आज के दौर में जो लोग हैं, उनके हाथ में एक नया हथियार आ गया है। यह हथियार बेहिसाब नुकसान पहुंचा सकता है और इसकी लागत भी बहुत कम या नहीं के बराबर है। कोई विशिष्ट लक्ष्य बनाने की आवश्यकता भी नहीं है और कोई भी इसका शिकार बन सकता है। यहां तक कि बॉर्डर या किसी तरह का भाषाई बंधन भी इसके आगे कुछ नहीं हैं। हम दरअसल यहां बात कर रहे हैं सोशल मीडिया की, जिसका इस्तेमाल कई बार इसके नाम के उलट इसे एंटी-सोशल मीडिया जैसा बना देता है।

रविवार को कराची, लाहौर या इस्लामाबाद से दूर दुबई इंटरनेशनल स्टेडियम में भारत और पाकिस्तान के बीच क्रिकेट मैच था। इसे एक ऐसे मैच के रूप में प्रस्तुत किया गया था जैसे कि दो महान प्रतिद्वंद्वियों का एक दुर्लभ टकराव होने जा रहा है। संभावना जताई गई कि मैच कांटे का होगा और खिलाड़ी अपने कौशल का अद्भुत प्रदर्शन करेंगे। हालांकि, मैच इन सारी बातों के एकदम उलट रहा। भारत ने लगभग छह ओवर शेष रहते पाकिस्तानी क्रिकेट टीम को करारी मात दे दी। भारत ने छह विकेट से बड़ी जीत दर्ज की। यह वही अंतर था, जिससे उसने अपने टूर्नामेंट के अपने शुरुआती मुकाबले में बांग्लादेश को हराया था।

इस लेख के दो पैराग्राफ हो चले हैं और आप अभी भी यह स्पष्ट तौर पर नहीं जान सके हैं कि आज का विश्लेषण किस विषय पर है? खैर, मेरा यह साप्ताहिक कॉलम ज्यादातर मौकों पर जम्मू और कश्मीर से संबंधित विशेष घटनाओं के विश्लेषण से संबंधित रहता है। आज भी इरादा जम्मू-कश्मीर से जुड़ी किसी चीज़ को लेकर ही है, जिसके बारे में सभी भारतीयों को ज्यादातर बातें पता नहीं है।

भारत बनाम पाकिस्तान मैच और कश्मीर

कल कुछ बहुत महत्वपूर्ण हुआ और हम कह सकते हैं कि यह अनुच्छेद 370 के निरस्त होने का परिणाम है। जम्मू और कश्मीर छात्र संघ (जेकेएसए) ने भारत-पाकिस्तान मैच के बारे में पूरे भारत के कॉलेजों में पढ़ने वाले कश्मीरी छात्रों के लिए एक सलाह जारी की थी। एडवाइजरी में छात्रों से किसी भी ऐसे सोशल मीडिया पोस्ट से दूर रहने को कहा गया जो उन्हें परेशानी में डाल सकता है।

जेकेएसए के राष्ट्रीय संयोजक नासिर खुएहमी ने छात्रों से आग्रह किया कि वे मैच को सिर्फ एक अन्य खेल आयोजन के रूप में लें और ऐसा कुछ भी करने से बचें जिससे विवाद पैदा हो। छात्रों को आगाह किया गया कि इससे उन्हें स्थानीय लोगों के साथ परेशानी हो सकती है। यह सलाह काफी निराशाजनक थी और इसमें कहा गया था कि कश्मीरी छात्रों को अपने परिवारों द्वारा दिए गए त्याग को याद रखना चाहिए। इसमें कहा गया कि उनके पिता उन्हें पैसे भेजने के लिए कड़ी मेहनत कर रहे होंगे, उनके भाइयों ने उनकी मदद करने के लिए कर्ज लिया होगा, उनकी माताओं और बहनों ने जम्मू-कश्मीर के बाहर उनकी शिक्षा के लिए अपने आभूषण बेचे होंगे।

सवाल है कि जेकेएसए द्वारा भारत-पाकिस्तान क्रिकेट मैच की पूर्व संध्या पर ऐसी सलाह जारी करना क्यों जरूरी समझा गया?

एडवाइजरी के कारणों को समझाते हुए जेकेएसए ने कहा कि पूर्व में इस तरह के मैचों के बाद बड़ी संख्या में कश्मीरी छात्रों ने फेसबुक, ट्विटर और अन्य जगहों पर उत्तेजक पोस्ट के कारण खुद को मुसीबत में डाला है। एडवाइजरी में कहा गया है कि दर्जनों कश्मीरी छात्रों को हिरासत में लिया गया, पुलिस स्टेशनों में बुलाया गया और कई बार पीटा भी गया।

यह मूल रूप से इसलिए हुआ क्योंकि कई कश्मीरी छात्र न केवल कश्मीर में, बल्कि देहरादून या कर्नाटक के किसी कॉलेज जैसे दूर-दराज के स्थानों में भी पाकिस्तानी टीम की जय-जयकार करने के शौकीन रहे थे। बेशक, उन दिनों में भारतीय खिलाड़ियों के खिलाफ हूटिंग करना भी काफी आम बात थी।

