श्रीनगर के टैगोर हॉल में रविवार (6 जुलाई) को उपराज्यपाल मनोज सिन्हा ने श्यामा प्रसाद मुखर्जी को उनकी 125वीं जयंती पर श्रद्धांजलि अर्पित की। एलजी सिन्हा ने इस मौके पर आधुनिक भारत के प्रमुख निर्माताओं में से एक मुखर्जी के योगदान को याद किया। सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के एक प्रमुख विचारक डॉ मुखर्जी 23 जून, 1953 को न्यायिक हिरासत में रहते हुए श्रीनगर में शहीद हुए थे।
एलजी सिन्हा, जो संभवतः केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर के सबसे शक्तिशाली और सर्वोच्च गणमान्य व्यक्ति है, उन्होंने डॉ मुखर्जी को श्रद्धांजलि अर्पित की। जबकि लोकतांत्रिक सरकार से जुड़े अधिकारी अनुपस्थित रहे। मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला और उनके सहयोगी इस आधिकारिक समारोह से अनुपस्थित रहे। इसका कारण भी स्पष्ट है। दरअसल, यह समारोह एक ऐसे व्यक्ति को याद करने के लिए आयोजित किया गया था, जिसने उमर के दादा, शेख मोहम्मद अब्दुल्ला का विरोध किया था।
यह एक ऐसा अवसर था जब केंद्र शासित प्रदेश में दो समानांतर सत्ता केंद्रों का द्वंद्व, जो एक-दूसरे से सहमत नहीं हैं, सबसे स्पष्ट रूप से सामने आया। केंद्र सरकार के प्रतिनिधि के रूप में उपराज्यपाल मनोज सिन्हा ने अनुच्छेद 370 का कड़ा विरोध किया और इसे हटाए जाने को लेकर खुशी व्यक्त की। वहीं, उमर की नेशनल कॉन्फ्रेंस (एनसी) का मूल सिद्धांत ही इस अनुच्छेद के प्रति समर्पण है। कुल मिलाकर साफ है कि अनुच्छेद 370 के मुद्दे पर उपराज्यपाल और मुख्यमंत्री के विचार बिल्कुल विपरीत हैं।
उल्लेखनीय है कि डॉ. मुखर्जी को जम्मू-कश्मीर पुलिस ने 11 मई, 1953 को कठुआ जिले के लखनपुर में जम्मू-कश्मीर की सीमा पर गिरफ्तार किया था। इसके बाद, बिना किसी औपचारिक आरोप के 44 दिनों तक श्रीनगर की एक जेल में बंद रहने के बाद, 23 जून को उनकी मौत हो गई। उस समय राज्य का नेतृत्व नेशनल कॉन्फ्रेंस (एनसी) के संस्थापक शेख मोहम्मद अब्दुल्ला कर रहे थे। तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित नेहरू के साथ शेख की मित्रता के कारण, केंद्र सरकार ने मुखर्जी की हिरासत में हुई मौत को हल्के में लिया।
कहा जाता है कि उस समय डॉ. मुखर्जी के परिवार को उनके पार्थिव शरीर को श्रीनगर से कलकत्ता ले जाने का हवाई किराया तक चुकाना पड़ा था। तब डॉ. मुखर्जी की व्यथित माँ ने पंडित नेहरू को एक भावुक पत्र लिखा, जो हिरासत में रखे जाने के दौरान अपने बिछड़े मित्र को बचाने में विफल रहे थे।
श्री सिन्हा ने कहा, 'डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी एक दूरदर्शी राजनेता, शिक्षाविद् और निडर सांसद थे, जिनके आदर्श आज भी भारत के भाग्य को आकार दे रहे हैं। उनका गहन ज्ञान और सामाजिक समरसता एवं सद्भाव के प्रति उनकी दृढ़ प्रतिबद्धता सदैव याद रखी जाएगी।'
उन्होंने कहा कि जम्मू-कश्मीर ने श्यामा प्रसाद मुखर्जी के जीवन और विरासत को सम्मान देने के लिए दो वर्षीय उत्सव अभियान शुरू किया है। इन समारोहों के दौरान, राष्ट्रीय एकता को मजबूत करने और जम्मू-कश्मीर के उज्जवल भविष्य के लिए 'एक राष्ट्र, एक संविधान' की वकालत करने में मुखर्जी की भूमिका को याद किया जाएगा।
