राज की बातः लालू यादव...जब सीएम आवास के पिछले दरवाजे से रोते हुए कोर्ट के लिए हुए थे रवाना

सीबीआई लालू को हिरासत में लेकर पूछताछ करना चाहती थी। उस समय एजेंसी के युवा वकील राकेश कुमार ने अदालत को बताया कि राज्य के मुख्य सचिव, पुलिस महानिदेशक और जिला अधिकारी सहयोग नहीं कर रहे हैं...

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Lalu Yadav will be prosecuted by ed

लालू यादव की बढ़ेंगी मुश्किलें Photograph: (आईएएनएस)

पटना; 17 जून, 1996 को बिहार के राज्यपाल ने मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव के खिलाफ करीब 1,000 करोड़ रुपये के चारा कांड में सीबीआई को मुकदमा शुरू करने की अनुमति (सैंक्शन) दी थी। एक साल बाद, 25 जुलाई को, लालू प्रसाद यादव ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया और श्रीमती राबड़ी देवी को मुख्यमंत्री बना दिया। उन्होंने जनता दल से अलग होकर 'राष्ट्रीय जनता दल' की स्थापना की।

पटना उच्च न्यायालय में एक साल तक बहस चली और सीबीआई जांच की मॉनिटरिंग उच्च न्यायालय के सुपरविजन में हुई। केंद्रीय जांच एजेंसी ने विशेष न्यायालय में चार्जशीट दाखिल की। विशेष न्यायाधीश सुधांशु कुमार लाल ने सीबीआई के आवेदन पर गैर-जमानती वारंट जारी किया, जिसे लालू प्रसाद ने उच्च न्यायालय में चुनौती दी।

चार दिनों की लंबी बहस के बाद, जस्टिस धारीवाल ने लालू प्रसाद की अग्रिम जमानत याचिका (एंटीसिपेटरी बेल एप्लिकेशन) को खारिज कर दिया। 24 जुलाई को, प्रधानमंत्री इंदर कुमार गुजराल की अध्यक्षता में कैबिनेट की बैठक हुई, जिसमें मुख्यमंत्री को पद त्यागने की सलाह दी गई।

सीबीआई लालू को हिरासत में लेकर पूछताछ करना चाहती थी। ,उस वक्त एजेंसी के युवा वकील,राकेश कुमार ने कोर्ट को बताया राज्य के मुख्य सचिव और आरक्षी महानिदेशक सहयोग नहीं कर रहे हैं और जिला अधिकारी भी लालू आवास पर हैं, स्थानीय प्रशासन और पुलिस भी एजेंसी का सक्रिय विरोध करने में लगी है।

सीबीआई के निवेदन पर, आरपीएफ के महानिदेशक ए. पी. दौराई को मदद के लिए लगाया गया। उन्होंने राज्य के मुख्य सचिव और पुलिस प्रमुख से बात की। एजेंसी के अधीक्षक वी. एस. ए. कौमुदी 30 जुलाई की सुबह 4 बजे मुख्यमंत्री आवास पहुंचे, लेकिन लालू समर्थकों के विरोध का सामना करना पड़ा।

एजेंसी के विशेष अभियोजक राकेश कुमार ने उच्च न्यायालय के न्यायाधीश की अनुमति से दानापुर स्थित बिहार रेजिमेंटल सेंटर के सब-एरिया कमांडर ब्रिगेडियर नौटियाल से संपर्क कर सेना की सहायता मांगी। उन्होंने आश्वासन दिया कि दिल्ली में रक्षा मंत्रालय की अनुमति मिलने के बाद ही सेना भेजना संभव होगा।

इधर बोरिंग रोड स्थित सीबीआई कार्यालय, जहां एजेंसी के उपमहानिरीक्षक यू. एन. विश्वास ठहरे हुए थे, ने लिखित रूप में यह आशंका जताई कि लालू समर्थक उन्हें मार सकते हैं और उन्हें उच्च न्यायालय तक भी नहीं जाने दे रहे हैं। इस पर केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल (CISF) के पटना कार्यालय में तैनात उपमहानिरीक्षक किशोर कुणाल से संपर्क किया गया। विश्वास ने कहा, "कुणाल साहेब, आज ही मेरा मर्डर हो जाएगा।"

इसके बाद तुरंत फोर्स की एक टुकड़ी को उनकी सुरक्षा में तैनात किया गया और उन्हें हाईकोर्ट तक एस्कॉर्ट भी उपलब्ध कराई गई। सुप्रीम कोर्ट में की गई अपील की सुनवाई में लालू की ओर से कोई वकील पेश नहीं हुआ। 25 जुलाई को लालू ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दिया और राबड़ी देवी को अपनी जगह बैठा दिया।

जब लालू प्रसाद को यह यकीन हो गया कि उन्हें न तो न्यायालय से और न ही केंद्र सरकार से कोई मदद मिलेगी, और सेना कभी भी उन्हें गिरफ्तार करने मुख्यमंत्री आवास पहुंच सकती है, तो 30 जुलाई की सुबह वे मुख्यमंत्री आवास के पीछे वाले गेट (जो सर्कुलर रोड की ओर खुलता है) से बाहर निकले। प्रत्यक्षदर्शी नेताओं के अनुसार, मुख्यमंत्री राबड़ी देवी और पूर्व मुख्यमंत्री लालू यादव दोनों रो रहे थे, और उनकी आंखों से आंसू बह रहे थे।

वे पटना सिविल कोर्ट में स्थित सीबीआई के विशेष न्यायालय में अपने वकीलों के साथ पहुंचे। लंबी बहस चली। जज लंच ब्रेक के लिए अपने चेंबर में गए। जब वे लौटे, तो उन्होंने लालू प्रसाद को अदालत की कुर्सी पर बैठे देखा, और गुस्से में कहा, “आप एक अभियुक्त हैं, जाइए कटघरे में खड़े होइए।” दोनों पक्षों की बहस सुनने के बाद, न्यायाधीश ने लालू की ज़मानत याचिका खारिज कर दी और उन्हें न्यायिक हिरासत में भेजने का आदेश दिया।

लालू प्रसाद यादव को पुलिस अभिरक्षा में फुलवारी शरीफ स्थित बिहार मिलिट्री पुलिस मुख्यालय ले जाया गया, जहां IPS मेस को अस्थायी जेल में परिवर्तित किया गया था। वे वहां 135 दिनों तक रहे। इस दौरान सरकार के कई उच्च अधिकारी और मंत्री उनसे मिलने आते रहे। 

यह लालू प्रसाद की मुख्यमंत्री रहते हुए पहली जेल यात्रा थी। जब वे जमानत पर रिहा हुए, तो हाथियों और घोड़ों के साथ भव्य जुलूस निकाला गया।

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