2023 का वो फाइनल और हंगामा

भारतीय और ऑस्ट्रेलिया के बीच विश्व कप 2023 के फाइनल मैच (रविवार, 19 नवंबर) के दौरान गांदरबल में कश्मीरी छात्रों के एक समूह ने उन छात्रों को धमकी देने का काम किया जो भारतीय खिलाड़ियों के लिए चीयर कर रहे थे। चीजें तब और खराब हो गईं जब कुछ कश्मीरी छात्रों ने बाबर आजम एंड कंपनी के निराशाजनक प्रदर्शन के बाद उन्हें घर भेज दिए जाने के बावजूद  ''जीवे, जीवे पाकिस्तान'' के नारे लगाए। ये नारे दरअसल मुख्य रूप से मैच देख रहे उन दर्जनों छात्रों को चिढ़ाने के लिए था, जो रोहित शर्मा की टीम के प्रशंसक थे। यह नारेबाजी और चिढ़ाने की हरकत बाद में हिंसक धमकियों में बदल गई। जम्मू-कश्मीर के बाहर के राज्यों के छात्रों से कहा गया कि वे भारतीय टीम की जय-जयकार करना बंद करें।

यह स्पष्ट रूप से अलगाववाद, अलगाववाद को बढ़ावा देने और 'बाहरी' करार दिए जाने वाले छात्रों को धमकी देने के उद्देश्य से किया गया एक कृत्य था। यह पहली बार नहीं था जब कश्मीर के किसी शैक्षणिक संस्थान में ऐसा हुआ हो। पहले भी कई मौकों पर जब भारतीय टीम किसी प्रतिद्वंद्वी से हार गई तो कश्मीरी छात्रों का एक वर्ग खुशी से झूमता नजर आया है। केवल इस बार ऐसा हुआ कि पंजाब से सचिन बैंस नाम का एक 'बाहरी' छात्र पुलिस के पास गया और उन लोगों के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई जिन्होंने उसे धमकी दी थी। इसके बाद सात कश्मीरी छात्रों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की गई।

गांदरबल पुलिस स्टेशन में एफआईआर संख्या 317/2023 के तहत गिरफ्तार उपद्रवियों के खिलाफ धारा 13 यूएपीए लगाई गई। इन छात्रों को 'गैरकानूनी गतिविधियों को भड़काने और बढ़ावा देने' के लिए गिरफ्तार किया गया था। गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम की यह धारा एक ऐसा प्रावधान है जिसमें अधिकतम सात साल की कैद हो सकती है। कश्मीरी छात्रों के खिलाफ भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 505 और 506 के तहत भी आरोप लगाए गए।

पुलिस द्वारा बाद में पूरे मामले पर एक बयान जारी किया गया और कहा गया, 'दो प्रासंगिक पहलुओं को सार्वजनिक जानकारी में लाया गया है। पहला- यह केवल पाकिस्तान समर्थक नारे लगाने के बारे में नहीं है। यह उस पूरे संदर्भ के बारे में है जिसमें नारेबाजी हुई। ये नारे, उन लोगों को डराने के लिए लगाए गए जो असहमत थे। ऐसा उन लोगों की पहचान करने और उन्हें अपमानित करने के लिए भी किया गए जो दूरी बनाए रखना चाहते हैं। यह एक असामान्य चीज को सामान्य बनाने के बारे में भी है, कि हर कोई भारत से 'खुले तौर पर' नफरत करता है। यह असामान्य और झूठी बात ज्यादातर अलगाववादी और आतंकवादी नेटवर्क के दम पर की जाती है। दूसरे शब्दों में, इसका उद्देश्य किसी विशेष टीम को लेकर व्यक्तिगत पसंद को प्रसारित करना नहीं है।'

पुलिस ने आगे कहा, 'दूसरा पहलू सही कानून को लागू करना है। यूएपीए की धारा 13 अलगाववादी विचारधारा को भड़काने, उसकी वकालत करने और प्रोत्साहित करने वालों के खिलाफ कार्रवाई के बारे में है। यह वास्तविक आतंकी कृत्यों की योजना बनाने, सहायता करने और उन्हें क्रियान्वित करने के बारे में नहीं है। यह ऐसे कार्यों को गैरकानूनी के रूप में वर्गीकृत करता है। अधिनियम के अन्य प्रावधानों के विपरीत, यह अधिनियम का एक नरम प्रावधान है।'

अलगाववादी सोच बर्दाश्त नहीं, संदेश साफ है...

अक्टूबर 2021 में श्रीनगर में दो मेडिकल कॉलेजों के कुछ स्टाफ सदस्यों और कुछ छात्रों को गिरफ्तार करने के लिए पुलिस द्वारा यूएपीए लागू किया गया था। उन पर यूएपीए के तहत मामला दर्ज किया गया था क्योंकि उन्होंने 24 अक्टूबर को दुबई में टी20 विश्व कप में भारत पर पाकिस्तान की जीत का जश्न मनाया था। इससे पहले, 2016 में इसी तरह की एक घटना में भारत की टी20 विश्व कप सेमीफाइनल में वेस्टइंडीज से हार के बाद श्रीनगर में राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान (एनआईटी) से भद्दे दृश्य सामने आए थे और 'बाहरी' छात्रों को डराया गया था।

अतीत की ऐसी घटनाओं के बाद आमतौर कई कश्मीरी राजनेता अधिकारियों से नरम रुख अपनाने का आग्रह करते रहे हैं। हालांकि इस बार, फरवरी 2025 में जेकेएसए ने कश्मीरी छात्रों को पहले से आगाह करते हुए चीजों को अपने हाथ में लेने का फैसला किया। एसोसिएशन भी अब यह अच्छी तरह से जानता है कि अगर कुछ कश्मीरी छात्र पहले की तरह ही व्यवहार करने की कोशिश करते नजर आते हैं, तो उनके लिए 'बांसूरी' के मधुर संगीत की भाषा नहीं बल्कि सख्त लहजे का इस्तेमाल होगा।