पिछले एक सप्ताह में बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी (बीएलए) ने पाकिस्तान की धरती पर दो बड़े हमले किए हैं। पहला हमला मंगलवार (11 मार्च) को क्वेटा से पेशावर जा रही जाफर एक्सप्रेस ट्रेन को हाईजैक करके किया गया। दूसरा हमला उसने बलूचिस्तान के नोश्की इलाके में सेना के काफिले पर किया, जिसमें कई लोग मारे गए। दोनों हमलों में एक बात समान थी कि बड़ी संख्या में सेना के जवान मौजूद थे।
गौर करने वाली बात है कि जिस ट्रेन को हाईजैक किया गया उसमें सवार 500 से ज्यादा यात्रियों में से 100 से ज्यादा अलग-अलग रैंक के सेना के जवान थे। नोश्की में जिस काफिले पर हमला हुआ, उसमें सवार सभी आठ वाहनों में फ्रंटियर कोर (एफसी) के जवान थे। तो? इन हमलों से एक बात तो साफ हो जाती है कि बीएलए पाकिस्तानी सेना से भिड़ने से नहीं डरता। इसके उलट वह सक्रिय रूप से पाकिस्तानी सैनिकों से लड़ने और उन्हें मारने की कोशिश कर रहा है।
ट्रेन अपहरण की घटना के बाद शुक्रवार (14 मार्च) को बलूचिस्तान के मुख्यमंत्री सरफराज बुगती इंटर-सर्विसेज पब्लिक रिलेशंस (आईएसपीआर) के महानिदेशक लेफ्टिनेंट जनरल अहमद शरीफ चौधरी के बगल में बैठे थे और प्रेस कॉन्फ्रेंस को संबोधित कर रहे थे। आईएसपीआर प्रमुख ने आरोप लगाया कि बलूचिस्तान में आतंकवाद के लिए भारत जिम्मेदार है। उन्होंने कहा कि इस घटना ने 'खेल के नियम' बदल दिए हैं।
भारत पर पाकिस्तान के बेतुके आरोप
लेफ्टिनेंट जनरल चौधरी ने जोर देकर कहा कि बलूचिस्तान में आतंकवाद का मुख्य प्रायोजक भारत है। उन्होंने कहा, 'हमें यह समझना चाहिए कि बलूचिस्तान में इस आतंकवादी घटना में और इससे पहले की अन्य घटनाओं में, मुख्य साजिशकर्ता आपका पूर्वी पड़ोसी (भारत) है।'
सवाल है कि जनरल चौधरी ऐसा करते अपने पूर्वी पड़ोसी भारत और पूरी दुनिया को क्या संदेश देना चाह रहे थे? खैर, जब उन्होंने कहा कि हमले के सूत्रधारों को पाकिस्तान के अंदर और बाहर दोनों जगह निशाना बनाया जाएगा, तो उनके संदेश को समझने की जरूरत है। जाहिर है इसका प्रभावी रूप से मतलब है कि आने वाले दिनों, हफ्तों और महीनों में जम्मू और कश्मीर में और अधिक आतंकवादी हमलों की आशंका हैं।
कुछ दिन पहले, केंद्र शासित प्रदेश (यूटी) जम्मू और कश्मीर के कठुआ जिले के बिलावर तहसील के मल्हार इलाके में तीन लोगों के शव मिले थे, जो सभी हिंदू थे। उससे पहले, बिलावर तहसील के कोहाग गांव के पास दो लोगों के शव मिले थे। अधिकांश स्थानीय लोगों का दावा है कि यह पाकिस्तान प्रायोजित आतंकी थे जिन्होंने दोनों मौकों पर इन हत्याओं को अंजाम दिया था। यह इलाका उस स्थान से बहुत दूर नहीं है, जहां पिछले साल यानी 2024 के मध्य में सेना के एक वाहन पर घात लगाकर हमला किया गया था। इसमें एक कैप्टन समेत पांच जवान आतंकवादियों द्वारा मारे गए थे।
आतंकी गतिविधियों में तेजी लाएगा पाकिस्तान?