'एक विधान, एक निशान, एक प्रधान' डॉ. मुखर्जी का एक आह्वान था, जो उन्होंने उस 'परमिट प्रणाली' का विरोध करते हुए किया था जिसका पालन सभी भारतीयों को जम्मू-कश्मीर में प्रवेश करने के लिए करना पड़ता था। डॉ. मुखर्जी पंडित प्रेम नाथ डोगरा के नेतृत्व वाली प्रजा परिषद का समर्थन करने जम्मू-कश्मीर आए थे। गौर करने वाली बात है कि नेहरू ने शेख की नीतियों और उनके शासन का विरोध करने के रूख को लेकर प्रजा परिषद को 'सांप्रदायिक' करार दिया था।
इस ब्रांडिंग ने शेख को और भी ताकतवर बना दिया, जिन्होंने जम्मू-कश्मीर पर सबसे निरंकुश और तानाशाही तरीके से शासन किया और सभी विरोधों को कुचल दिया। यह अलग बात है कि डॉ. मुखर्जी की शहादत के दो महीने से भी कम समय बाद, जिसे पंडित नेहरू ने नजरअंदाज कर दिया था, उन्हें 8/9 अगस्त, 1953 को शेख को गिरफ्तार करके जेल में डालना पड़ा। शेख 1975 के मध्य तक राजनीतिक निर्वासन में रहे, जब इंदिरा गांधी ने उनकी वापसी कराई।
एलजी सिन्हा ने कहा, 'डॉ. मुखर्जी ने जम्मू-कश्मीर के भारत में एकीकरण के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दी। वे 'एक राष्ट्र, एक संविधान' के समर्थक थे और अनुच्छेद 370 का विरोध करते थे। जम्मू-कश्मीर के भारत में पूर्ण एकीकरण के लिए लड़ते हुए श्रीनगर में उनकी शहादत देश के इतिहास में एक निर्णायक क्षण रही। डॉ. मुखर्जी भेदभाव-मुक्त जम्मू-कश्मीर के निर्माण और भारत के साथ पूर्ण एकीकरण द्वारा इसकी नियति बदलने के विजन से प्रेरित थे। उन्होंने विकास और राष्ट्र निर्माण की मुख्यधारा में जम्मू-कश्मीर के लोगों की सक्रिय भागीदारी की कामना की थी। डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी की प्रेरणा और माननीय प्रधानमंत्री की प्रतिबद्धता से आज जम्मू-कश्मीर विकास के नए कीर्तिमान स्थापित कर रहा है।'
उपराज्यपाल ने इस मौके पर संस्कृति, स्कूल और उच्च शिक्षा के विभागों को जुलाई 2025 से जुलाई 2027 तक प्रत्येक स्कूल, कॉलेज और विश्वविद्यालय में डॉ. मुखर्जी के जीवन और कार्यों पर प्रदर्शनियाँ और व्याख्यान आयोजित करने के लिए प्रेरित किया। यह देखना दिलचस्प होगा कि यह निर्देश शैक्षणिक संस्थानों में जमीनी स्तर पर कैसे लागू होता है।
उन्होंने कहा, 'डॉ. मुखर्जी ने श्रीनगर में अंतिम सांस ली। पूरा जम्मू-कश्मीर उनका ऋणी है। नई पीढ़ी को उनकी विरासत का सम्मान करने में सक्रिय रूप से शामिल होना चाहिए। शैक्षणिक संस्थानों में सप्ताह भर प्रदर्शनियाँ और उनके जीवन की यात्रा को दर्शाने वाले नाट्य प्रदर्शन आयोजित किए जाने चाहिए। डॉ. मुखर्जी के योगदान को भव्य स्मृति वाले कार्यक्रमों के माध्यम से गाँव-गाँव तक पहुँचाया जाना चाहिए। हमारी नई पीढ़ी को पता होना चाहिए कि डॉ. मुखर्जी जैसे दूरदर्शी नेताओं के बिना, जम्मू-कश्मीर कभी भी अपनी आकांक्षाओं को साकार नहीं कर पाता।'
इस अवसर पर, उपराज्यपाल ने नए आपराधिक कानूनों का कश्मीरी भाषा में अनुवाद भी जारी किया। आईजीएनसीए क्षेत्रीय कार्यालय और संस्कृति विभाग द्वारा डॉ. मुखर्जी के जीवन और कार्यों पर एक प्रदर्शनी भी आयोजित की गई।