रायपुर में एक मशरूम निर्माण प्लांट से बाल तस्करी और शोषण का चौंकाने वाला मामला सामने आया है। राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी), महिला एवं बाल विकास मंत्रालय (डब्ल्यूसीडी), पुलिस और स्वयंसेवी संस्था एसोसिएशन फॉर वॉलंटरी एक्शन (एवीए) की संयुक्त टीम ने इस फैक्ट्री पर छापा मारकर 120 से अधिक बच्चों को मुक्त कराया। करीब चार घंटे चले इस अभियान में 14 से 17 साल की उम्र की 80 से ज्यादा लड़कियां और करीब 40 लड़के बचाए गए।
समाचार एजेंसी आईएएनएस की रिपोर्ट के अनुसार, जांच में सामने आया कि अधिकतर बच्चे पश्चिम बंगाल, ओडिशा, मध्य प्रदेश, झारखंड और असम के आदिवासी इलाकों से तस्करी कर लाए गए थे। कई बच्चों की उम्र 17 साल से भी कम थी और कुछ को छह साल से काम करने के लिए मजबूर किया गया था। एवीए ने एनएचआरसी को लिखे पत्र में बताया था कि प्लांट में बच्चों से बंधुआ मजदूर की तरह काम कराया जाता है और उनका शोषण होता है, जिसके बाद कार्रवाई की शुरुआत हुई।
गंदे कमरे में ठूस कर रखा जाता था, 15 घंटे कराया जाता था काम
बचाए गए बच्चों ने बताया कि उन्हें फैक्ट्री के भीतर ही एक छोटे, गंदे कमरे में ठूंस कर रखा जाता था और रोजाना 12 से 15 घंटे काम कराया जाता था। खाना ठीक से नहीं दिया जाता था और सुरक्षा उपकरण भी उपलब्ध नहीं कराए जाते थे। शिकायत के तुरंत बाद एनएचआरसी सदस्य प्रियांक कानूनगो ने रायपुर के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक से संपर्क किया और डीएसपी नंदिनी ठाकुर के नेतृत्व में छापेमारी की गई। बच्चों को सुरक्षित स्थान पर ले जाकर काउंसलिंग शुरू कर दी गई है।
जस्ट राइट्स फॉर चिल्ड्रन के संस्थापक भुवन रिभु ने कहा, “कल्पना कीजिए 14 साल के उस बच्चे की जिसे कड़ाके की ठंड में 12–15 घंटे काम कराया गया। यह तस्करी के संगठित अपराध का सबसे भयावह चेहरा है। विकसित भारत की राह में यह सबसे बड़ी बाधा है। इस कार्रवाई के लिए मैं एनएचआरसी, लोकल पुलिस और एवीए को बधाई देता हूं।”
बिना सुरक्षा कराया जाता था जोखिमभरा काम
मोजो मशरूम नाम की यह इकाई कम तापमान पर मशरूम उत्पादन के लिए जानी जाती है। यहां तीन मंजिला जालियों वाली मशीनों में मशरूम के पैकेट रखे जाते थे। बच्चों को इन्हीं जालियों पर चढ़कर पैकेट टांगने को कहा जाता था, वह भी बिना किसी सुरक्षा उपकरण के। जांच टीम ने बताया कि प्लांट में कैंसरकारी रसायनों का इस्तेमाल भी होता था, जिनके संपर्क में आने या सांस लेने से गंभीर बीमारी हो सकती है।
सूत्रों के मुताबिक जुलाई की शुरुआत में भी इसी इकाई पर छापेमारी हुई थी और तब भी कई मजदूरों को बचाया गया था, लेकिन मालिक के खिलाफ कानूनी कार्रवाई नहीं की गई। तब से एवीए लगातार निगरानी कर रहा था और सबूत इकट्ठा करने के बाद यह बड़ी कार्रवाई संभव हो पाई।

