जून 1993 में लालू प्रसाद यादव ने पटना के गांधी मैदान में 'गरीब रेला' का आयोजन किया था। वे हर जिले के मुख्यालय जाकर लोगों से इस रैली में आने की अपील कर रहे थे।
एक दिन वे गांधी मैदान के उत्तर में स्थित पटना पुलिस मुख्यालय पहुंचे और सिटी एसपी अजय कुमार के चैंबर में बैठक की। बगल में ही सीनियर एसपी अनिल कुमार मलिक अपने चैंबर में मौजूद थे, लेकिन मुख्यमंत्री ने उन्हें पूरी तरह नजरअंदाज कर दिया। जबकि प्रशासनिक अनुक्रम में मलिक सबसे वरिष्ठ अधिकारी थे, उन्हें यह उपेक्षा बुरी लगी।
मैंने उनसे बात की और पूछा, “मुख्यमंत्री ने आपकी उपेक्षा कर आपसे जूनियर को प्राथमिकता दी, आपको कैसा लगा?” उनका जवाब था, “मैं लालू की परवाह नहीं करता।” मैंने स्पष्ट कह, आपकी प्रतिक्रिया छपने के लिए है। आपको लालू जी से डर नहीं लगता? मलिक साहब ने कहा, “आई डू नॉट केयर फॉर दिस जोकर”
जब लालू प्रसाद से पूछा गया कि मलिक साहब ने आपको ‘जोकर’ कहा है, तो उन्होंने जवाब दिया, “वो हमारा नौकर है।”
गया से लौटने के बाद मुख्यमंत्री आवास में लालू यादव ने अचानक प्रेस कॉन्फ्रेंस बुलाई। बिहार के डीजीपी भी वहां मौजूद थे। लालू ने बताया, “मुझे बम से उड़ाने की साजिश रची गई है, और एक रिक्शा चालक पकड़ा गया है।”
उसी रैला की तैयारी में आरा के जनसभा में जिलाधिकारी खुद लालू के लिए पानी का गिलास लेकर मंच पर पहुंचे। गया की डीएम अपने घर से उनके लिए खाना लेकर आईं। मुजफ्फरपुर के डीएम को लालू ने मंच पर बुलाकर लोगों से पूछा, “कौन है ये?” जब जनता ने पहचानने से इनकार किया, तो लालू बोले- “कैसे डीएम हैं, कोई जानता ही नहीं।”
लालू का अधिकारियों से संबंध बादशाह और गुलाम का था
लालू प्रसाद यादव का अधिकारियों से संबंध बादशाह और गुलाम का था। वे फोन पर आदेश देते और सामने से जवाब आने से पहले ही फोन काट देते। अधिकारियों को परिवार की चिंता करने की सलाह देते।
एक बार 1976 बैच के एक ईमानदार आईएएस अधिकारी उनके आवास पर एक फाइल लेकर पहुंचे। लालू ने उनसे पूछा, “कुछ कमाते हो कि नहीं?” जब अधिकारी ने नकारात्मक जवाब दिया तो लालू बोले, “बुड़बक कहीं का! मर जाओगे तो तुम्हारे परिवार का क्या होगा? कोई पूछेगा तक नहीं।” जो अधिकारी उनके आज्ञाकारी रहे, उन्हें कई जिलों का प्रभार मिला और अच्छे विभागों की कमान सौंपी गई।
1980 बैच के एक आईएएस अधिकारी की सचिव स्तर की प्रोन्नति की फाइल लालू के आवास में महीनों मशीन के नीचे दबी पड़ी थी। एक दिन वे निराश होकर मुख्यमंत्री से मिलने पहुंचे और लॉन में बैठकर अंग्रेज़ी में जमकर उन्हें गालियां दीं। सुरक्षाकर्मी उन्हें हटाने लगे तो लालू ने कहा, “साहब को बोलने दो।” तुरंत प्रमुख सचिव को बुलवाया गया और उस पीड़ित अधिकारी की फाइल पर दस्तखत कर दिए गए। बाद में चारा घोटाले में वही अफसर फंसे जिन्होंने लालू के आदेशों का पालन किया था।
सीबीआई ने कई आईएएस अधिकारियों को गिरफ्तार किया और अदालत ने उन्हें जेल भेज दिया। मुख्य सचिव बनने वाले सजल चक्रवर्ती की मौत जेल में ही हो गई। अन्य अफसरों- फूलचंद सिंह, के. आरोमगम, महेश प्रसाद, बैंक जूलियस, एस.एन. दुबे को भी सजा हुई। लालू फिलहाल जमानत पर हैं।
1997 में जब लालू पहली बार जेल गए, तो बिहार मिलिट्री पुलिस मुख्यालय स्थित आईपीएस मेस को अस्थायी जेल बना दिया गया। यहां भी लालू से मिलने मुख्य सचिव तक पहुंचते थे, निर्देश लेने।जब राबड़ी देवी मुख्यमंत्री बनीं, तो उन्होंने छपरा प्रमंडल के कमिश्नर पंचम लाल को फोन किया- “आप हमारे पिता जी को परेशान कर रहे हैं। उनका बंदूक का लाइसेंस रिन्यू क्यों नहीं कर रहे?”
कमिश्नर ने उनके पिता शिव प्रसाद चौधरी की उम्र पूछी। जब पता चला कि वे 76 वर्ष के हैं, तो जवाब मिला, “मुझे आपके पिता को गिरफ्तार करना होगा और बंदूक जब्त करनी होगी। आपको पता है, 75 वर्ष से ऊपर के व्यक्ति को आर्म्स नहीं रखने की अनुमति नहीं है।” मुख्यमंत्री ने दुखी स्वर में कहा, तब छोड़ दिया जाए…।