पटना: पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद, जो 2017 में पटना के राजभवन में दोपहर विश्राम कर रहे थे, आश्चर्यचकित रह गए जब 26 फरवरी को उनके एडीसी ने खबर दी कि बाहर लगभग पचास आईएएस अधिकारी गेट पर धरना दे रहे हैं और महामहिम से तुरंत मिलना चाहते हैं। कोविंद, जो दो महीने बाद राष्ट्रपति बने, अधिकारियों से मिलने के लिए तैयार हो गए।

आईएएस एसोसिएशन के सदस्यों ने उन्हें एक मेमोरेंडम सौंपा और प्रमुख सचिव स्तर के अधिकारी सुधीर कुमार, जो स्टेट स्टाफ सिलेक्शन कमीशन के अध्यक्ष हैं, को अविलंब रिहा करने की मांग की। सुधीर कुमार को आयोग में हुई नियुक्तियों में बड़े पैमाने पर धांधली और सौ करोड़ रुपये से अधिक के भ्रष्टाचार के आरोप में राज्य की स्पेशल इन्वेस्टिगेशन टीम ने उनके पैतृक घर हजारीबाग से गिरफ्तार किया था। उनके साथ उनके चार पारिवारिक सदस्यों को भी गिरफ्तार किया गया था।

राज्यपाल से मिलने के बाद इन अधिकारियों ने राजभवन के बाहर मानव शृंखला बनाई। उन्होंने आंदोलनकारी रास्ता अपनाते हुए लिखित धमकी भी दी- “जब तक सुधीर कुमार रिहा नहीं होते, कोई भी अधिकारी मुख्यमंत्री और अन्य मंत्रियों का मौखिक निर्देश नहीं मानेगा। यहां तक कि राज्यपाल का भी वर्बल (verbal) ऑर्डर नहीं लिया जाएगा।”

ये अधिकारी मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से भी मिले और एसोसिएशन द्वारा पारित संकल्प, जिसमें मौखिक निर्देश को न मानने की चेतावनी थी, उन्हें सौंपा। यह पहला अवसर था जब भारतीय प्रशासनिक सेवा के वरिष्ठ अधिकारी, जिनमें 28 जिलाधिकारी भी शामिल थे, ने श्रमिक आंदोलनकारियों जैसी सार्वजनिक हरकत की।

राज्यपाल ने मुख्यमंत्री से पूछा कि जिलाधिकारी और अन्य अधिकारी किसकी अनुमति से अपने-अपने मुख्यालय छोड़कर पटना आए। उन्होंने यह भी दुख व्यक्त किया कि इन आंदोलनकारियों में प्रमंडलीय आयुक्त भी शामिल थे।

यह मामला अगले दिन बिहार विधानसभा के बजट सत्र में भी गूंजा। नीतीश कुमार ने घोषणा की कि अधिकारियों की मांग नहीं मानी जाएगी। उन्होंने बताया कि आंदोलनकारी अधिकारियों को शो-कॉज नोटिस भेजा गया है और तीन दिनों के भीतर जवाब मांगा गया है। पटना उच्च न्यायालय में भी एक पीआईएल दाखिल हुआ, जिसमें कोर्ट ने सरकार से पूछा कि जिला स्तर के अधिकारी किसकी अनुमति से राजभवन के सामने धरना-प्रदर्शन कर रहे थे। सरकार ने स्वीकार किया कि अधिकारियों के खिलाफ कठोर कार्रवाई किया जाएगा।

एसोसिएशन सड़क पर उतर आई, लेकिन सुधीर कुमार रिहा नहीं हुए। एक समय था जब यही आईएएस अधिकारी नीतीश कुमार के हर मौखिक निर्देश का खुशी से पालन करते थे।

बिहार में गोपालकृष्ण गांधी कार्यवाहक राज्यपाल थे। एक बार वे कोलकाता से पटना होते हुए मोतिहारी जा रहे थे। उसी समय नीतीश कुमार, सुशील कुमार मोदी और अन्य को बिहार विधान परिषद में राज्यपाल कोटे से सदस्य मनोनीत किया जाना था। नीतीश कुमार ने राज्यपाल के प्रमुख सचिव आर. जे. एम. पिल्लई को बुलाकर एक फाइल दी और आदेश दिया कि राज्यपाल का सिग्नेचर लेना है। राज्यपाल को हवाई जहाज से उतरकर हेलिकॉप्टर पकड़ना था। पिल्लई ने राज्यपाल को बताया- सीएम साहब का निर्देश है।

दूसरी घटना यह है कि मुख्यमंत्री ने अपने प्रमुख सचिव चंचल कुमार को रात करीब 12 बजे राजभवन भेजा और निर्देश दिया कि आज की तारीख में ही राज्यपाल का सिग्नेचर लीजिए। उस समय राज्यपाल दीवानंद कुंवर अपने कक्ष में सोने चले गए थे। राजभवन में रहने वाले एक अधिकारी को जगाकर राज्यपाल का सिग्नेचर लेने का आदेश दिया गया। राज्यपाल किसी तरह उठे और आपातकालीन स्थिति का कारण पूछा। मामला नए एडवोकेट जनरल की नियुक्ति का था। राज्यपाल ने सवाल किया कि इतनी रात में ही क्यों? प्रमुख सचिव ने बताया—“आज ही आदेश जारी करना जरूरी है, क्योंकि बीजेपी (उस वक्त बिहार में जेडीयू-बीजेपी की सरकार थी) भी अपने एडवोकेट जनरल के लिए अलग नाम पर दावा कर रही है।”