अभी गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर 139 लोगों को पद्म सम्मान देने की घोषणा गृह मंत्रालय ने की। इस सूची में विदेशी भी हैं, राजनीति शहीद लोग भी, चिकित्सा, साहित्य और पत्रकारिता जगत के लोग भी शामिल हैं।
1954 में भारत सरकार ने भारत रत्न, पद्म विभूषण,पद्म भूषण और पद्म श्री सम्मान की शुरुआत की थी। इस बार की सूची में एक अवकाश प्राप्त मुख्य न्यायधीश का भी नाम सम्मिलित है। बिहार के पूर्व उप मुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी को मरणोपरांत पद्म भूषण मिलेगा, वहीं पुलिस की नौकरी छोड़ कर धार्मिक और सामाजिक सेवा में लगे किशोर कुणाल को मरणोपरांत पद्मश्री मिलेगा। बिहार सरकार ने आधिकारिक तौर पर इन्हें पद्म विभूषण देने की अनुशंसा की थी।
तीन उच्च अधिकारी जिसमें गृह सचिव, कैबिनेट सचिव और राष्ट्रपति के सचिव होते हैं , संभावित उम्मीदवार की जांच करते हैं, फिर गृहमंत्री और प्रधानमंत्री अंतिम सूची तैयार करते हैं।
नरेंद्र मोदी की सरकार ने कुछ वर्षों से डॉक्टरों को पद्म पुरस्कारों से अलग रखा था, लेकिन नई सूची में आधे दर्जन लोगों का नाम है। उन्हें शक था प्रभावशाली डॉक्टर्स जो वीवीआईपी का इलाज करते रहे, अपने नाम की सिफारिश करवा देते थे। कई वर्षों तक बीजेपी सरकार ने गांव-देहात के ओझा, जड़ी बूटी वाले को भी पद्मश्री दिया।
भारत के पहले शिक्षा मंत्री मौलाना अबुल कलम आजाद ने भारत रत्न लेने से इनकार कर दिया था। प्रधानमंत्री के तत्कालीन प्रमुख सचिव, पीएन हक्सर ने पद्म विभूषण लेने से मना कर दिया था। उन्होंने अपने पत्र में लिखा- मैंने एक सिविल सर्वेंट के रूप में जो मुझसे अपेक्षा थी, वही किया था।
प्रसिद्ध गायक हेमंत कुमार ने पद्म श्री को नकार दिया। उन्होंने बताया था, “मुझे सही समय पर सही सम्मान नहीं मिले।” इनसे कनिष्ठ लोगों को पहले ही पद्म श्री और भूषण दिया जा चुका था। मलेशिया के लेखक सुकुमार अजीकोड ने भी सम्मान लेने से मना कर दिया, क्योंकि उन्हें लगा पद्म श्री उनके स्तर के लायक नहीं है। असम के लेखक कनक सेन डेका ने भी पद्म श्री नहीं लिया, उनके स्तर से नीचे था।
हाल ही में ओलंपियन कुश्ती वाले बजरंग पुनिया ने पद्म श्री लौटा दिया। बीस साल पहले लेखक खुशवंत सिंह ने ब्लू स्टार के खिलाफ पद्म श्री लौटा दिया था। जनता पार्टी की सरकार ने पद्म पुरस्कार और भारत रत्न पर रोक लगा दी थी तथा 1977-80 के बीच किसी को भी सम्मान नहीं मिला।
इन पुरस्कार और सम्मान जो भारतीय संविधान के 18(1) अनुच्छेद के अनुसार दिया जाता है, को सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी गई और फिर अगस्त 1992 और दिसंबर 1994 के बीच जब मामला न्यायलय में विचाराधीन रहा, किसी को भी सम्मान नहीं दिया गया। ये सम्मान विवाद से परे नहीं रहे। एक शासन काल में खुला आरोप लगा कि भूषण सम्मान के लिए पांच करोड़ लिए गए।
पूर्व में तत्कालीन सरकार और पार्टी के समर्थक पत्रकारों को पद्म सम्मान दिए गए। एक न्यूज चैनल से दो पत्रकार सम्मानित हुए, तो एक अखबार के मालिक और संपादक एक ही साथ पुरस्कृत हुए।
पिछले दस साल में यदि सूची देखी जाये तो सरकार और दल समर्थित और समर्पित लोग ही पुरस्कृत हुए, चाहे राजनीति वाले हो या साहित्य में। पिछले साल मुलायम सिंह यादव को भूषण मिला, एक जाती विशेष को सम्मानित करना उद्देश्य रहा। शरद पवार को वहां होने वाले चुनाव को ध्यान में रखा गया। साहित्य और पत्रकारिता के क्षेत्र में भी विशेष विचार धारा से जुड़े लोग ही पुरस्कृत हो रहे हैं। इस बार की सूची में यह और भी स्पष्ट है।