जबलपुर: मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने एक मामले पर सुनवाई करते हुए कहा कि ‘राज्य में जाति-संबंधी हिंसा और भेदभाव वाली बार-बार होने वाली घटनाएँ चौंकाने वाली हैं।’ कोर्ट ने कहा कि इस तरह की हरकतें एक ‘सड़ते सामाजिक ताने-बाने’ को उजागर करती हैं, और जातिगत पहचान का दिखावा पूरे हिंदू समुदाय के लिए नुकसानदेह है।
मध्य प्रदेश हाई कोर्ट की जबलपुर बेंच ने 14 अक्टूबर को दमोह जिले में 11 अक्टूबर की एक घटना का स्वत: संज्ञान लेते हुए यह टिप्पणी की। जिस घटना का कोर्ट ने संज्ञान लिया था, उसमें ओबीसी समुदाय के एक व्यक्ति को कथित तौर पर उच्च जाति के ग्रामीणों द्वारा अपमानित किया गया था और कथित तौर पर एआई-जनरेटेड मीम साझा करने के लिए एक शख्स का पैर धोने के लिए मजबूर किया गया था।
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार जस्टिस अतुल श्रीधरन और जस्टिस प्रदीप मित्तल की पीठ ने मामले में पुलिस द्वारा लगाई गई धाराओं पर भी कड़ा रुख अपनाया और पुलिस सहित जिला प्रशासन को घटना के वीडियो में दिखाई दे रहे सभी लोगों के खिलाफ राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (एनएसए) लगाने का निर्देश दिया।
कोर्ट ने सख्त टिप्पणी करते हुए कहा, ‘यह वही राज्य है जहाँ जनरल कैटेगरी के एक व्यक्ति ने एक आदिवासी शख्स के सिर पर पेशाब कर दिया था, और उस मामले को शांत करने के लिए तत्कालीन मुख्यमंत्री ने पीड़ित के पैर धोए थे। जातिगत पहचान बढ़ रही है। हर समुदाय बार-बार बेशर्मी से अपनी जातिगत पहचान का दिखावा कर रहा है, जो पूरे हिंदू समाज के लिए नुकसानदेह है।
ऐसे तो 150 साल में खत्म हो जाएंगे हिंदू…
कोर्ट ने टिप्पणी की, ‘प्रत्येक जाति अब अपनी पहचान पर गर्व करती है और इसे प्रदर्शित करने में कोई कसर नहीं छोड़ती है।’ कोर्ट ने कहा कि लोग खुद को ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र कहते हैं और अपनी स्वतंत्र पहचान का दावा करते हैं। यदि इस तरह की प्रवृत्ति अनियंत्रित रूप से जारी रही, तो ‘हिंदू आपस में लड़ते हुए 150 साल के भीतर खत्म हो जाएंगे।’
कोर्ट ने आगे कहा, ‘जातीय हिंसा की कई घटनाएँ बढ़ रही हैं। ज्यादातर मामलों में पीड़ित सबसे कम साक्षर और आर्थिक रूप से सबसे ज्यादा गरीब हैं। भारत के मुख्य न्यायाधीश पर जूता फेंकने की घटना, हरियाणा में एक वरिष्ठ अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक द्वारा आत्महत्या, जाति-संबंधी मुद्दों के इस देश में प्रमुखता प्राप्त करने के उदाहरण हैं।’
क्या है पूरा मामला?
लॉ बीट वेबसाइट की रिपोर्ट के अनुसार 10-11 अक्टूबर, 2025 के आसपास दमोह के ग्राम सतरिया में सामान्य वर्ग के अन्नू पांडे को कथित तौर पर नशे में पाया गया और उन पर एक स्वघोषित शराबबंदी गाँव में शराब बेचने का आरोप लगा। इस पर कथित पीड़ित, जो ओबीसी समुदाय से ताल्लुक रखता है, उसने आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का इस्तेमाल करके अन्नू पांडे को जूतों की माला पहने हुए एक मीम बनाया था। हालाँकि आपत्ति के बाद उसने मीम हटा दिया, लेकिन कथित तौर पर ऊँची जाति के ग्रामीणों ने उसकी ‘सजा’ तय करने के लिए एक पंचायत बुलाई।
अदालत के आदेश के अनुसार पंचायत एक मंदिर में बैठी, जहाँ पीड़ित को भीड़ ने घेर लिया। उसे पांडे के पैर धोने के लिए मजबूर किया गया और प्रायश्चित के तौर पर वही पानी पीने के लिए मजबूर किया गया। इस पूरे घटनाक्रम का वीडियो सोशल मीडिया और कई न्यूज वेबसाइट पर भी चला। एक अन्य वीडियो में पीड़ित को दबाव में एक बयान पढ़ते हुए देखा गया, जिसमें वह कह रहा था कि पांडे उसके ‘गुरु’ थे और पूरे विवाद को बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया गया है।
हाई कोर्ट ने कहा कि पुलिस ने शुरू में भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) की धारा 296 और 196 (1) (बी) के तहत एक प्राथमिकी दर्ज की थी। कोर्ट ने इस पर प्रावधानों के चयन की आलोचना की। पीठ ने निर्देश दिया कि बीएनएस की धारा 196 (2), 351, और 133 को एफआईआर में जोड़ा जाए, क्योंकि घटना एक मंदिर के अंदर हुई थी और इसमें जबरदस्ती और बल का प्रयोग शामिल था।