2013 में पटना के गांधी मैदान में भाषण देते हुए नरेंद्र मोदी। फोटोः BJP Youtube Vidoegrab
22 अप्रैल को पहलगाम में हुए आतंकवादी हमले ने 27 अक्टूबर 2013 की आतंकी घटना की याद ताजा कर दी। उस दिन पटना के हृदयस्थल गांधी मैदान में गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी बीजेपी द्वारा आयोजित हुंकार रैली को संबोधित करने आए थे।
13 सितंबर 2013 को पार्टी के तत्कालीन अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने प्रकाश सिंह बादल और उद्धव ठाकरे से बात करने के बाद नरेंद्र मोदी को राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) की ओर से प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किया था, और मोदी का पहला कार्यक्रम पटना में ही तय किया गया था।
जुलाई 2013 में नीतीश कुमार ने बीजेपी से गठबंधन तोड़ लिया था और राजद व कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार चला रहे थे। मोदी के प्रधानमंत्री उम्मीदवार घोषित होने से नीतीश और अधिक नाराज थे; उनमें भी प्रधानमंत्री बनने की महत्वाकांक्षा जाग चुकी थी। इसी बीच, लालू यादव को चारा घोटाले के एक मुकदमे में सीबीआई की विशेष अदालत ने सजा सुनाई थी और उन्हें बिरसा मुंडा जेल भेजा गया था।
नरेंद्र मोदी के गांधी मैदान पहुंचने से पहले ही पटना में बम धमाके शुरू हो गए थे। मैं फोटोग्राफर प्रमोद शर्मा के साथ रैली कवर करने निकला। कंकड़बाग, चिरैयाटांड़, एग्जीबिशन रोड, स्टेशन रोड- सभी रास्ते गांधी मैदान जाने वाली भीड़ से भरे हुए थे। हमलोग पटना जंक्शन स्थित महावीर मंदिर पहुंचे और स्कूटर वहीं पार्क किया। प्लेटफॉर्म पर भी लोकल ट्रेनों से आने वाली भीड़ उमड़ रही थी।
स्टेशन पर बम धमाके से फैली दहशत
स्टेशन के दक्षिणी हिस्से, करबिगहिया के प्लेटफॉर्म नंबर 10 पर खड़ी पटना-गया पैसेंजर ट्रेन के पास लोग घबराए हुए इधर-उधर भाग रहे थे। सुलभ शौचालय के पास हमने देखा कि दो दरवाजे टूटे पड़े थे। अंदर एक युवक खून से लथपथ पड़ा था; कुली और एक सिपाही उसे खींच रहे थे। वहां एक कपड़े का झोला और पैसे वाला बक्सा भी पड़ा था।
वहीं, शौचालय में हुए विस्फोट ने जांच को दिशा दी। बाद में पता चला कि रांची से आए आतंकवादी वहीं बम को अंतिम रूप दे रहे थे। बाहर निकलने पर पुलिस चौकी पर एक वरीय अधिकारी, जो कलेक्ट्रेट द्वारा विधि-व्यवस्था के लिए तैनात थे, से हमने विस्फोट की सूचना दी। उन्होंने कहा, "कंट्रोल रूम से कोई संदेश नहीं मिला है।"
इसके बाद हम फ्रेजर रोड होते हुए टाइम्स ऑफ इंडिया कार्यालय पहुंचे, स्कूटर पार्क किया और फिर गांधी मैदान की ओर बढ़े। नरेंद्र मोदी पश्चिमी द्वार से एंबेसडर कार में प्रवेश कर रहे थे। ड्राइवर के बगल वाली सीट पर वे स्वयं बैठे थे। उनके साथ कोई पायलट वाहन या सुरक्षा दल नहीं था। रास्ते में वे हाथ जोड़कर जनता का अभिवादन कर रहे थे।
