालांकि, इस साल 9 सितंबर को रांची की सीबीआई अदालत ने कहा, “जांच उचित तरीके से नहीं की गई है, क्योंकि साक्ष्य जुटाने के लिए आईओ (जांच अधिकारी) ने कानून द्वारा निर्धारित तरीके का पालन नहीं किया।” अदालत ने कहा कि जांच अधिकारी ने उन गवाहों को नजरअंदाज किया, जिनके बारे में शिकायत में उल्लेख किया गया था और जिन्हें पूछताछ के लिए शामिल किया जाना चाहिए था।
अदालत ने निर्देश दिया कि सभी याचिकाकर्ताओं के बयान दर्ज किए जाएं और उन्हें रिकॉर्ड पर रखा जाए। अदालत ने यह भी कहा कि वित्तीय लेन-देन का विवरण जुटाकर रिकॉर्ड पर रखा जाना चाहिए, साथ ही उन अधिकारियों और व्यक्तियों के नाम भी जिनका निविदा आवंटन में योगदान था, जिन्होंने भुगतान के बिलों पर हस्ताक्षर किए थे और किसी भी लाभ का फायदा उठाया हो।
जनवरी 2008 में, झारखंड विधानसभा की एक समिति द्वारा प्रस्तुत एक रिपोर्ट में परियोजना की लागत में इतनी बड़ी वृद्धि का कारण सरकार की उदासीनता, अधिकारियों की लापरवाही, और योजना, डिज़ाइन और निर्माण के लिए परामर्शदाताओं और ठेकेदारों पर पूरी तरह से निर्भरता बताया गया था। यह रिपोर्ट भी उच्च न्यायालय में दायर जनहित याचिकाओं में प्रस्तुत की गई थी।
रिपोर्ट में कहा गया कि परियोजना की लागत में 150 प्रतिशत की वृद्धि हुई, जो नियमों, कोड और परंपराओं के उल्लंघन का स्पष्ट उदाहरण है। इसमें यह भी कहा गया कि जिम्मेदार व्यक्तियों की पहचान कर उन्हें दंडित और सुधारात्मक कार्रवाई की जानी चाहिए।
सीबीआई ने क्या कहा है?
सीबीआई ने अपनी जांच में उन आरोपों की भी जांच की, जिसमें एक परामर्शदाता कंपनी की चयन प्रक्रिया को लेकर सवाल उठाए गए थे। इस कंपनी को परियोजना के डिज़ाइन और निगरानी के लिए चुना गया था, जबकि एक अन्य कंपनी, जिसने चयन मानकों पर बेहतर अंक प्राप्त किए थे, उसे इस आधार पर खारिज कर दिया गया था कि उसने निविदा जमा करने के दौरान आवश्यक कागजात प्रस्तुत नहीं किए। CBI ने अपनी क्लोजर रिपोर्ट में कहा, “इस आरोप के संबंध में किसी भी सरकारी अधिकारी पर पद का दुरुपयोग साबित करना संभव नहीं है।”