नई दिल्ली: वो साल 2011 का था जब प्रशांत किशोर संयुक्त राष्ट्र में एक पब्लिक हेल्थ अधिकारी की नौकरी को छोड़ गुजरात के तब के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी की टीम से जुड़े। धीरे-धीरे एक दमदार चुनावी रणनीतिकार की छवि बनी और अब वो पूरी तैयारी के साथ खुद नेतागिरी के मैदान में उतर चुके हैं। उन्होंने अपनी पार्टी को औपचारिक तौर पर लॉन्च कर दिया है।
प्रशांत किशोर लॉन्च की अपनी पार्टी
प्रशांत किशोर ने दो अक्टूबर (बुधवार) को अपनी राजनीतिक पार्टी की घोषणा की, जिसकी तैयारी वे पिछले कई महीनों से कर रहे थे। उन्होंने इसका नाम ‘जन सुराज पार्टी’ दिया है। पार्टी अगले साल बिहार विधानसभा चुनाव में हिस्सा लेगी। यह भी बताया गया कि मनोज भारती पार्टी के कार्यकारी अध्यक्ष होंगे। अगले साल बिहार विधानसभा चुनाव में उनकी पार्टी सभी 243 सीटों पर चुनाव लड़ेगी। प्रशांत किशोर ने इस मौके पर कहा कि उनकी पार्टी में ऐसे लोगों का स्वागत है, जो बिहार में परिवर्तन लाना चाहते हैं। उन्होंने यह भी कहा कि जुन सुराज पार्टी की विचारधारा मानवता है और यहां सभी जाति के लोग आए हैं।
अपनी पार्टी से पहले जदयू के साथ किया था सियासी डेब्यू
प्रशांत किशोर का सियासी डेब्यू 2018 में ही हो गया था जब वे नीतीश कुमार की पार्टी जदयू से जुड़े। उन्हें पार्टी का राष्ट्रीय उपाध्यक्ष भी शामिल होने के एक महीने के अंदर बना दिया गया था। चर्चा यहां तक शुरू हो गई थी कि वे पार्टी में नीतीश के उत्तराधिकारी बन सकते हैं। हालांकि, नीतीश और प्रशांत किशोर का ये गठबंधन बमुश्किल डेढ़ साल ही चल सका। साल 2020 की शुरुआत में प्रशांत किशोर को जदयू से निष्कासित कर दिया गया।
इसके कुछ महीनों बाद प्रशांत किशोर के कांग्रेस से भी जुड़ने की अटकलें लगी। राहुल गांधी से लेकर सोनिया गांधी से मुलाकातों ने इसे और हवा दी। हालांकि बात नहीं बनी और इसके बाद प्रशांत किशोर ने किसी और दरवाजे को खटखटाने से बेहतर अपनी नई यात्रा शुरू करने की ठान ली। दो अक्टूब 2022 यानी गांधी जयंती के दिन से प्रशांत किशोर की जन सुराज यात्रा शुरू हुई और अब पार्टी में ये तब्दील हो गई है।
बिहार विधानसभा चुनाव पर नजर
प्रशांत किशोर ने पार्टी को उस समय लॉन्च किया है जब अगले बिहार विधानसभा चुनाव में करीब एक साल का वक्त रह गया है। यह चुनाव कई मायनों में खास रहने वाला है। नीतीश कुमार का सियासी भविष्य ये चुनाव तय करेगा। लोकसभा चुनाव-2024 में कमजोर प्रदर्शन के बाद बिहार में भाजपा का भविष्य क्या होने जा रहा है, ये भी देखना अहम होगा।
इसके अलावा राजद पर तो नजर होगी ही लेकिन सबसे दिलचस्प देखना ये होगा कि क्या प्रशांत किशोर बड़ा फैक्टर इस चुनाव में साबित होंगे? दिल्ली में जो कमाल आम आदमी पार्टी ने किया है क्या वैसी कोई गुंजाइश प्रशांत किशोर के लिए बिहार में है? बिहार की राजनीति दिल्ली से काफी अलग है। प्रशांत किशोर जैसा रणनीतिकार इससे भली-भांति परिचित है और इसलिए वे एक साथ नीतीश कुमार, भाजपा और लालू परिवार यानी राजद पर हमला बोल रहे हैं।
सफल चुनावी रणनीतिकार
साल 2014 के लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा की बड़ी जीत के बाद प्रशांत किशोर पहली बार पूरे देश में चर्चा का विषय बने। फिर अंदरखाने जाने क्या बात हुई कि इस प्रचंड जीत के कुछ ही महीने बाद किशोर पीएम मोदी की टीम से अलग हो गए। इसके बाद 2015 के बिहार चुनाव में जब भाजपा मोदी की विजय रथ पर सवार होकर बड़ी जीत की उम्मीद कर रही थी, प्रशांत किशोर ने खेल कर दिया। उस चुनाव में राजद-जदयू के गठबंधन में किशोर की भूमिका भी अहम मानी जाती है। इस गठबंधन के आगे भाजपा की सारी रणनीति फेल हो गई।
2014 की जीत के बाद बिहार की जीत ने प्रशांत किशोर का कद बतौर रणनीतिकार और बढ़ा दिया। इसके बाद तो उन्होंने 2017 में पंजाब विधानसभा चुनाव में कैप्टन अमरिंदर सिंह के लिए काम किया। 2019 में आंध्र प्रदेश चुनाव में वाईएसआर कांग्रेस के लिए रणनीति बनाने की जिम्मेदारी संभाली। इसके बाद 2021 का पश्चिम बंगाल के चुनाव का भी नंबर आता है जब उन्होंने तृणमूल कांग्रेस के लिए काम किया। इसके अलावा वे 2020 के दिल्ली चुनाव में आम आदमी पार्टी और 2021 में तमिलनाडु में डीएमके के लिए भी कम कर चुके हैं।
बिहार में जन्म…इंजीनियरिंग की पढ़ाई
प्रशांत किशोर का जन्म बिहार के रोहतास जिले के कोनार गांव में हुआ। पिता डॉक्टर थे। किशोर का परिवार बाद में बिहार के ही बक्सर शिफ्ट हो गया और यही प्रशांत किशोर की स्कूली पढ़ाई-लिखाई हुई। बक्सर भागवान राम की शिक्षा नगरी के तौर पर भी जाना जाता है। गंगा के किनारे बसा बक्सर वही क्षेत्र है जहां स्वामी विश्वामित्र का आश्रम था।
बहरहाल, स्कूली पढ़ाई के बाद प्रशांत किशोर ने हैदराबाद से इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी की और फिर वे संयुक्त राष्ट्र (यूएन) एक हेल्थ प्रोग्राम से जुड़ गए। यूएन में उन्होंने करीब 8 साल नौकरी की। उनकी पोस्टिंग पहले हैदराबाद में ही हुई। इसके बाद पोलियो उन्मूलन कार्यक्रम के लिए बिहार पहुंचे। इसके बाद वे कुछ सालों के लिए अमेरिका चले गए जहां उन्होंने यूएन के मुख्यालय में काम किया। कुछ साल वे मध्य अफ्रीकी देश चाड में भी रहे।