तब तक बिहार के स्थानीय नेता भाषण दे चुके थे। नरेंद्र मोदी का भाषण शुरू होते ही मैदान के पश्चिम (बिस्कोमान भवन), पूर्व (खादी भवन), उत्तर (मगध महिला कॉलेज) और दक्षिण (राम गुलाम चौक) क्षेत्रों में बम फूटने लगे।
पूर्व उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी ने स्थिति की गंभीरता भांप ली। वे पटना के विधायक भी रहे थे। उन्होंने माइक संभाला और जनता से अपील की, "कार्यकर्ताओं ने अति उत्साह में पटाखे फोड़ने शुरू कर दिए हैं, घबराइए नहीं।"
लेकिन नरेंद्र मोदी मंच से स्थिति देख चुके थे। पूर्व दिशा में घायल लोगों को उठाकर निजी गाड़ियों से अस्पताल ले जाया जा रहा था। उनके मंच के निकट भी विस्फोट हुआ, लेकिन मोदी ने भाषण जारी रखा और राज्य सरकार पर भी आक्रामक हमला बोला।
गांधीनगर से आए एक अधिकारी ने वहां मौजूद एक पुलिस अधिकारी से आग्रह किया कि नरेंद्र मोदी को भाषण समाप्त कर निकलने को कहें। लेकिन मोदी ने मना कर दिया। तब तक छह लोग मारे जा चुके थे और लगभग 90 लोग घायल हो गए थे।
धमाकों के बाद मैदान में मिला जिंदा विस्फोटक
भाषण खत्म होने के बाद गांधी मैदान में जगह-जगह बम तलाशी अभियान शुरू हुआ। आठ जिंदा शक्तिशाली बम बरामद हुए। जिस मंच से नरेंद्र मोदी का भाषण हो रहा था, वहां भी अत्यंत शक्तिशाली बम लगाया गया था। गंगा नदी किनारे जब उसे निष्क्रिय किया गया, तो विस्फोट की आवाज से कंट्रोल रूम में तैनात मजिस्ट्रेट भी घबरा गए।
एक अधिकारी ने सुझाव दिया कि कंट्रोल रूम के बाहर से ताला लगा देना चाहिए, लेकिन एक महिला दंडाधिकारी ने समझाया कि अगर आतंकवादी आग लगा दें तो हम जलकर मर सकते हैं।
उस समय पटना के जिलाधिकारी एक युवा आईएएस अधिकारी थे, जो तमिलनाडु से आए थे। गांधी मैदान के पश्चिमोत्तर कोने पर स्थित उनके आवास से मार्गदर्शन की उम्मीद थी, लेकिन वे नहीं मिले। बाद में पता चला कि वे गोपनीय शाखा में बंद थे।
इस आतंकी घटना की जांच राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) ने की। देश के विभिन्न हिस्सों से 10 लोगों को गिरफ्तार किया गया। 24 अप्रैल 2014 को चार्जशीट दाखिल हुई। 2021 में एनआईए की विशेष अदालत ने चार आरोपियों को मृत्युदंड, तीन को आजीवन कारावास, दो को दस वर्ष की सजा और एक को सात वर्ष की सजा सुनाई।
गुजरात पुलिस ने बिहार पुलिस पर खुला आरोप लगाया कि राज्य सरकार ने उनके मुख्यमंत्री की सुरक्षा में घोर लापरवाही बरती। यहां तक कि एडवांस लायजन पार्टी भी नहीं भेजी गई थी। रास्तों और गांधी मैदान में मेटल डिटेक्टर से जांच नहीं हुई थी। बाद में नीतीश कुमार ने इन आरोपों का खंडन किया।
तीन दिन बाद नरेंद्र मोदी फिर पटना आए और हेलीकॉप्टर से अलावलपुर गांव जाकर उस परिवार से मिले, जिनके बेटे की मौत सीरियल ब्लास्ट में हुई थी। प्रधानमंत्री बनने के 11 साल बाद भी नरेंद्र मोदी ने इस घटना को याद किया। उन्होंने दिल्ली से फोन कर अलावलपुर की यात्रा और उस परिवार की ताजा स्थिति की जानकारी मांगी। मोदी ने परिवार के एक सदस्य को एक निजी कंपनी में नौकरी भी दिलवाई थी।