आईटीओ से आप जब इंडिया गेट जाने के लिए आगे बढ़ते हैं, तो तिलक मार्ग (पहले हार्डिग लेन) पर आपको मिलता है पाकिस्तान हाउस। इसे वहां पर लगे ऊंचे-घने पेड़ों ने घेरा हुआ है। इसलिए आप सड़क से इस बंगले को बहुत अधिक नहीं देख पाते। ये आशियाना था पाकिस्तान के पहले प्रधानमंत्री नवाबजादा लियाकत अली खान का। वे 1946 में पंडित जवाहरलाल नेहरू की सदारत में बनी अंतरिम सरकार में वित्त मंत्री थे। कांग्रेस की तरफ से उस सरकार में राजेन्द्र प्रसाद,सरदार पटेल और बाबू जगजीवन राम थे। मुस्लिम लीग से लियाकत अली खान और जोगिन्दर नाथ मंडल वगैरह थे। वे देश के बंटवारे के बाद पाकिस्तान चले गए थे। वहां मोहम्मद अली जिन्ना की पहली कैबिनेट में भी वित्त मंत्री रहे। लियाकत अली खान को पाकिस्तान में "कायद-ए-मिल्लत" (राष्ट्र के नेता) के रूप में जाना जाता है। पर वे जिन्ना के विपरीत अपना दिल्ली का बंगला नहीं बेच सके थे। इसकी असली वजह कभी सामने नहीं आई।

लियाकत के बजट से बंटा भारत

अंग्रेजों ने देश के विभाजन को टालने के मकसद से कांग्रेस और मुस्लिम लीग की मिली-जुली सरकार बनाने का प्रस्ताव रखा था। नेहरू जी के नेतृत्व में बनी सरकार में वित्त मंत्री के रूप में लियाकत अली खान ने 2 फरवरी,1946 को देश का अंतरिम बजट पेश किया। कहते हैं कि वे बजट पेपर अपने अब तिलक मार्ग के घर से संसद भवन लेकर गए थे। जब लियाकत अली खान संसद भवन में बजट पेश करने आए, तो माहौल में तनाव था। इसका कारण यह थाकि लियाकत अली खान मुस्लिम लीग के एक प्रमुख नेता और मोहम्मद अली जिन्ना के करीबी सहयोगी थे। लियाकत अली खान पर हिन्दू विरोधी बजट पेश करने के आरोप लगे। उन्होंने व्यापारियों पर एक लाख रुपये के कुल मुनाफे पर 25 प्रतिशत कर लगाने का प्रस्ताव रखा। कॉरपोरेट टैक्स को दो गुना कर दिया। चाय के निर्यात पर भी एक्सपोर्ट ड्यूटी को दो गुना कर दिया। गृह मंत्री सरदार पटेल की राय थी कि लिय़ाकत अली खान हिन्दू व्यापारियों जैसे घनश्यामदास बिड़ला, जमनालाल बजाज और वालचंद के खिलाफ सोची-समझी रणनीति के तहत कार्रवाई कर रहे हैं। दुर्भाग्यवश लियाकत अली खान के बजटीय प्रस्तावों के बाद देश के विभाजन को टालने की सभी संभावनाएं खत्म हो गईं।

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लियाकत अली खान पत्नी गुल-ए-राना के साथ।

लियाकत के घर में बना बजट

बजट प्रस्तावों और वित्त मंत्री की बाद की कार्रवाइयों ने इस भावना को जन्म दिया कि मुस्लिम लीग के साथ सहयोग करना असंभव था और इसने कांग्रेस और मुस्लिम लीग के बीच तनाव को और बढ़ा दिया। कुछ इतिहासकारों का कहना है कि इस बजट प्रस्तावों के बाद नेहरू और सरदार पटेल को यकीन हो गया था कि देश का विभाजन टल नहीं सकता है। दिलचस्प बात यह है कि बजट संसद में पेश किया गया था, लेकिन माना जाता है कि प्रस्ताव वास्तव में  लियाकत अली खान के तिलक मार्ग के बंगले में बना था। बजट को तैयार करने में ए.आर. बोगरा भी थे, जो बाद में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री बने। वह पाकिस्तान के दूसरे बंगाली प्रधानमंत्री थे। यह भी कहा जाता है कि मुस्लिम लीग ने बोगरा की सलाह पर वित्त विभाग ही लिया। बोगरा मानते थे कि वित्त विभाग गृह मंत्रालय की तुलना में अधिक शक्तिशाली माना।

