कौन बनेगा दिल्ली का नया मुख्यमंत्री की चर्चाओं के बीच अब यह सवाल भी राजनीतिक हलकों में चर्चा में है कि दिल्ली को यमुनापार से मुख्यमंत्री कब मिलेगा? इस बार भी यमुनापार ने भाजपा की झोली में दिल खोल कर वोट दिए और विधायक निर्वाचित किए। क्या अब यमुनापार से जीता भाजपा का कोई विधायक मुख्यमंत्री बन सकता है? दिल्ली में चौधरी ब्रह्म प्रकाश से लेकर आतिशी, जितने भी मुख्यमंत्री बने, उनका संबंध यमुनापार से तो नहीं रहा।
नांगलोई से दरियागंज
चौधरी ब्रह्म प्रकाश दिल्ली विधानसभा का पहला चुनाव 1952 में नांगलोई सीट से जीते थे। उसके बाद वे दिल्ली के मुख्यमंत्री बने। ब्रह्म प्रकाश 17 मार्च 1952 – 12 फरवरी 1955 तक दिल्ली के मुख्यमंत्री रहे। ब्रह्म प्रकाश के बाद कांग्रेस आला कमान ने दरियागंज से अपने विधायक गुरुमुख निहाल सिंह को दिल्ली का मुख्यमंत्री बना दिया। वे 13 फरवरी, 1955 से 31 अक्टूबर, 1956 तक दिल्ली के मुख्यमंत्री रहे।
मोतीनगर से खुराना
फिर दिल्ली में लंबे समय तक महानगर पार्षद के रहने के बाद दिल्ली विधान सभा का गठन हुआ और 1993 में दिल्ली विधान सभा के लिए चुनाव हुए। अब मदन लाल खुराना मुख्यमंत्री बने। वे 2 दिसंबर 1993 से 26 फरवरी 1996 तक मुख्यमंत्री रहे। वे पश्चिम दिल्ली की मोती नगर सीट से विधायक बने थे। इस बार उनके पुत्र हरीश खुराना भाजपा की टिकट पर मोतीनगर से से चुनाव जीत गए हैं। मदन लाल खुराना के बाद भाजपा ने अपने जाट नेता साहिब वर्मा को मुख्यमंत्री बनाया। वे 1996–1998 के दौरान दिल्ली के चौथे मुख्यमंत्री 288 दिनों तक रहे। वे उत्तर दिल्ली की शालीमार बाग से विधायक बने। वे शालीमार बाग के करीब लॉरेंस रोड डीडीए फ्लैट में रहते थे।
पर भाजपा आला कमान ने विधानसभा का कार्यकाल खत्म होने से कुछ पहले ही साहिब सिंह वर्मा के स्थान पर अपना नया मुख्यमंत्री बना दिया। अब मुख्यमंत्री अप्रत्याशित रूप से सुषमा स्वराज बनीं। वह हौज खास से विधायक चुनी गई थीं। सुषमा स्वराज 12 अक्तूबर 1998 से लेकर 3 दिसंबर 1998 तक दिल्ली की मुख्यमंत्री रहीं। कह सकते हैं कि हौज खास से निर्वाचित होकर उन्होंने साउथ दिल्ली की एक तरह से नुमाइंदगी कर दी।
शीला दीक्षित से लेकर केजरीवाल नई दिल्ली से
फिर शुरू हुआ शीला दीक्षित और अरविंद केजरीवाल का दौर। इन दोनों नेताओं ने गोल मार्केट सीट की लगभग 25 सालों तक नुमाइंगी की। शीला दीक्षित 15 सालों तक दिल्ली की मुख्यमंत्री रही। अरविंद केजरीवाल ने अपने दूसरे मुख्यमंत्रित्व काल के कुछ माह पहले अपना पद छोड़ा। वे भी नई दिल्ली से ही लड़े। दो बार जीते और इस बार हार गए। निवर्तमान मुख्यमंत्री आतिशी कालकाजी से विधायक बनी थी। वो इस बार भी जीती हैं।
यानी 1952 से लेकर अब तक यमुनापार के किसी नेता को दिल्ली का मुख्यमंत्री बनने का मौका नहीं मिला है। क्या इस बार दिल्ली का मुख्यमंत्री यमुनापार से होगा? अब इस सवाल का जवाब भी जल्दी ही मिल जाएगा। मुख्यमंत्री की रेस में मुस्तफाबाद के विधायक मोहन सिंह बिष्ट का नाम भी चल रहा है। दिल्ली की सियासत पर गुजरे 50 सालों से नजर रख रहे सोशल वर्कर प्रीतम धारीवाल कहते हैं कि यमुनापार के साथ हमेशा दोयम दर्जे का व्यवहार हुआ है। उम्मीद करनी चाहिए कि इस बार यमुनापार के साथ न्याय होगा।