Photograph: (IANS)
बिहार में आगामी विधानसभा चुनाव को लेकर राजनीतिक हलचल तेज होती जा रही है। पिछले दो दशकों से बिहार की राजनीति के पोस्टर ब्यॉय नीतीश कुमार आज भी किसी से कम नहीं है, वैसे यह अलग बात है कि इन दिनों वे अपने तथाकथित गिरते स्वास्थ्य को लेकर सुर्खियों में हैं। उधर, राज्य की मुख्य विपक्षी पार्टी राष्ट्रीय जनता दल अपने पारिवारिक उथल-पुथल की वजह से चर्चा में है। ऐसे में अपनी नजर ग्राउंड की उन कहानियों पर भी है जो बिहार की चुनावी पॉलिटिक्स को प्रभावित करने वाली है।
पिछले कुछ दिनों से कटिहार, पूर्णिया, किशनगंज, अररिया जिले की यात्रा के दौरान जो महसूस हो रहा है उसके अनुसार यह कहा जा सकता है कि इस बार चुनावी समर में प्रत्याशियों की संख्या अधिक होगी। दावेदारियों का दौर जारी है। इन जिलों में राजनीति में सक्रिय अधिकांश लोगों में उम्मीदवार बनने की चाहत है, वे चाहे कि किसी भी पार्टी में हों। वैसे इस बात को लेकर निश्चिंत ही रहना चाहिए कि इस बार भी बिहार स्थानीय मुद्दों को लेकर चुनाव नहीं लड़ेगा!
सीमांत जिलों में प्रशांत किशोर की जन सुराज और उदय सिंह की चर्चा
सीमांत जिले में प्रशांत किशोर की अगुवाई में जन सुराज पार्टी भी पूरे जोर-शोर से तैयारी कर रही है। प्रशांत किशोर दूसरी पार्टियों के नाराज नेताओं को अपनी पार्टी में शामिल कर रहे हैं। जन सुराज का अभियान पूरे बिहार में चल रहा है, लेकिन सीमांत जिलों पर पार्टी की खास नजर है। शायद यह भी एक वजह हो सकती है कि पार्टी ने पूर्णिया के पूर्व सांसद उदय सिंह उर्फ पप्पू सिंह को राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया है। इसके बाद उदय सिंह ‘प्रो एक्टिव’ हो गए हैं। इन जिलों में लोगबाग अक्सर बातचीत में पूछ रहे हैं कि जन सुराज सबसे ज्यादा किसे नुकसान पहुंचा सकता है?
वैसे यह सच है कि उदय सिंह की वजह से सीमांत जिले में जन सुराज की चर्चा अधिक होने लगी है। एक समय में सीमांत जिले में मोहम्मद तस्लीमुद्दीन का दरबार सजता था। वे इस इलाके के चेहरा थे और एच डी देवगौड़ा सरकार में गृह राज्य मंत्री रह चुके थे। 5 बार के सांसद और आठ बार के विधायक तस्लीमुद्दीन बिहार में राबड़ी देवी की सरकार में कैबिनेट मंत्री भी थे। सबसे रोचक बात यह है कि उन्होंने अपने पॉलिटिकल करियर की शुरुआत सरपंच-मुखिया से की थी।
बिहार के सीमांत इलाके में तस्लीमुद्दीन की खासी पकड़ थी और उनके समर्थक उन्हें ‘सीमांचल का गांधी’ भी पुकारते थे। आपको बता दें कि यह इलाका बंगाल से सटा हुआ है और यहां भारी गरीबी है, हर साल बाढ़ से जिंदगी दूभर होती है और मुसलमानों की अच्छी खासी तादाद आबाद है।
उदय सिंह का राजनीतिक बैकग्राउंड
कहा जा रहा है कि तस्लीमुद्दीन के बाद पहली बार इस क्षेत्र के किसी नेता को किसी राजनीतिक पार्टी में इतना बड़ा पद मिला है। उदय सिंह पहले भाजपा में रह चुके हैं और 2004 व 2009 में लोकसभा चुनाव जीत चुके हैं। हालांकि 2014 में वे चुनाव हार गए और 2019 में कांग्रेस का दामन थामा, लेकिन तीसरे स्थान पर रहे। 2024 में उन्होंने चुनाव नहीं लड़ा।