कांग्रेस ने बजट प्रस्तावों का कड़ा विरोध किया। उन्होंने महसूस किया कि यह व्यापार समुदाय के प्रति दंडात्मक था, जो कांग्रेस के समर्थन आधार का एक महत्वपूर्ण हिस्सा था। उन्होंने इसे उन्हें आर्थिक रूप से पंगु बनाने के प्रयास के रूप में देखा।

क्या था एंग्लो एरेबिक स्कूल से संबंध

लियाकत अली खान अजमेरी गेट पर स्थित एंग्लो एरेबिक स्कूल की प्रबंध समिति के भी प्रमुख रहे। वैसे उनकी पैतृक संपत्ति करनाल और मुजफ्फरनगर में थी। वे मुजफ्फरनगर से यूपी एसेंबली के लिए चुनाव भी लड़ते थे। लियाकत अली खान पाकिस्तान के पहले प्रधानमंत्री थे। उनका जन्म 1 अक्टूबर, 1895 को करनाल के कुंजपुरा में हुआ था और उनकी मृत्यु 16 अक्टूबर, 1951 को रावलपिंडी, पाकिस्तान में हुई थी। लियाकत अली खान एक जमींदार परिवार से थे और उन्होंने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय से शिक्षा प्राप्त की, जहाँ उन्होंने कानून की डिग्री हासिल की।

दिल्ली में कहां पढ़ाती थीं लियाकत की पत्नी

देश के बंटवारे की तारीख करीब आने के साथ ही लियाकत अली खान की पत्नी गुल-ए-राना को समझ नहीं आ रहा था कि वह दिल्ली यूनिवर्सिटी के इंद्रप्रस्थ कॉलेज की नौकरी छोड़े या कुछ दिनों की छुट्टी लेकर पाकिस्तान जाया जाए। यानी पाकिस्तान के सबसे बजड़े नेताओं में से एक की पत्नी को ही पाकिस्तान के स्थायित्व को लेकर पक्का यकीन नहीं था।  आखिरकार गुल-ए-राना अगस्त, 1947 में कराची के लिए रवाना हो गईं। वह जाने से पहले कॉलेज की प्रिंसिपल डॉ.वीणा दास को दो माह के अवकाश की अर्जी देकर गईं। उन्होंने डॉ. वीणा दास से वादा किया कि वह सितम्बर के दूसरे या अंतिम हफ्ते तक लौट आएंगी। डॉ. दास ने उनके वादे को स्वीकार करते हुए छुट्टी दे दी। उन्हें इतना लम्बा अवकाश इसलिए मिल गया, क्योंकि उनकी कॉलेज में टीचर के रूप में बढ़िया इमेज बन चुकी थी। वह इकोनॉमिक्स  पढ़ाती थीं। उन्होंने इधर कश्मीरी गेट और चांदनी चौक इलाकों में शराब की दुकानों को बंद करवाने के लिए चले आंदोलन में बढ़ चढ़कर भाग लिया था। इंद्रप्रस्थ कॉलेज की 1980 के दशक में प्रिंसिपल शीला उत्तम सिंह हुआ करती थीं। उन्होंने करीब तीस साल पहले इस लेखक को बताया था कि गुल बेहद योग्य टीचर थीं। इंद्रप्रस्थ कॉलेज की मैनेजिंग कमेटी के चेयरमेन लाला नारायण प्रसाद ( अब स्मृति शेष) बताते थे कि गुल ए-राना ने कराची जाने के बाद भी एक पत्र लिखा कि वह लौट आएंगी। पर जाहिर है कि वह नहीं आईं। पेशे से  लाला नारायण प्रसाद चार्टर्ड एकाउंटेंट थे। लाला जी के परिवार ने ही 1904 में चांदनी चौक में राजधानी में लड़कियों का पहला स्कूल इंद्रप्रस्थ हिन्दू कन्या विद्लाय स्थापित किया था। इसी परिवार ने 1927 में इंद्रप्रस्थ कॉलेज खोला था।

