यह वही मोरबी है—पुनर्निर्मित मच्छू बांध के किनारे बसा हुआ—जो 11 अगस्त 1979 को मच्छू नदी की भीषण बाढ़ में पूरी तरह तबाह हो गया था। उस दिन मानो पूरा औद्योगिक शहर बह गया हो। 25,000 से अधिक लोगों की जान चली गई, कारखाने कबाड़ में बदल गए, सड़क और रेल संपर्क कट गया, और टेलीफोन के खंभे बहकर कहीं के कहीं पहुंच गए।

तब गुजरात के मुख्यमंत्री बाबूभाई जशभाई पटेल ने हवाई सेवाएं ठप होने के कारण कच्छ होते हुए मोरबी पहुंचने का रास्ता चुना। उनकी प्रशासनिक सूझबूझ का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि उन्होंने होमगार्ड कमांडेंट उषाकांत मांकड़ से हैम रेडियो के ज़रिए संपर्क साधा और फिर वहीं से पूरे राज्य को दिशा-निर्देश दिए।

मुख्यमंत्री ने आदेश दिया कि गुजरात के अलग-अलग हिस्सों से बिजली के खंभे निकालकर मोरबी भेजे जाएं। राज्यभर से सीमेंट और बालू की बोरियां मंगवाकर बांध की दरारें भरने का काम युद्धस्तर पर शुरू हुआ। उन्होंने एक जूनियर आईएएस अधिकारी रामरख्याणी को मोरबी राहत शिविर में पूरा वित्तीय और प्रशासनिक अधिकार देकर तैनात कर दिया। 

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इस अधिकारी को मुख्य सचिव के अधिकार भी सौंप दिए। ना कोई फाइल चली, ना कोई सरकारी मुहर। आदेश एक सादे कागज़ पर लिखा गया— "एक मुख्यमंत्री के तौर पर मैं हर ज़िम्मेदारी लेता हूं।”

24 घंटे के भीतर राजकोट जो मोरबी से 100 किलोमीटर दूर है, होते हुए सड़क संपर्क बहाल कर दिया गया। बिजली की आपूर्ति शुरू हुई और 48 घंटे के अंदर जलापूर्ति भी। मोरबी जो तब राजकोट का एक सब डिविजन था,अब जिला बन गया है। सड़कें और गलियों में लाशें बिछी थीं। आरएसएस के स्वयंसेवक शवों के अंतिम संस्कार में जुटे थे। सामूहिक दाह संस्कार किए गए। तब की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी भी पहुंचीं—उन्हें भी लाशों के बीच से होकर गुजरना पड़ा।

राजकोट के मालवीय कॉलेज के छात्र रहे किरीटभाई पाठक याद करते हैं कि इंदिरा गांधी ने त्रिकोन बाग स्थित एनएसयूआई राहत शिविर का दौरा किया था। आज वही मोरबी एक जीवंत नगर बन चुका है।

अमेरिकी टैरिफ से मोरबी पर हुआ असर

सिरेमिक और घड़ी उद्योगों से भरपूर यह शहर अब एक जिला बन चुका है। गुजरात राज्य में सबसे ज्यादा जीएसटी और आयकर इकठ्ठा होता है। हाल ही में अमेरिका द्वारा भारत से भेजे जाने वाले सिरामिक टाइल्स पर 25 प्रतिशत टैरिफ लगाने से मोरबी के उद्योग पर प्रतिकूल असर हुआ है। मोरबी से प्रतिवर्ष 1600 करोड़ रुपए का सिरामिक टाइल्स अमेरिका को निर्यात किया जाता है।

मोरबी राहत मॉडल ये दिखाता है कि अगर इच्छाशक्ति हो, तो किसी आपदा में लालफीताशाही और अफसरशाही की दीवारें टूट सकती हैं।

मैं हाल ही मोरबी गया था। विश्वास ही नहीं होता कि राजा महाराजा का शहर खूबसूरत हो गया है, और मच्छू नदी पर अब एक मजबूत बांध शहर की सुरक्षा के लिए बन गया है। मोरबी एक ऐतिहासिक शहर है और यहां आजादी के पहले से ही मोरबी राजा का एयरपोर्ट है, अपना रेलवे स्टेशन  है जो राजकोट तक जाता है।