तंजानिया में राष्ट्रपति पद की दौड़ से प्रमुख उम्मीदवारों को बाहर किए जाने के बाद विरोध प्रदर्शनों में भड़की हिंसा में सैकड़ों मौतें हो चुकी हैं। शुक्रवार को तंजानिया के मुख्य विपक्षी दल चाडेमा (Chadema) ने दावा किया कि विवादास्पद आम चुनाव को लेकर बुधवार को भड़के विरोध प्रदर्शनों के दौरान तीन दिनों में देश भर में लगभग 700 लोग मारे गए हैं।
तंजानिया में चुनाव के खिलाफ बुधवार से ही प्रदर्शन हो रहे हैं और यह तीसरे दिन शुक्रवार भी जारी रहा। सेना प्रमुख की चेतावनी के बावजूद हजारों लोग सड़कों पर उतर आए। प्रदर्शनकारियों का आरोप है कि बुधवार को हुए आम चुनाव में धांधली हुई और प्रमुख विपक्षी नेताओं को राष्ट्रपति सामिया सुलुहू हसन के खिलाफ चुनाव लड़ने से रोक दिया गया। प्रदर्शनकारियों का कहना है कि सरकार लोकतंत्र को कुचल रही है, क्योंकि प्रमुख विपक्षी नेता जेल में हैं और कई को चुनाव से बाहर कर दिया गया।
मीडिया रिपोर्टों के अनुसार, सरकार ने देशभर में इंटरनेट बंद कर दिया है, जिससे मौतों और झड़पों की जानकारी की पुष्टि मुश्किल हो गई है। हालात को नियंत्रित करने के लिए कर्फ्यू बढ़ा दिया गया है। अस्पतालों ने मीडिया और मानवाधिकार संगठनों को हताहतों के बारे में कोई जानकारी देने से इनकार कर दिया है।
हालांकि समाचार एजेंसी एएफपी (AFP) से चाडेमा के प्रवक्ता जॉन जॉन कितोका ने शुक्रवार बताया कि “डार एस सलाम में मरने वालों की संख्या लगभग 350 है, म्वांजा में 200 से ज्यादा और बाकी इलाकों को मिलाकर कुल आंकड़ा लगभग 700 तक पहुंच गया है।” उन्होंने आगे कहा कि मृतकों की संख्या और भी ज्यादा हो सकती है क्योंकि बुधवार से लागू रात्रिकालीन कर्फ्यू के दौरान हत्याएँ हो सकती हैं।
एक सुरक्षा सूत्र ने एएफपी को बताया कि 500 से ज्यादा लोगों के मारे जाने की खबरें हैं। पूरे देश में शायद 700-800।सूत्र ने बताया कि सेना के भीतर भी इसी तरह के आंकड़े चर्चा में हैं। उसने कहा कि ये आँकड़े तंजानियाई सेना के भीतर प्रसारित हुए थे। एमनेस्टी इंटरनेशनल ने भी रिपोर्ट दी है कि उन्हें कम से कम 100 लोगों के मारे जाने की जानकारी मिली है।
चुनाव के पहले ही विपक्ष को ठिकाने लगाया गया?