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दिल्ली के एलिट सर्किल का हिस्सा थे

लियाकत अली खान और गुल-ए-राना (जिन्हें अक्सर गुल कहा जाता है) दिल्ली के एलिट सर्किल का हिस्सा थे। इनके बंगले में लगातार दिल्ली के असरदार लोगों की दावतें हुआ करती थीं। इनकी शामें रायसीना रोड के चेम्सफोर्ड क्लब में भी गुजरती थी। इनमें प्रेम प्रसंग 1918 में अलीगढ़ में शुरू हुआ था। उस समय, लियाकत अली खान अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में छात्र थे, और गुल-ए-राना भी वहीं पढ़ रही थीं। यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि उनकी प्रेम कहानी कोई आसान राह नहीं थी। लियाकत अली खान एक जमींदार परिवार से थे, जबकि गुल-ए-राना का परिवार उतना समृद्ध नहीं था। इसके बावजूद, उन्होंने अपने प्यार को आगे बढ़ाया और 1933 में शादी कर ली। गुल-ए-राना एक शिक्षित और प्रभावशाली महिला थीं। उन्होंने लियाकत अली खान के राजनीतिक जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। वह पाकिस्तान की पहली महिला भी थीं जिन्होंने संयुक्त राष्ट्र में देश का प्रतिनिधित्व किया था।

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कहां हुआ लियाकत का कत्ल

मोहम्मद अली जिन्ना के 11 सितंबर, 1948 को निधन के बाद लियाकत अली खान के सबसे बड़े नेता के रूप में उभरे। वे पाकिस्तान के पहले प्रधानमंत्री थे। उनकी 16 अक्टूबर 1951 को रावलपिंडी में एक जनसभा के दौरान गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। उनकी हत्या की गुत्थी आज तक अनसुलझी है। हत्या के तुरंत बाद की गई जांच में कई खामियां थीं। घटनास्थल को ठीक से सुरक्षित नहीं किया गया, और महत्वपूर्ण सबूतों को लापरवाही से संभाला गया।

लियाकत अली खान के हत्यारे  सैय्यद अकबर को मौके पर ही मार दिया गया था, जिससे उससे पूछताछ करने और हत्या के पीछे के मकसद को जानने का मौका नहीं मिला। कहते हैं कि पाकिस्तान सरकार ने जल्दबाजी में उसे "अफगान नागरिक" घोषित कर दिया, जिससे मामले की और जांच को दबा दिया गया। कहने वाले कहते हैं कि जांच में राजनीतिक हस्तक्षेप हुआ था, जिससे सही दिशा में जांच नहीं हो पाई। कुछ लोगों का मानना है कि हत्या के तार उच्च राजनीतिक हलकों से जुड़े थे, और जांच को जानबूझकर भटकाया गया। इस बीच, गुल ए राना की 13 जून,1990 को मौत हो गई थी।

क्यों कहा जाता है उसे पाकिस्तान हाउस

लियाकत अली खान के पाकिस्तान जाने के बाद उनका बंगला भारत में पाकिस्तान के उच्चायुक्त का घर बन गया। इसे 'पाकिस्तान हाउस' कहा जाता है। जाहिद हुसैन भारत में पाकिस्तान के पहले उच्चायुक्त थे। वे अगस्त 1947 से अप्रैल 1948 तक रहे। उन्होंने विभाजन से पहले दिल्ली के मुख्य आयुक्त के वित्तीय सलाहकार के रूप में भी काम किया था। वे लियाकत अली खान के तिलक मार्ग के बंगले से ही रहते और काम करते थे। दरअसल 1960 के दशक के आरंभ में पाकिस्तानी उच्चायोग बनने से पहले पाकिस्तान का उच्चायोग भी इस बंगले से काम करता था।