उदय सिंह का राजनीतिक बैकग्राउंड भी मजबूत रहा है। उनकी मां माधुरी सिंह भी कांग्रेस से सांसद रह चुकी हैं। 1980 और 1984 में पूर्णिया से संसद पहुंचीं और 1977 में दूसरे स्थान पर रहीं थीं। इस परिवार की सीमांत इलाकों में अच्छी पकड़ मानी जाती है। उदय सिंह विभिन्न जातियों में लोकप्रिय हैं, जिससे जन सुराज को बड़े सामाजिक वर्ग का समर्थन मिलने की उम्मीद है।
राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने के बाद उदय सिंह ने सीमांचल और कोसी इलाके में सक्रियता बढ़ा दी है। वे अपने पुराने समर्थकों और भाजपा में उपेक्षित नेताओं को जन सुराज में शामिल कर रहे हैं।
असदुद्दीन ओवैसी भी सक्रिय, RSS की सक्रियता भी चर्चा में
वैसे इस इलाके में एआईएमआईएम पार्टी के चीफ असदुद्दीन ओवैसी भी सक्रिय हैं। ओवैसी पहले ही कह चुके हैं कि बिहार विधानसभा चुनाव की तैयारी का आगाज हो चुका है और उनकी पार्टी बिहार में अधिक से अधिक सीटों पर चुनाव लड़ने का काम करेगी। उन्होंने कहा कि पार्टी को मजबूत करने का काम किया जा रहा है। वहीं उन्होंने फिलहाल बिहार में किसी पार्टी के साथ गठबंधन से इनकार किया है।
किशनंगज में राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ की सक्रियता को लेकर भी चर्चा हो रही है। किशनगंज भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष का जिला है, वहां उनका मेडिकल कॉलेज है। याद करिए, अमित शाह ने किशनगंज प्रवास भी किया था।
इन दिनों पूर्णिया से लेकर किशनगंज तक के सुदूर इलाकों में संघ की गतिविधियों पर भी नजर रखने की जरूरत है लेकिन संघ का सबसे महत्वपूर्ण रूप, जिसे शाखा कहा जाता है, उसकी संख्या इन इलाको में काफी कम देखी जा रही है। जबकि पहले इन इलाकों में शाखाएं खूब लगती थी। कार्यवाह रह चुके एक बुजुर्ग स्वयंसेवक ने बताया कि 2014 से पहले सीमांत जिलों में जिस तरह शाखाएं लगती थी, अब वो बात नहीं रही!
'चुनाव नेता थोड़े लड़ता है, पैसा लड़ता है!'
दूसरी ओर, चुनाव पूर्व पोस्टर बाज़ी की बात करें तो पूर्णिया से किशनगंज के रास्ते में लालू यादव की पार्टी और प्रशांत किशोर की पार्टी आगे दिख रही है। मुस्लिम बहुल बायसी में हाईवे पर प्रशांत किशोर की पार्टी जनसुराज का एक भव्य ऑफिस भी दिखता है!
अररिया के जोकीहाट इलाके में एक व्यक्ति से जब बात हो रही थी तो उन्होंने हंसते-हंसते कमाल का एक स्टेटमेंट दिया- 'चुनाव नेता थोड़े लड़ता है, पैसा लड़ता है!'
बिहार को ग्राउंड से देखने का यह समय है लेकिन यह भी सच है कि चुनाव लड़ने के लिए पैसा इतना अधिक लूटाना पड़ता है कि लगता है कि पैसे की धमक ही चुनावी नैया पार कराएगी।
बहरहाल, अभी से लेकर विधानसभा चुनाव तक आपके प्लेट में चुनावी कंटेंट अलग अलग स्वादों में परोसे जाएंगे, वह चाहे बड़ी पार्टी हो या फिर छोटी छोटी पार्टियां। बड़े-बड़े बैनर से लेकर जहरीले संवाद का दौर अब शुरु होने वाला है। चुनावी स्क्रिप्ट लिखी जा रही है, अभी तो कहानी शुरु ही हुई है!