यह चुनाव बुधवार को हुए, जिनमें राष्ट्रपति हसन के दोबारा सत्ता में आने की पूरी संभावना मानी जा रही थी। लेकिन विपक्ष का आरोप है कि चुनाव पूरी तरह एकतरफा थे। बीबीसी के मुताबिक, अप्रैल में चाडेमा के उपाध्यक्ष तुंडु लिस्सु को देशद्रोह और साइबर अपराधों के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया था।
चुनावी सुधार की मांग करने वाले इस दल को बाद में चुनाव से अयोग्य घोषित कर दिया गया। सितंबर में एक अन्य विपक्षी नेता लुहागा म्पीना को भी चुनाव से बाहर कर दिया गया। इससे राष्ट्रपति हसन के सामने केवल छोटे और कमजोर दलों (16 छोटे दलों) के प्रत्याशी ही रह गए जिनका कोई खास जनाधार नहीं है। रिपोर्ट के अनुसार, चुनाव से पहले सरकार के आलोचकों का अपहरण और गिरफ्तारी आम हो गई थी।
मतदान के दिन से ही सड़कों पर हिंसा, इंटरनेट बंद
प्रमुख उम्मीदवारों को चुनाव से बाहर किए जाने को लेकर लोगों में काफी नाराजगी थी। चुनाव वाले दिन से ही प्रदर्शनकारियों ने सड़कों पर उतरकर पुलिस चौकियों पर हमला किया और सत्तारूढ़ दल से जुड़े व्यवसायिक प्रतिष्ठानों को निशाना बनाया। दार-एस-सलाम से शुरू हुई ये हिंसा पूरे देश में फैल गई।
सरकार ने कर्फ्यू और इंटरनेट ब्लैकआउट लागू कर दिया। इंटरनेट निगरानी संस्था नेटब्लॉक्स के अनुसार, पूरे देश में कनेक्टिविटी ठप रही। गुरुवार को सेना प्रमुख जनरल जैकब जॉन मुकुंडा ने प्रदर्शनकारियों को अपराधी करार दिया। उन्होंने कहा, “29 अक्टूबर को कुछ लोग सड़कों पर उतरे और आपराधिक गतिविधियों में शामिल हुए। ये अपराधी हैं और इनके कृत्यों को तुरंत रोका जाना चाहिए।” उन्होंने दावा किया कि स्थिति सेना के नियंत्रण में है। हालांकि शुक्रवार को दार-एस-सलाम में फिर से भीड़ सड़कों पर उतर आई।
राज्य प्रसारक टीबीसी के अनुसार, चुनाव आयोग ने देश के 100 में से लगभग 80 क्षेत्रों के परिणाम घोषित कर दिए हैं। सत्ताधारी चामा चा मापिंदुजी (CCM) पार्टी के तहत राष्ट्रपति सामिया हसन की जीत लगभग तय मानी जा रही है, जो 1961 से सत्ता में है। विवादित चुनाव में सामिया सुलुहू हसन ने 85% वोट हासिल किए हैं। आधिकारिक नतीजे शनिवार को घोषित किए जाएंगे।
संयुक्त राष्ट्र ने हालात को लेकर क्या कहा?
संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार कार्यालय (OHCHR) ने इन घटनाओं पर गहरी चिंता व्यक्त की है। संस्था ने बताया कि उसे दार-एस-सलाम, उत्तर-पश्चिम के शिन्यांगा और पूर्वी मोरोगोरो क्षेत्रों में हुई गोलाबारी से कम से कम 10 मौतों की विश्वसनीय रिपोर्टें मिली हैं। संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार कार्यालय के प्रवक्ता सैफ मागांगो ने कहा, “हम सुरक्षा बलों से अपील करते हैं कि वे अनावश्यक या असंगत बल प्रयोग से बचें और प्रदर्शनकारी भी शांतिपूर्ण बने रहें।”
मानवाधिकार वकील टीटो मागोटी ने कहा कि सरकार का बल प्रयोग न्यायोचित नहीं है। उनके मुताबिक, “राष्ट्रपति को पुलिस को जनता के खिलाफ तैनात करने से बचना चाहिए। उन्हें लोगों की बात सुननी चाहिए। पूरे देश का मूड यही है कि कोई चुनाव हुआ ही नहीं। हम एक ही उम्मीदवार के लिए वोट नहीं कर सकते।”
सरकार ने अब तक विपक्ष के आरोपों या मौत के आंकड़ों पर कोई टिप्पणी नहीं की है। इस बीच, देश में कॉलेजों और विश्वविद्यालयों को दोबारा खोलने पर रोक लगा दी गई है। डर का माहौल अब भी बना हुआ है वहीं, इंटरनेट बंद रहने से सूचनाओं का प्रवाह लगभग ठप है।
बता दें कि सामिया सुलुहू हसन 2021 में तंजानिया की पहली महिला राष्ट्रपति बनी थीं, जब तत्कालीन राष्ट्रपति जॉन मागुफुली का निधन हुआ था। शुरुआत में उन्होंने राजनीतिक दमन में ढील दी थी, लेकिन अब विपक्ष और आलोचकों के खिलाफ गिरफ्तारियों और दमनकारी रवैये की वजह से उनके शासन पर गंभीर सवाल खड़े होने लगे हैं।