जम्मू-कश्मीर में हो रही घटनाओं पर नजर रखने वाले लोगों का कहना है कि अगर आने वाले दिनों में ऐसी हत्याओं या मौतों में तेजी देखी जाए तो उन्हें आश्चर्य नहीं होगा। यह एक तरीका है जिससे पाकिस्तान जम्मू-कश्मीर में निर्दोष लोगों को निशाना बनाने के लिए अपने आतंकी छद्मों को सक्रिय करना चाहेगा। आईएसपीआर के लेफ्टिनेंट जनरल चौधरी शायद यही इशारा उन लोगों को कर रहे हैं जो सुनना चाहते हैं। कुल मिलाकर कहें तो पाकिस्तान द्वारा समर्थित और प्रायोजित ऐसी आतंकवादी गतिविधियों में तेजी आने की प्रबल संभावना है।
इस बात पर भी गौर करना होगा कि इस मोड़ पर भारत के खिलाफ आतंकी गतिविधियों की रफ्तार बढ़ाने से पाकिस्तान को क्या हासिल होगा? खैर, आंतरिक रूप से यह एक ऐसा समाज और राष्ट्र है जो कई स्तरों पर बहुत गहराई से विभाजित है, चाहे वह संप्रदाय हो या प्रांत के मामले में या राजनीतिक दल। पिछले साल के चुनावों में, जिसके बारे में माना जाता है कि उसमें भारी धांधली हुई थी, किसी भी पार्टी को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला। पीएमएल-एन ने पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी (पीपीपी) के बाहरी समर्थन से सरकार बनाई। प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ की अगुआई वाली इस सरकार की वैधता सवालों के घेरे में है और इसे जनता का समर्थन भी नहीं है।
भारत विरोधी बातें फैलाने से मिलेगा शरीफ सरकार को फायदा?
संभावना है कि विभिन्न दलों के राजनेता भी लेफ्टिनेंट जनरल चौधरी के बताए रास्ते पर चलेंगे और उन्हीं की बातों को दोहराते हुए भारत पर पाकिस्तान में आतंकवाद को बढ़ावा देने का आरोप लगाएंगे। भारत विरोधी बयानबाजी, तोड़फोड़ और हत्याओं की थोड़ी-बहुत कार्रवाई पाकिस्तानियों को एक मंच पर लाने के लिए आजमाया हुआ और परखा हुआ तरीका है। उन्माद पैदा करने और समाज में सभी असहमति को दबाने के लिए, बलूचिस्तान के आतंकवाद में भारत के हाथ होने का हौवा खड़ा करना शरीफ सरकार के काम आ सकता है।
इसके अलावा पाकिस्तान ने पिछले 15 महीनों में कई मौकों पर भारत को बातचीत में शामिल होने के लिए मनाने की कोशिश की है, ताकि व्यापार संबंधों को बहाल किया जा सके और वह अपनी अर्थव्यवस्था को मजबूत कर सके। इन प्रयासों को भारत ने आधिकारिक तौर पर उसी सख्ती से खारिज किया है जिसके वे हकदार हैं। अब, जनरल असीम मुनीर के फरवरी 2021 के युद्धविराम समझौते से मुकरने के साथ ही पाकिस्तानी सेना द्वारा नीति की बागडोर अपने हाथों में लेने की भी एक संभावना है।
बहरहाल, भारत के खिलाफ आतंकियों को सक्रिय करना एक कम लागत वाला जोखिम है, जिसे पाकिस्तान निकट भविष्य में उठा सकता है। यही कारण है कि पाकिस्तान में बलूचिस्तान और खैबर पख्तूनख्वा में जो कुछ हुआ है, उसका असर जम्मू-कश्मीर में देखने को मिल सकता है।