उड़ीसा (अब ओडिशा) के मुख्यमंत्री रहे बीजू पटनायक और भुवनेश्वर के पत्रकारों के बीच रिश्ते आमतौर पर मधुर रहते थे। वे पत्रकारों को अपने नाती-पोते की तरह मानते थे। उनके सचिवालय कक्ष में पत्रकारों की एंट्री आसान होती थी, बिना किसी अपॉइंटमेंट के।
एक बार चार पत्रकार उनके चैंबर में घुस गए और कुर्सियों पर बैठ गए। बातचीत होने लगी। इसी दौरान मुख्यमंत्री—जिन्हें पत्रकार स्नेहपूर्वक 'बूढ़ा' कहकर बुलाते थे, संभवतः पेशाब के लिए बाथरूम चले गए। जब लौटे, तो देखा कि पत्रकारों के मुंह भरे हुए हैं। उन्होंने अपनी कुर्सी के दाहिनी ओर रखे बिस्कुट से भरे पांच डिब्बों की ओर देखा और मुस्कराते हुए बोले, “का रे, तुम लोग मेरा बिस्कुट भी चोरी कर लिया?” पत्रकारों ने हँसते हुए जवाब दिया, “क्या करें, आप तो हम लोगों को खिलाते ही नहीं।” इसके बाद से वहाँ चाय-बिस्कुट मिलने लगा।
एक बार चुनाव अभियान के दौरान दिल्ली से आए एक पत्रकार ने फॉरेस्ट पार्क स्थित उनके आवास पर इंटरव्यू की इच्छा जताई। बीजू पटनायक ने उसे अपनी ‘कलिंग रथ’ गाड़ी में बिठाया और यात्रा के दौरान ही सवाल-जवाब शुरू हो गए। कटक हाईवे पर जब पत्रकार शांत हो गया, तो मुख्यमंत्री ने पूछा, “तुम्हारा सवाल खत्म हो गया? और कुछ पूछना है?” जब पत्रकार ने कहा, “हां, अब काम पूरा हो गया,” तो उन्होंने ड्राइवर को आदेश दिया, गाड़ी रुकवा दी और बोले, “काम खत्म हो गया है तो उतर जाओ।” पत्रकार ने कहा कि उसे भुवनेश्वर की सवारी नहीं मिलेगी, लेकिन फिर भी उसे हाईवे पर ही उतार दिया गया।
जब पुरानी उद्योग नीति पढ़ने लगे बीजू पटनायक, पत्रकार ने टोका तो..
बीजू पटनायक पत्रकारों का सम्मान भी करते थे। एक बार सचिवालय में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान वे नई उद्योग नीति की घोषणा कर रहे थे। उनके साथ उद्योग विकास आयुक्त, एक महिला अधिकारी, भी मंच पर थीं। प्रेस कॉन्फ्रेंस में जब नई नीति पर विस्तार से बताया गया, तो अग्रिम पंक्ति में बैठे एक पत्रकार ने जानकी वल्लभ पटनायक द्वारा पहले जारी की गई नीति की प्रति निकालकर तुलना की। उन्होंने मुख्यमंत्री को टोका, “आप तो जानकी बाबू की नीति पढ़ रहे हैं। आपके उद्योग आयुक्त ने आपको मूर्ख बनाया है- जानकी बाबू की जगह आपका फोटो लगा दिया है। हर पन्ना, हर पैराग्राफ, सब कुछ हूबहू वही है।”
मुख्यमंत्री ने पत्रकार से वह पुरानी नीति मंगवाकर पढ़ी और उसकी बात को अक्षरशः सही पाया। उन्होंने उस महिला अधिकारी की ओर देखा और प्रेस कॉन्फ्रेंस बीच में छोड़कर अपने चैंबर में चले गए। बाद में, उनके पीछे गए उस पत्रकार को उन्होंने धन्यवाद भी दिया।
एक बार जनता दल के कार्यालय में प्रेस कॉन्फ्रेंस चल रही थी। राज्य इकाई के अध्यक्ष अशोक दास भी वहां मौजूद थे। एक अंग्रेजी दैनिक के पत्रकार का एक्रेडिटेशन आवेदन लंबित था। अशोक दास ने यह मामला मुख्यमंत्री के संज्ञान में लाया। बीजू पटनायक ने एक पुरानी फिल्म का गाना याद करते हुए कहा, “दो आरजू में कट गए, दो इंतजार में कट जाएंगे।” लेकिन अगले ही दिन मुख्यमंत्री ने खुद फोन कर उस पत्रकार को बुलाया और अपने चैंबर में एक्रेडिटेशन कार्ड सौंपा।
एक और बार, एक महिला पत्रकार ने बीजू बाबू से पारादीप में प्रस्तावित इस्पात कारखाने की देरी के बारे में सवाल किया। मुख्यमंत्री ने उसे पास बुलाया, उसके गले पर हल्के से चुटकी काटते हुए कहा, “तुम जब चाहोगी, बन जाएगा। कल दिल्ली जा रहे हैं, तुम भी साथ चलो।”
उड़ीसा के ही एक अन्य मुख्यमंत्री, जानकी वल्लभ पटनायक, खबरों के प्रति बेहद संवेदनशील थे। उन्होंने खुद दो दैनिक अखबारों की शुरुआत की—एक उड़िया में और दूसरा अंग्रेजी में। वे नकारात्मक खबरों से बहुत विचलित हो जाते थे। मुंबई के एक अंग्रेज़ी साप्ताहिक में उनके व्यक्तिगत जीवन पर रिपोर्ट छपी, जिसे उन्होंने अदालत में चुनौती भी दी थी।
उड़ीसा के दो और मुख्यमंत्री- हरिकृष्ण मेहताब और नंदिनी सत्पथी- भी समाचार पत्रों से जुड़े हुए थे। उनके भी दैनिक अखबार चलते थे।