शनिवार को केंद्रीय कृषि मंत्री और मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने शिकायत की उन्हें हवाई जहाज में भोपाल से दिल्ली की यात्रा टूटी हुई सीट पर करनी पड़ी। अब तो विधायक और पार्षद भी हवाई जहाज से ही यात्रा करते हैं। लेकिन, गुजरात जैसे समृद्ध राज्य में पहले राज्यपाल और मुख्यमंत्री को भी सड़क यात्रा ही करनी पड़ती थी। 

बीके नेहरू और शारदा मुखर्जी तथा आरके त्रिवेदी जैसे राज्यपाल भी गांधी नगर से कच्छ की यात्रा सड़क मार्ग से करते थे। गुजरात सरकार ने हवाई जहाज या हेलीकॉप्टर नहीं खरीदा था। बिहार जैसे गरीब राज्य के पास पहले भी सरकारी विमान होते थे। 

भारत पाकिस्तान में 1965 युद्ध के दौरान एक किराए के हेलीकॉप्टर से तत्कालीन मुख्यमंत्री बलवंत राय मेहता सीमावर्ती इलाके में गए थे, जहां शत्रु सैनिकों ने इनके हेलीकॉप्टर को उड़ा दिया था। 

मुझे स्मरण है, राज्यपाल या मुख्यमंत्री गांधी नगर से सड़क मार्ग से लोक निर्माण विभाग के अतिथि गृह सुरेंद्र नगर जिला के लिम्बडी में चाय के लिए रुकते थे।
एक राज्यपाल जो सिगरेट के शौकीन थे, जब उनको तलब होती, उनके लिए हाइवे पर स्थित एक छोटे से अतिथि शाला में सिगरेट पीने के बाद आगे निकलते थे।

माधव सिंह सोलंकी, चिमन भाई पटेल, अमर सिंह चौधरी भी वैसे मुख्यमंत्रियों में शामिल हैं जो छह सौ किलोमीटर की यात्रा सड़क से ही करते। गुजरात की सड़के पहले भी बहुत अच्छी होती थी, ढाई सौ राजा और महाराजा यहां राज करते थे और इन्होंने अपने रियासत में बहुत ही खूबसूरत सड़क बनाई थी। बाबू भाई जेश भाई पटेल तो इसन सबसे अलग ही थे। वे सरकारी गाड़ी जो अम्बेसडर ही होती थी, यात्रा नहीं करते थे, बल्कि गुजरात राज्य परिवहन निगम की बस पर लम्बी दूरी की यात्रा करते थे। 

गांधी नगर से वे निगम की बस जो वाताकुनील नहीं होती थी, राजकोट आते, बस स्टैंड के बाहर सड़क किनारे एक नाई से दाढ़ी बनाते और पास के राष्ट्रीय शाला में जाकर स्नान करते। राष्ट्रीयशाला का निर्माण महात्मा गांधी ने करवाया था। मानीबेन गांधी जो गांधी जी के साथ अंतिम क्षण तक रही, वे राष्ट्रीयशाला में निवास करती थीं, बाबू भाई पटेल वही नाश्ता करते थे। अपने साथ कपड़े से निर्मित एक खोला में जरूरी फाइल जो उस दिन सरकारी मीटिंग के लिए जरूरी होता तथा धोती और कुर्ता का जोड़ी रखते

राजकोट सर्किट हाउस जो चार किलोमीटर दूर था, कलेक्टर सरकारी गाड़ी भेजते। मुख्यमंत्री सरकारी बैठक के बाद वापस राष्ट्रीयशाला आते और फिर वहीं भोजन के बाद निगम की बस से वापिस राजधानी या आगे के यात्रा के लिए पोरबंदर निकल जाते।

मुख्यमंत्री रहते हुए बाबू भाई एकबार साबर मति एक्सप्रेस से स्लीपर क्लास में 1977 में जॉर्ज फर्नांडिस के चुनाव प्रचार में बिहार आए थे, सुबह में गाड़ी जब हाजीपुर स्टेशन पर थोड़ी देर के लिए रुकी। वे चाय पीने के लिए प्लेटफॉर्म पर उतरे, जब लौट कर आये तब, उनके सीट पर स्थानीय लोग बैठे मिले। उनलोगों ने बताया कि आप तो रात भर से सो लिए है, हमलोग मुजफ्फरपुर तक जायेंगे। स्थानीय लोग जगह देने को तैयार नहीं थे। तब उनके सहयोगी ने बताया गुजरात के मुख्यमंत्री बाबू भाई पटेल हैं, उनको एक सीट दे दिया जाय। नव निर्माण आंदोलन के कारण बाबू भाई पटेल का नाम सभी जानते थे, लेकिन टेलीविजन का जमाना नहीं रहने के कारण लोग पहचान नहीं सके।

अब एक ब्लॉक स्तर का नेता भी अति नवीनतम गाड़ी में घूमता रहता है। तब बिहार के मुख्यमंत्री रह चुके भोला पासवान शास्त्री या कर्पूरी ठाकुर भी पटना के सड़क पर पैदल ही घुमते मिल जाते थे। रेलवे मंत्री रहे राम सुभग सिंह फ्रेजर रोड रिक्शे पर मिल जाते थे।