प्रतीकात्मक तस्वीर Photograph: (Grok/AI)
बिहार के किशनगंज का माता गुजरी मेमोरियल मेडिकल कॉलेज सिख अल्पसंख्यक समुदाय के लिए स्थापित एक प्रतिष्ठित संस्थान है, लेकिन बीते कुछ दिनों से यह बिहार की सियासत का नया रणक्षेत्र बना हुआ है।
कुछ दिन पहले की ही तो बात है, जन सुराज पार्टी के नेता प्रशांत किशोर ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में बीजेपी के बिहार प्रदेश अध्यक्ष दिलीप जायसवाल पर सनसनीखेज आरोप लगाए थे। प्रशांत किशोर ने दावा किया था कि दिलीप जायसवाल कभी इस कॉलेज में क्लर्क थे, लेकिन उन्होने गलत तरीकों से कॉलेज पर कब्जा कर लिया और अब इसके मैनेजिंग डायरेक्टर हैं. प्रशांत किशोर ने प्रक्रिया में गड़बड़ियों और भ्रष्टाचार का आरोप लगाते हुए सीबीआई जांच की मांग की है।
दरअसल बिहार विधानसभा चुनाव के मोड़ पर खड़ा है, ऐसे में सियासत के टेबल पर ऐसे कई सनसनीखेज खबरें आती-जाती रहेंगी लेकिन हम किशनगंज मेडिकल कॉलेज से लगभग 150 किलोमीटर दूर स्थित सिख समुदाय के एक गांव की यात्रा आपको करवाने जा रहे हैं।
विधानसभा चुनाव से पहले अलग-अलग क्षेत्रों की यात्राओं के दौरान जब हम बरारी विधानसभा घूम रहे थे तो हमारी नजर इस इलाके पर आकर ठहर गई। यहां गुरुदावारों की संख्या देखकर लगा कि इस इलाके को ढंग से समझा जाए। सबसे रोचक बात कि इस इलाके के तार भी किशनगंज मेडिकल कॉलेज से जुड़े हैं, लेकिन उस पर बातचीत फिर कभी।
कटिहार का बरारी इलाका...बिहार का मिनी पंजाब
बरारी विधानसभा क्षेत्र का आंचल ऐतिहासिक व सांस्कृतिक विरासत से भरा पड़ा है। पावन गंगा भी इस विधानसभा क्षेत्र से गुजरती है। गंगा कोसी का संगम तट भी होने का सौभाग्य इस क्षेत्र को प्राप्त है। राष्ट्रपिता गांधी की अस्थि विसर्जन के लिए भी इस क्षेत्र को जाना जाता है। शेरशाह सूरी का कारवां भी कभी इस होकर गुजरा था और गंगा-दार्जिलिग पथ इसकी अब भी मूक गवाही दे रही है।
विधानसभा की हृदयस्थली बरारी से सटे लक्ष्मीपुर में सिख धर्म के नौवें गुरु तेग बहादूर गुरुद्वारा भी इसी की एक कड़ी है। यहां मत्था टेकने समय-समय पर राज्य के हर सियासी हस्ती भी पहुंचते रहे हैं। सिख समुदाय की एक बड़ी आबादी यहां निवास करती है और यह यहां की सुंदर सामाजिक बनावट को चार चांद लगा रही है। इस क्षेत्र की पहचान मिनी पंजाब वाले क्षेत्र के रुप में भी होती है।
कटिहार जिले का बरारी इलाका मिनी पंजाब के रूप में भी जाना जाता है। सिख गुरुओं के चरण रज से यहां की धरती पवित्र रही है। लक्ष्मीपुर के ऐतिहासिक गुरुद्वारा में गुरू गोविद सिंह जी का हस्तलिखित हुक्मनामा का दर्शन करने एवं मत्था टेकने पंजाब सहित देश के अन्य शहरों से हर वर्ष सिख श्रद्धालु प्रकाशोत्सव पर बरारी पहुंचते हैं।
कहा जाता है कि आनंदपुर साहिब से गुरू गोविद सिंह ने हस्तलिखित हुक्मनामा भेजा था। गंगा नदी में गुरु ग्रंथ साहिब के अंतध्र्यान होने की कहानी भी यहां से जुड़ी हुई है। किंवदंती है कि छह माह तक गुरु ग्रंथ साहिब गंगा नदी में रहने के बाद भी बाढ़ का पानी उतरने के बाद यथावत स्थिति में मिला था।
सिखों के पहले गुरू नानकदेव जी असम जाने के क्रम में गंगा नदी के रास्ते बरारी होकर गुजरे थे। नौंवें गुरू तेगबहादुर जी ने भी बरारी में अपना पड़ाव डाला था।
