नई दिल्ली: भारत में जरूरी दवाओं की बाजार कीमत विनियमित करने वाली राष्ट्रीय औषधीय मूल्य निर्धारण प्राधिकरण (एनपीपीए) ने हाल में 8 दवाइयों की कीमत 50 प्रतिशत तक बढ़ा दी है। ये ऐसी दवाएं हैं जो अस्थमा, टीबी, बाइपोलर डिसऑर्डर, ग्लूकोमा और थैलेसीमिया जैसी बीमारियों के इलाज के लिए इस्तेमाल में लाई जाती हैं।
केंद्र सरकार ने असाधारण परिस्थितियों और जनहित का हवाला देते हुए इन दवाओं के दाम बढ़ाने का आदेश पारित किया। एनपीपीए केंद्रीय रसायन और उर्वरक मंत्रालय के तहत फार्मास्यूटिकल्स विभाग के अंतर्गत आता है। सरकारी की ओर से विज्ञप्ति में कहा गया है कि उसने व्यापक सार्वजनिक हित में इन दवाओं की कीमतें बढ़ाई है। अब सवाल है कि जब ये दवाएं बेहद आम बिमारियों की हैं और बड़ी संख्या में इस्तेमाल में लाई जाती हैं तो फिर दाम क्यों बढ़ाए गए? कीमत बढ़ने से ये कितनी महंगी हुईं? आइए इसे विस्तार से समझते हैं।
50% की वृद्धि के बाद कितनी महंगी हुई दवाएं?
सबसे पहले ये हमें जानना होगा कि जिन दवाओं के दाम बढ़ाए गए हैं, वे बहुत महंगी नहीं हैं। इसलिए अधिकतम कीमतों में 50 प्रतिशत की वृद्धि के बावजूद लोगों पर बहुत अधिक इसका असर पड़ने की संभावना नहीं है। इन दवाओं की कीमत 1.02 रुपये प्रति एमएल सॉल्यूशन से लेकर 16.25 रुपये प्रति एमएल ड्रॉप तक होगी। हालांकि एक महंगी दवा डेस्फेरोक्सामाइन (Desferroxamine) जरूर है जिसकी कीमत अब 280 रुपये प्रति शीशी से थोड़ी अधिक होगी।
यहां ये भी जानना जरूरी है कि एनपीपीए का उद्देश्य किफायती कीमतों पर आवश्यक दवाओं की उपलब्धता सुनिश्चित करना है। इसका गठन 1997 में किया गया था। एनपीपीए के पास आवश्यक वस्तु अधिनियम के तहत सरकार द्वारा जारी किए गए ‘ड्रग प्राइस कंट्रोल ऑर्डर’ (डीपीसीओ) के अनुसार अधिकतम कीमत को नियंत्रित करने का अधिकार है। केंद्र सरकरा ने बताया है कि दवाओं की कीमत बढ़ाने का फैसला 8 अक्टूब की एक मीटिंग के बाद किया गया।
सरकार ने कीमत बढ़ाने के लिए पीसीसीओ-2013 के पैरा-19 में दी गई असाधारण शक्तियों का प्रयोग किया। एनपीपीए ने आठ दवाओं के ग्यारह शेड्यूल्ड फॉर्मूलेशन की अधिकतम कीमतों में 50 प्रतिशत की वृद्धि को मंजूरी दे दी। बताया गया कि ऐसा फैसला व्यापक जनहित में किया गया।
क्यों बढ़ाई गई दवाओं की कीमत?
एनपीपीए के अनुसार इन दवाओं को बनाने वाली कंपनियों की ओर से मिले अनुरोध के बाद कीमतें बढ़ाने का फैसला किया गया। कंपनियों ने तर्क दिया था कि इन दवाओं के निर्माण में इस्तेमाल होने वाली सामग्री की कीमतों में वृद्धि से उत्पादन लागत बढ़ी है। कंपनियों ने कहा था कि कम कीमतों पर बिक्री की वजह से इन दवाओं का निर्माण मुश्किल होता जा रहा है। 8 अक्टूबर की मीटिंग के विवरण में यह भी कहा गया है कि, ‘कंपनियों ने इस वजह से कुछ फॉर्मूलेशन को बंद करने के लिए भी आवेदन किया है।’
किन-किन दवाओं की कीमत बढ़ी है?
कुल 8 दवाओं की कीमत 50 प्रतिशत तक बढ़ाई गई है, जो ग्यारह फॉर्मूलेशन में उपलब्ध हैं। इनमे शामिल है-
1. बेंजिलपेनिसिलिन (Benzylpenicillin): यह निमोनिया, डिप्थीरिया और सिफलिस सहित कई जीवाणु संक्रमणों के इलाज के लिए उपयोग किए जाने वाले इंजेक्शन के लिए पाउडर के रूप में उपलब्ध होता है।
2. एट्रोपाइन (Atropine): यह एक इंजेक्शन हैस जिसके कई प्रकार के इस्तेमाल होते हैं। इसमें कुछ विषाक्तता (poisoning) के उपचार से लेकर सर्जरी के दौरान रिस्पायरेट्री टैक्ट (सांस की नली) में लार और तरल पदार्थ को कम करने सहित इमरजेंसी रूम में स्लो हार्ट रेट के इलाज शामिल है।
3. स्ट्रेप्टोमाइसिन: इस दवा के दो पाउडर फॉर्मूलेशन है। इसका उपयोग तपेदिक (टीबी) सहित विभिन्न संक्रमणों के इलाज के लिए किया जाता है।
4. साल्बुटामोल: इस दवा के दो टैबलेट और एक रेस्पिरेटर सॉल्यूशन फॉर्मूलेशन का उपयोग अस्थमा या क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज के रोगियों में श्वसन संबंधी लक्षणों से राहत देने के लिए किया जाता है।
5. पिलोकार्पाइन (Pilocarpine): इस दवा की बूंदों का उपयोग आंखों में ग्लूकोमा जैसी स्थिति के इलाज के लिए किया जाता है।
6. सेफैड्रोक्सिल: ये एंटी-बैक्टीरियल गोलियां हैं जिनका उपयोग त्वचा, गले और मूत्र के रास्ते में संक्रमण के इलाज के लिए किया जाता है।
7. डेस्फेरोक्सामाइन: यह पाउडर रूप में उपलब्ध होता है। इसका इस्तेमाल इंजेक्शन के तौर पर थैलेसीमिया जैसी स्थितियों वाले लोगों में आयरन की अधिकता होने पर इलाज के लिए किया जाता है।
8. लिथियम (Lithium): इस टैबलेट का इस्तेमाल कई मानसिक बीमारियों जैसे- किसी प्रकार का मैनिया या बाइपोलर डिसऑर्डर के इलाज के लिए किया जाता है।