इस्लामाबाद: पाकिस्तान की नेशनल असेंबली (एनए) ने सभी सशस्त्र सेवा प्रमुखों के कार्यकाल को तीन से बढ़ाकर पांच साल तक करने के एक विधायी संशोधन को मंजूरी दे दी है। इसका मतलब यह होगा कि जनरल असीम मुनीर अब अगले साल 29 नवंबर के बजाय 29 नवंबर, 2027 को सेवानिवृत्त होंगे। उन्होंने लंबी अनिश्चितता के बाद दो साल पहले शीर्ष पद का कार्यभार संभाला था।
पाकिस्तान वायुसेना प्रमुख और पाकिस्तानी नौसेना का कार्यकाल भी अब तीन साल के बजाय पांच साल का होगा। हालांकि, इन दोनों पदों पर कौन रहता है, इसका महत्व नहीं है क्योंकि पाकिस्तानी सेना प्रमुख ही यहां की राष्ट्रीय राजनीति में बड़ी दखल रखता है। बेशक पाकिस्तानी सेना प्रमुख अनौपचारिक रूप से दखल रखता है लेकिन वह विदेशी मामलों की नीतियां सहित निवेश और यहां तक कि घरेलू राजनीति पर भी असर डाल सकता है।
नेशनल असेंबली के कुछ ही घंटों बाद, पाकिस्तान संसद के ऊपरी सदन सीनेट ने भी बिलों के उसी सेट को मंजूरी दे दी। इसके बाद इसे अंतिम मंजूरी के लिए राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी के पास भेज दिया गया।
पाकिस्तान के अखबार ‘द एक्सप्रेस ट्रिब्यून’ की एक रिपोर्ट के अनुसार प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ के नेतृत्व वाली और पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी (पीपीपी) द्वारा समर्थित सरकार इन कानूनों को पारित कराने के लिए बहुत तेज गति से आगे बढ़ी है। सेना प्रमुखों के कार्यकाल के विस्तार पर बिल पाकिस्तान के रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ द्वारा नेशनल असेंबली में प्रस्तुत किया गया था।
सुप्रीम कोर्ट में जजों की संख्या बढ़ाई गई
इसके बाद पाकिस्तान के कानून मंत्री आजम नजीर तरार ने बिल पेश किया जिसमें सुप्रीम कोर्ट और इस्लामाबाद उच्च न्यायालय में न्यायाधीशों की संख्या बढ़ाने की बात कही गई थी। पाकिस्तानी संसद ने इसे भी मंजूरी दी। तरार ने संसदीय मंजूरी के लिए सुप्रीम कोर्ट जजों की संख्या (संशोधन) विधेयक 2024 पेश किया था। इसमें सुप्रीम कोर्ट के जजों की संख्या मौजूदा 17 से बढ़ाकर 34 करने का प्रस्ताव था।
दूसरी ओर इस्लामाबाद उच्च न्यायालय में न्यायाधीशों की संख्या अब नौ की वर्तमान संख्या से बढ़ाकर 12 कर दी गई है। सरकार द्वारा लाए गए बदलावों में संवैधानिक पीठों को शामिल करने के लिए सुप्रीम कोर्ट (प्रैक्टिस एंड प्रोसिजर) अधिनियम, 2023 में संशोधन भी शामिल हैं। यह एक तरह से न्यायिक पैनलों के दायरे और संरचना का विस्तार होगा। इसके बाद वरिष्ठ न्यायाधीशों की एक प्रशासनिक समिति होगी जो मामलों को सर्वोच्च न्यायालय या संवैधानिक पीठों को आवंटित करने के लिए जिम्मेदार होगी।
जजों की संख्या बढ़ाने वाले इस विधेयक से सरकार को कई सेवानिवृत्त जजों की नियुक्ति का भी मौका मिलने की संभावना है। इसे सभी मामलों में सरकार समर्थक रुख अपनाने के लिए अदालतों को वश में करने की कोशिश के कदम के रूप में भी देखा जा रहा है। कुछ दिन पहले ही सरकार जस्टिस मंसूर अली शाह को पद से हटाकर जस्टिस याह्या अफरीदी को पाकिस्तान का मुख्य न्यायाधीश (सीजेपी) नियुक्त करने में सफल रही थी। मौलाना फजरुल रहमान की पार्टी के समर्थन के बाद कानून में बदलाव के जरिए सरकार ऐसा करने में सफल रही थी।
शहबाज शरीफ सरकार का ‘संदेश’
सीजेपी याह्या अफरीदी के पूर्ववर्ती जस्टिस काजी फैज ईसा को इमरान खान के प्रति खराब रुख वाला माना जाता था। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट के कई जज पीटीआई को न्यायिक राहत प्रदान करने के इच्छुक दिखे। जस्टिस शाह को दरकिनार करके शहबाज शरीफ सरकार ने स्पष्ट रूप से एक संदेश भेजा है कि वह दूर से भी इमरान समर्थक दिख रहे, तटस्थ या सरकार विरोधी माने जाने वाले किसी भी व्यक्ति को उभरने से रोक सकती है।
सेना और शीर्ष न्यायपालिका में शीर्ष पदों को प्रभावित करने वाले इन ताजा विधेयकों को लेकर विशेषज्ञों और पाकिस्तान पर नजर रखने वाले कई जानकारों का मानना है कि यह सब पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान और उनकी पाकिस्तान तहरीक इंसाफ (पीटीआई) पार्टी को लक्ष्य बनाकर किया जा रहा है। यहां बता दें कि इमरान ने अपने कार्यकाल के दौरान पाकिस्तानी सेना के मौजूदा प्रमुख जनरल आसिम को इंटर सर्विसेज इंटेलिजेंस (आईएसआई) के डीजी जैसे अहम पद से हटा दिया था।
पाकिस्तान में व्यापक रूप से प्रचलित धारणा यह है कि अपने पद से हटाए जाने के दिन से ही जनरल असीम मुनीर ने इमरान के प्रति द्वेष पाल रखा है। एक समय ऐसा कहा जा रहा था कि उन्हें शीर्ष पद नहीं मिल पाएगा और उनके उत्तराधिकारी लेफ्टिनेंट जनरल फैज हमीद को इमरान चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ (सीओएएस) बनाएंगे।
तेजी से बदले घटनाक्रम में इमरान को बाद में प्रधानमंत्री पद से हटा दिया गया और शहबाज शरीफ उनके उत्तराधिकारी बन गये। तब से अधिकांश राजनीतिक घटनाक्रम विशेष रूप से इमरान और उनकी पीटीआई पर लक्षित प्रतीत होते नजर आए हैं। इतना कि फरवरी 2024 में नेशनल असेंबली और प्रांतीय असेंबली के चुनावों में उनके खिलाफ धांधली की भी कहानी सामने आई।
बहरहाल, ताजा बिल पेश होते ही विपक्ष हंगामा करने लगा, नारेबाजी और विरोध प्रदर्शन करने लगा। हालांकि, सरकार के पास इन विधेयकों को दोनों सदनों में पारित कराने से रोकने के लिए पर्याप्त संख्या बल उसके पास नहीं था। राष्ट्रपति जरदारी की मंजूरी तय मानी जा रही है।