पटना जिले की पूर्वी सीमा पर स्थित मोकामा के पास हाथीदह के एक स्कूल में 1977 के विधानसभा चुनाव के दौरान मतदान केंद्र बनाया गया था। तत्कालीन जिलाधिकारी और वरीय पुलिस अधीक्षक गोपाल आचारी दौरे पर थे। पत्रकारों का एक दल भी चुनाव को कवर कर रहा था। हम लोगों ने पीठासीन अधिकारियों से जानकारी ली और आगे बढ़े। तभी उसी केंद्र से फायरिंग की आवाज आई, ऐसा लगा जैसे बूथ कैप्चरिंग के लिए गोलीबारी हो रही हो।
करीब दो किलोमीटर आगे जाने पर हमने देखा कि डीएम और एसपी की गाड़ी आ रही है। उन्हें रोककर फायरिंग की जानकारी दी। उनका जवाब था, "जी, हम लोगों को भी खबर है। कुछ देर में बंद हो जाएगा, तब जाएंगे।" और दूसरे रस्ते से अधिकारीगण निकल गए।
उसी चुनाव की एक और घटना। पटना जिला में ही दानापुर सब डिवीजन है, पालीगंज निर्वाचन क्षेत्र से कांग्रेस के कद्दावर नेता रामलखन सिंह यादव प्रत्याशी थे। डीएम ने कुछ लोगों को पकड़ा, जिन पर मतदान प्रक्रिया बाधित करने का शक था। इन लोगों को डिविजनल मजिस्ट्रेट को सौंप दिया गया। लेकिन जब डीएम पटना चले गए, तो युवा एसडीओ ने सभी को छोड़ दिया। उनका कहना था, "डीएम सेलेक्टिव अरेस्ट कर रहे हैं।"
एसपी की पहली पोस्टिंग और बाहुबली से मुठभेड़
एक और घटना उसी चुनाव की- पटना पश्चिम विधानसभा क्षेत्र में मतदान हो रहा था। पटना हाई स्कूल के मतदान केंद्र से हिंसा और बूथ कैप्चरिंग की सूचना कंट्रोल रूम को मिली। एक युवा असिस्टेंट एसपी, जिनकी पुलिस सेवा में यह पहली पोस्टिंग थी, केंद्र पर पहुंचे और फर्जी वोटिंग रुकवाई। इसके बाद वे गार्डिनर रोड होते हुए इनकम टैक्स चौराहे पहुंचे, जहां एक छह फीट लंबा बाहुबली नेता अपनी जीप से आगे आया, पुलिस अधिकारी को रोका और उनकी गर्दन पकड़ कर उठा लिया। उन्हें चेतावनी देकर छोड़ दिया गया।
मुंगेर जिले के एक विधानसभा क्षेत्र में चुनाव हो रहा था। राज्य के तत्कालीन मुख्यमंत्री भी वहीं से थे। उन्होंने अपने चहेते आईएएस अधिकारी को डीएम बनाकर वहां पोस्टिंग दी थी। चुनाव में मुख्यमंत्री की महिला मित्र का बेटा भी उम्मीदवार था। मुख्यमंत्री की इच्छा थी कि वह नौजवान चुनाव जीत जाए, लेकिन उनकी पत्नी इसके विपरीत चाहती थीं।
मुख्यमंत्री और उनकी पत्नी के बीच राजनीतिक खींचतान
मतगणना के दिन डीएम साहब बेहद परेशान थे। उस समय मोबाइल फोन नहीं हुआ करता था, लैंडलाइन से ही बातचीत होती थी। मुख्यमंत्री के निर्देश पर निर्वाचन अधिकारी को आदेश दिया गया कि नौजवान को जीत दिलानी है। कभी मुख्यमंत्री, तो कभी उनकी पत्नी का फोन पटना से मुंगेर आता। मुख्यमंत्री का स्पष्ट आदेश होता, "उसे किसी तरह जिताना है", और उनकी पत्नी का आदेश होता, "उसे हर हाल में हराना है"।
कलेक्टर साहब ने अपने अर्दली से कह दिया, "सीएम हाउस से फोन आए तो कह देना, साहब सो गए हैं।" रात में मुख्यमंत्री की इच्छा के अनुसार उस युवा उम्मीदवार को विजयी घोषित कर दिया गया। बाद में वह मंत्री भी बना। डीएम साहब का तबादला कर उन्हें पटना भेज दिया गया।
पटना नगर निगम के नई राजधानी कार्यालय में भी एक बूथ था। वहां पटना कॉलेज का एक छात्र पोलिंग एजेंट के रूप में तैनात था। उसके प्रोफेसर चुनाव लड़ रहे थे। छात्र ने बोगस वोटिंग का विरोध किया। चुनाव अधिकारी ने भी उसे समझाने की कोशिश की, लेकिन वह नहीं माना। नतीजतन उसका सिर फोड़ दिया गया। लहूलुहान छात्र को गर्दनाबाग सरकारी अस्पताल में भर्ती कराया गया।
कर्पूरी ठाकुर के सहायक का वोट और टी. एन. शेषन का हस्तक्षेप
स्वर्गीय कर्पूरी ठाकुर के लंबे समय तक निजी सहायक रहे लक्ष्मी साहू जी कंकड़बाग कॉलोनी में एक बूथ पर वोट डालने गए। पीठासीन अधिकारी ने उन्हें बताया कि उनका वोट पहले ही डाला जा चुका है। साहू जी ने निराश होकर पटना के जिलाधिकारी को फोन किया, लेकिन जब उन्होंने ध्यान नहीं दिया, तो उन्होंने मुख्य निर्वाचन आयुक्त श्री टी. एन. शेषन को फोन करके शिकायत की। मात्र दस मिनट में डीएम साहब साहू जी के घर पहुंचे और उन्हें अपने साथ लेकर मतदान केंद्र गए, जहां उन्हें टेंडर वोट डलवाया गया।
कंकड़बाग कॉलोनी के संजय गांधी स्कूल मतदान केंद्र पर एक पत्रकार भी वोट डालने पहुंचे। वहां तैनात एक पुलिस अधिकारी ने उन्हें सुझाव दिया, "लालटेन पर ही डालिए।" उस समय राबड़ी देवी मुख्यमंत्री थीं।
बिहार की चुनावी रणभूमि में गोलीबारी एक सामान्य बात रही है—चाहे लोकसभा हो, विधानसभा या सहकारी समिति के चुनाव। बूथ कैप्चरिंग और हत्या आम घटनाएं रही हैं। अभी पिछले महीने पटना विश्वविद्यालय छात्र संघ चुनाव में भी पटना विमेंस कॉलेज और मगध महिला कॉलेज में फायरिंग की घटनाएं हुईं।