इस इलाके में सिख समुदाय के लोग बड़ी संख्या में रहते हैं। बताया जाता है कि 15वीं शताब्दी में गुरू नानक देव जी पूर्व की उदासी (भ्रमण) के दौरान इस क्षेत्र में अपना पड़ाव डाला था। उसी समय से गुरूनानक नाम लेवा भक्तों की संख्या इस क्षेत्र में बढ़ती गई। 1666 ई. में नवमें गुरु तेग बहादुर ने इस क्षेत्र को अपने चरण रज से पवित्र किया। वे पटना से अपनी पूर्व दिशा की भ्रमण के दौरान जलमार्ग से मुंगेर, भागलपुर होते हुए तत्कालीन कंतनगर पहुंचे थे।
मान्यता है कि गंगा नदी के तट पर स्थित इस कस्बे में कई सप्ताह रूके थे। इस दौरान उन्हें सुनने और दर्शन को लेकर बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ी थी।
गुरू जी ने लोगों को लोक कल्याण में जुड़ने सहित अन्य सारगर्भित प्रवचन से निहाल किया। लोगों को प्रसाद के रूप मे कराहे में बने हलवे (कराह प्रसाद) का वितरण किया था। स्थानीय लोग इसे कराह गोला प्रसाद के रूप में जानने लगे। कालांतर में कंतनगर काढ़ागोला के रूप में जाना जाने लगा। लक्ष्मीपुर गांव में गुरुद्वारा का निर्माण किया गया।
सिख सर्किट से जोड़ा गया है बरारी
वर्तमान में यहां विशाल और भव्य गुरूद्वारा है। यहां मत्था टेकने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी आ चुके हैं। हाल में बिहार सरकार ने बरारी को सिख सर्किट से जोड़ा है। यहां के विभिन्न पंचायतों मे सिखों की बहुतायत आबादी निवास करती है। कई गुरूद्वारा भी स्थापित है। इसमें ऐतिहासिक गुरूद्वारा भवानीपुर, ट्रस्ट गुरुद्वारा भंडारतल, कांतनगर, उचला, हुसैना, बड़ी भैसदीरा, डूमर पुल शामिल है। यहां के सिखों का मुख्य पेशा खेती बाड़ी है, लेकिन कई नौकरी व अन्य व्यवसाय में भी जुड़े हुए हैं।
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यहां के लक्ष्मीपुर और भवानीपुर गुरूद्वारा में सिख गुरुओं से जुड़े कई दुर्लभ दस्तावेज और हुक्मनामा मौजूद है। इसे धरोहर के रूप में संजो कर रखा गया है। गुरु तेगबहादुरजी के बलिदान दिवस पर हर वर्ष तीन दिवसीय शहीदी गुरुपर्व का आयोजन लक्ष्मीपुर गुरुद्वारा में होता है। शहीदी गुरुपर्व पर पंजाब,जम्मू कश्मीर सहित अन्य राज्यों तथा विदेशों से भी श्रद्धालु पहुंचते हैं। अमृतसर से रागी जत्था तीन दिनों तक गुरुवाणी का पाठ एवं शब्द कीर्तन के लिए आते हैं।
बरारी प्रखंड में पांच हजार के करीब सिख आबादी
बरारी प्रखंड में लक्ष्मीपुर, हुसैना, भैंसदीरा, भवानीपुर, भंडारतल, उचला सहित नौ गांव में तकरीबन पांच हज़ार सिख आबादी है। बिहार सरकार के सिख सर्किट में शामिल लक्ष्मीपुर गुरुद्वारा के अलावा बरारी में ऐतिहासिक गुरुद्वारा भवानीपुर, माता मुखो –सम्पतो कौर ट्रस्ट गुरूद्वारा, कांतनगर में बने नए गुरुद्वारे सहित 9 गुरुद्वारे हैं।
वैसे बरारी विधानसभा सीट पर मुस्लिम आबादी सबसे अधिक है। इसके बाद राजपूत, ब्राह्मण, रविदास, पासवान और यादव समेत अन्य जातियां आती हैं।
बरारी विधानसभा सीट पर 2020 के विधानसभा चुनाव में जदयू ने शानदार प्रदर्शन किया था। जदयू के उम्मीदवार विजय सिंह ने राजद के नीरज कुमार को कड़ी टक्कर दी और जीत हासिल की थी। विजय सिंह को कुल 81,752 वोट मिले, जो 44.71 प्रतिशत थे, जबकि नीरज कुमार को 71,314 वोट मिले। यह जीत जदयू के लिए महत्वपूर्ण थी, क्योंकि आरजेडी का प्रभाव इस क्षेत्र में काफी मजबूत माना जाता है।
माना जा रहा है कि इस चुनाव में एनडीए हो या फिर महागठबंधन, दोनों ही जातीय और क्षेत्रीय समीकरणों को ध्यान में रखते हुए सधी हुई रणनीति बनाएंगे लेकिन इन सबके बीच बिहार का यह मिनी पंजाब किस रंग में दिखेगा, इस पर भी हम सबकी नजर है।