देश के पिछड़े राज्यों में अव्वल बिहार इन दिनों विधानसभा चुनाव को लेकर दायें-बाएं कर रहा है। यह एक ऐसा प्रदेश है जो राजनीति को जी-जान से जीता है, आप इस राज्य के किसी भी कोने में चले जाइए और पूछिए किसी से भी राजनीति की बात, लोगबाग मुखर होकर बतकही करने लगेंगे। यह है बिहार।
लेकिन डिजिटल स्पेस पर बिहार किस रंग में दिखता है? रील्स से लेकर कंटेंट तक में बिहार का रंग कौन जमा रहा है? इन सवालों के जवाब को जब हम ढूंढ़ने निकले तो हमारी मुलाकात पीले रंग के बैकग्राउंड में प्रशांत किशोर से होती है।
कभी चुनाव के बाजार को क़ॉरपोरेट कल्चर में ढालने वाले प्रशांत किशोर डिजिटल स्पेस पर बिहार को लेकर सबसे अधिक मुखर हैं।
दरअसल चुनाव के काम को रोजगार में बदलने वाले प्रशांत किशोर इन दिनों सबसे अधिक सुर्खियों में हैं। कभी देश भर के मीडिया मंडी के पीआऱ को मैनेज करने वाले प्रशांत किशोर अब हर चैनल के स्पेस को बिहार-मय कर रहे हैं। पॉडकास्ट हो या फिर यूट्यूब-न्यूज चैनल का स्क्रीन, हर जगह प्रशांत किशोर अपने अंदाज में बिहार की बदहाली और फिर एक नए रोड मैप के बारे में बतियाते हुए आपको दिख जाएंगे।
कभी शराबबंदी, कभी भूमि सर्वे तो कभी नौवीं फेल, जैसे की- वर्ड को बिहार पॉलिटिक्स से जोड़कर वे गूगल सर्च में नंबर वन दिख जाएंगे। हम जैसे लोग जो चुनाव के दौरान और चुनाव से पहले अलग-अलग दलों के लिए ग्राउंड कंटेंट मैनेजमेंट का काम देखते आए हैं, उनके लिए प्रशांत किशोर एक चैप्टर की तरह हैं। एक ऐसा चैप्टर, जिसमें राज्य के आंकड़ों के साथ बाजीगिरी दिखाई जाती है। कौन जीता-कौन हारा से पहले एक डॉक्यूमेंट्री बनाकर वोटरों के बीच चले जाना और बताना हम कौन हैं, यह अद्भूत कला है।
जनसुराज नाम की पार्टी को कम वक्त में लोगों की जुबान तक पहुंचाना वैसे तो हर किसी के बस की बात नहीं है लेकिन प्रशांत किशोर ने अपनी मजबूत और पेशेवर टीम के जरिए यह काम कर दिखाया है। राज्य के हर जिले में दो साल पहले तक पेशेवर लड़के-लड़कियां घर-घर घूमकर, आपके ड्राइंग रुम से लेकर गांव के चौपाल तक पहुंचकर लोगों से राय ले रही थी, हमारी भाषा में डाटा इकट्ठा कर रही थी। यह काफी महंगा काम था। लेकिन प्रशांत किशोर ने किया, वे आज लाख कहें कि “मैं पार्टी का चेहरा नहीं हूं” लेकिन जनसुराज का चेहरा वे खुद बने हैं अपनी पेशेवर टीम की बदौलत!
