जार्ज बर्नार्ड शॉ ने एक कॉमेडी लिखी थी- आर्म्स एंड द मैन। बिहार में भी कुछ ऐसा ही होता है, फर्क बस इतना है कि इस कॉमेडी में जिला मैजिस्ट्रेट खुद एक किरदार बन जाते हैं।

हाल ही में पटना उच्च न्यायालय के न्यायाधीश माननीय चंद्रशेखर झा ने राज्यपाल के प्रधान सचिव और 1997 बैच के आईएएस अधिकारी रॉबर्ट एल. चोंगथू के खिलाफ सहरसा जिला न्यायालय को यह निर्देश दिया कि उनके खिलाफ 2004 में दर्ज मुकदमे की सुनवाई रोजाना की जाए और छह माह के भीतर इसका निर्णय दे दिया जाए।

चोंगथू के खिलाफ भारतीय दंड संहिता और आर्म्स एक्ट की विभिन्न धाराओं के तहत सहरसा सदर थाना पुलिस ने मामला दर्ज किया था। इस पर मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी (सीजेएम) ने संज्ञान लेते हुए मुकदमा आरंभ किया था।

चोंगथू पर क्या आरोप हैं?

आरोप है कि उन्होंने हथियारों के लाइसेंस निर्गत करने में बड़े पैमाने पर "गड़बड़ियां और अवैधताएं" कीं। उस समय के पुलिस अधीक्षक श्री अरविंद पांडेय की जांच में पाया गया कि कई लाइसेंस बिना पुलिस जांच के जारी किए गए। इनमें ऐसे लोग भी शामिल थे जो न तो स्थानीय थे, न ही उनके पते सत्यापित थे, कुछ तो अस्तित्व में ही नहीं थे।

जांच में यह भी सामने आया कि पटना के कुछ कुख्यात अपराधियों को सहरसा से हथियार लाइसेंस जारी किए गए। एक अपराधी, जिसके खिलाफ पीरबहोर थाना में एफआईआर दर्ज थी, उसे भी लाइसेंस मिल गया।

डीएम के एक सुरक्षाकर्मी ने स्वीकार किया कि उसने अपने प्रभाव का इस्तेमाल कर अपने चार करीबी रिश्तेदारों को- जो सहरसा से लगभग 400 किलोमीटर दूर रहते थे- लाइसेंस दिलवा दिए।

पुलिस अधीक्षक द्वारा की गई जांच में यह भी पाया गया कि आर्म्स मजिस्ट्रेट और आर्म्स सेक्शन के वरिष्ठ बाबू की टिप्पणियों को नजरअंदाज कर डीएम ने लाइसेंस जारी कर दिए। चार्जशीट में पुलिस ने आरोप लगाया कि डीएम ने “बाहरी प्रभावों” और “मनमाने तरीके” से हथियारों के लाइसेंस जारी किए।

बिहार सरकार के विधि विभाग ने सामान्य प्रशासन विभाग को इस अधिकारी के खिलाफ मुकदमा जारी रखने की अनुमति (sanction) देने की सिफारिश की थी।

अब वही डीएम साहब राज्यपाल के प्रमुख सचिव हैं। उन्होंने उच्च न्यायालय में अपने खिलाफ दर्ज प्राथमिकी को रद्द (quash) करने की याचिका दायर की, जिसे न्यायालय ने खारिज कर दिया और साथ ही सहरसा जिला न्यायाधीश को स्पीडी ट्रायल का आदेश भी दिया।

बिहार में इस समय आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार 82,585 लोगों के पास हथियारों के लाइसेंस हैं। पंचायत से लेकर राष्ट्रीय स्तर तक के राजनेता, ठेकेदार, जमीन कारोबारी, सरकारी अधिकारी और यहां तक कि विश्वविद्यालय के शिक्षक भी हथियार रखते हैं। सहरसा का मामला केवल एक उदाहरण है।

तबादले से पहले जिलाधिकारियों ने रिकॉर्ड 300 लोगों को लाइसेंस जारी किए

पिछले सप्ताह बिहार में एक दर्जन से अधिक डीएम का तबादला हुआ। नेपाल सीमा से लगे एक जिले के अधिकारी को राजधानी में स्थानांतरित किया गया, लेकिन जाने से पहले अपने कार्यकाल के अंतिम सप्ताह में उन्होंने रिकॉर्ड 300 लोगों को लाइसेंस जारी कर दिए।

बांग्लादेश सीमा से लगे एक अन्य ज़िले के डीएम ने 600 लोगों को लाइसेंस जारी करने के बाद पटना स्थानांतरित हो गए।

पटना से लगभग 50 किलोमीटर दूर एक जिले के डीएम ने जैसे ही तबादले का आदेश प्राप्त किया, 400 लोगों को लाइसेंस निर्गत कर उपकृत किया और अब प्रमोट होकर प्रमंडलीय आयुक्त बन गए हैं। बिहार के एक प्रमुख धार्मिक स्थल में पदस्थ एक कलेक्टर साहब ने मात्र एक सप्ताह में 309 लाइसेंस जारी करने का आदेश दिया।

वहीं एक युवा और ईमानदार छवि वाले डीएम साहब ने 79 लोगों को हथियारों के लाइसेंस दिए- ये सभी उनके गृह ज़िले के थे, न कि स्थानीय। जब उनके खिलाफ जांच के लिए आयुक्त जिला मुख्यालय पहुंचे, तो डीएम साहब मुख्यमंत्री आवास, पटना में मौजूद पाए गए।