इस्लामाबादः पाकिस्तानी संसद ने गुरुवार, 13 नवंबर को एक व्यापक संवैधानिक संशोधन को मंजूरी दी है। इसके तहत राष्ट्रपति और सेना प्रमुख असीम मुनीर को लाइफटाइम इम्युनिटी (आजीवन छूट) दी गई है। हालांकि आलोचकों ने इसे लेकर चेतावनी दी है कि इससे लोकतांत्रिक नियंत्रण और न्यायिक स्वतंत्रता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा।
संसद में दो-तिहाई बहुमत से पास हुए 27वें संशोधन के तहत रक्षा बलों के एक नए प्रमुख का प्रावधान है। इसके जरिए चीफ ऑफ डिफेंस फोर्सेज (सीडीएफ) का पद बना है। इसके अलावा एक संघीय संवैधानिक न्यायालय की स्थापना करता है।
लाइफटाइम इम्युनिटी का क्या मतलब है?
संविधान संशोधन के तहत हुए बदलावों के जरिए सेना प्रमुख असीम मुनीर को थलसेना, वायुसेना और नौसेना की कमान सौंपी गई है। गौरतलब है कि मुनीर को मई में भारत के साथ पाकिस्तान के संघर्ष के बाद हाल ही में फील्ड मार्शल के पद पर पदोन्नत किया गया था।
राष्ट्रपति और सेना प्रमुख के अलावा अन्य शीर्ष सैन्य अधिकारियों को भी आजीवन सुरक्षा मिलेगी। ऐसे में जानेंगे इसका मतलब क्या है?
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लाइफटाइम इम्युनिटी का मतलब फील्ड मार्शल, वायु सेना मार्शल या बेड़े के एडमिरल के पद पर पदोन्नत कोई भी अधिकारी अब आजीवन पद और विशेषाधिकार बनाए रखेगा। वह आजीवन वर्दी में रहेगा तथा आपराधिक कार्यवाही से उन्मुक्ति का आनंद उठाएगा। यह सुरक्षा पहले केवल राष्ट्राध्यक्ष के लिए आरक्षित थी। अब असीम मुनीर और अन्य अधिकारियों को भी इसका लाभ मिलेगा।
आलोचकों ने क्या कहा है?
इस बीच आलोचकों ने हालांकि इस संशोधन पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए इससे तानाशाही बढ़ने की आशंका जताई है। इस्लामाबाद स्थित वकील ओसामा मलिक ने कहा, “इस संवैधानिक संशोधन से तानाशाही बढ़ेगी और इस देश में लोकतंत्र की जो थोड़ी बहुत झलक बची है वह भी खत्म हो जाएगी।”
समाचार एजेंसी एएफपी ने ओसामा के हवाले से लिखा “इससे न केवल सैन्य गतिविधियों से नागरिक निगरानी समाप्त हो जाएगी बल्कि यह सैन्य पदानुक्रम को भी पूरी तरह नष्ट कर देगा जहां संयुक्त प्रमुख प्रणाली के तहत सभी सेवा प्रमुखों को समान माना जाता था।”
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इस संशोधन के तहत राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी को भी प्रतिरक्षा मिलती है। उन्हें भी सभी तरह के आपराधिक मुकदमे से सुरक्षा मिलेगी।
विधेयक में हालांकि यह स्पष्ट किया गया है कि यदि कोई पूर्व राष्ट्रपति बाद में कोई अन्य सार्वजनिक पद संभालता है तो यह संरक्षण लागू नहीं होगा। गौरतलब है कि जरदारी पर भ्रष्टाचार के कई मामले चल रहे हैं हालांकि उनके खिलाफ कार्यवाही पर पहले रोक लगा दी गई थी। इस संशोधन के तहत जब तक वे कोई अन्य सार्वजनिक पद ग्रहण नहीं करते, उन्हें छूट मिली है।
यह संशोधन न्यायालयों को किसी भी आधार पर किसी भी संवैधानिक परिवर्तन पर सवाल उठाने से रोकता है।