वैसे जहां तक मुझे याद है कि साल 2015 में उनकी कंपनी आईपैक (इंडियन पॉलीटिकल एक्शन कमेटी) बिहार के 40 हज़ार गाँवों तक पहुंची थी ताकि ये पता लगाया जा सके कि लोगों की समस्याएँ क्या हैं।
पीके अपनी हर बातचीत में बिहार से पलायन, गिरती शिक्षा व्यवस्था और शराबबंदी को जिस अंदाज में सामने लाते हैं, उसे सुनकर आम आदमी खुश हो जाता है। यह राजनीति का मास्टर क्लास है, जहां हम अपने वक्तव्य के जरिए लोगों के दुख को बेबाकी से सामने रखते हैं। हम सबने 2014 में मोदी कैंपेन में यह सब देखा था। तब नरेंद्र मोदी हर जगह आम लोगों की बात को स्पेस देते थे।
हाल ही में प्रशांत किशोर ने एक निजी समाचार एजेंसी के पॉडकास्ट में कहा- “ 2014 में जब नरेंद्र मोदी बिहार के मोतिहारी आए थे तो उनका भाषण मैंने ही लिखा था और उनसे कहवाया था कि इसी चीन मिल के बने चीनी से चाय पीउंगा तो मोतिहारी आउंगा…”
प्रशांत किशोर की इस बात यहां इसलिए रख रहा हूं क्योंकि वे आज इसी स्टाइल में बिहार में राजनीति कर रहे हैं। इसमें कोई दो राय नहीं है कि वे एक सफल चुनावी रणनीतिकार रह चुके हैं। उन्होंने हम सबको 2014 से अबतक एक से बढ़कर चुनावी कैंपेन दिखाया है, उनकी टीम के पास आंकड़ों का भंडार है लेकिन यह भी सच है कि जब आप खुद राजनीति के मैदान में उतर आते हैं तो बहुत कुछ आपको अलग तरीके से करना होता है, जनता नाटक देखती है और नाटक जब रिपिट होने लगता है तो जनता बोर हो जाती है।
दरअसल राजनीति के मास्टर क्लास में लोग यह समझने की भूल कर बैठते हैं कि ‘मैं ही अकेला उद्धारक हूं, मैं ही बदल दूंगा...’ बार बार यह दोहराकर राजनीति की जा सकती है लेकिन 2014 के परिणाम के बाद की राजनीति में इस स्टाइल को नरेंद्र मोदी जिस अंदाज से अपने नाम का कॉपीराइट करवा लिया है कि अब जनता हर उस पॉलिटिकल व्यक्ति से बचना चाहती है जो खुद को ‘अकेला उद्धारक’ मानता है।
गौरतलब है कि प्रशांत किशोर सभी रंगों और विचारों के राजनीतिक दलों को अपनी सेवाएँ दे चुके हैं। साल 2014 में वो नरेंद्र मोदी के साथ थे और फिर उन्होंने मोदी की चिर प्रतिद्वंद्वी ममता बनर्जी को पश्चिम बंगाल में जीत हासिल करने में मदद की।
विधानसभा चुनाव से पहले बिहार के सीमांत जिलों में बिखरे विधानसभा क्षेत्रों में घूमते हुए प्रशांत किशोर की पार्टी के पोस्टर बैनर अक्सर दिख जाते हैं। बायसी विधानसभा क्षेत्र में एक बुजुर्ग ने प्रशांत किशोर के वैचारिक रंग के बारे में मार्के की बात कही, “प्रशांत किशोर ऐसा आदमी है, जो जिस किसी के सिर पे हाथ रख देगा, उसे कामयाब कर देगा लेकिन यह भी सच है कि कि वो बहुत सावधानी से अपना ग्राहक चुनते हैं, देख लीजिए पीछे पलटकर, वे उन्हीं दलों को ही अपने सेवाएँ देते हैं, जिनके जीतने की संभावना अधिक होती है...।”
खैर, यह तो आने वाला वक्त बताएगा कि प्रशांत किशोर का राजनीतिक प्रयास बिहार की राजनीति में बदलाव दिखाएगा या नहीं लेकिन इतना सच है कि पीके ग्राउंड में मेहनत कर रहे हैं।
जो कोई उनकी कंपनी में काम कर चुका है, वह यह कह सकता है कि पीके जनता के बीच आंकड़ों और कंटेंट के जरिए एक सिस्टम तैयार करते हैं जिससे ये पता चल जाता है कि लोग क्या बात कर रहे हैं, लोग क्या चाहते हैं।
दरअसल यदि कोई भी पेशेवर तरीके से लोगों की बात सुनने का काम करे तो जो कुछ नई जानकारियाँ मिलती हैं, वो हमेशा चौंकाती हैं और फिर उसी चौंकाने वाले आंकडों की बदौलत आगे की पॉलिटिक्स होती है।