जम्मू और कश्मीर 26 अक्टूबर, 1947 को महाराजा हरि सिंह द्वारा विलय पत्र (IoA) पर हस्ताक्षर करने के बाद भारत का हिस्सा बन गया था। इसके अगले दिन, भारतीय सेना श्रीनगर में उतरी और फिर बारामूला तक पहुंच चुके पाकिस्तानी लुटेरों से लड़ना शुरू किया। यह जंग पाकिस्तान के अस्तित्व में आने के महज दो महीने बाद शुरू हुई थी।
नेशनल कॉन्फ्रेंस के संस्थापक और वर्तमान मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला के दादा शेख मोहम्मद अब्दुल्ला बहुत बाद में कश्मीर की राजनीति में प्रमुखता से उभरे। उस दौर की राजनीतिक परिस्थिति के कारण और प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू द्वारा अपने मित्र शेख को भरपूर समर्थन देने की वजह से सूबे की सत्ता उनकी ओर केंद्रित होने लगी थी। आखिरकार 5 मार्च, 1948 को नेहरू और उनके साथियों के दबाव के आगे झुकते हुए महाराजा ने शेख को यहां का अंतरिम प्रशासक बना दिया।
उस दिन के बाद से हफ्ते दर हफ्ते और साल दर साल शेख को लगातार और अधिक शक्तियां प्राप्त होती रहीं। जैसे-जैसे शेख का कद बढ़ता गया, महाराजा की शक्तियां कम होती चली गईं। धीरे-धीरे ऐसे हालात बनते चले गए कि जो राज्य कभी दो दशकों तक महाराजा की निजी जागीर रही, उसके बारे में वे कुछ भी निर्णय लेने की स्थिति में नहीं रहे। शेख और महाराजा की शक्तियों मे यह परिवर्तन मुख्य रूप से नेहरू द्वारा शेख को दिए गए अनपेक्षित समर्थन की वजह से हुआ।
अब साल 2024 में आते हैं। कुछ दिन पहले, 5 दिसंबर को शेख की जयंती पर कोई सार्वजनिक छुट्टी नहीं थी। यहां ये बताना जरूरी है कि जम्मू-कश्मीर में लंबे समय तक हर 5 दिसंबर को छुट्टी घोषित होती रही है। इस स्थिति में बदलाव 5 अगस्त, 2019 के बाद आया जब यहां चीजें तेजी से बदल गईं। इसके तुरंत बाद, 13 जुलाई और 5 दिसंबर की सार्वजनिक छुट्टियों को खत्म कर दिया गया।
इस साल शेख के पोते उमर अब्दुल्ला के मुख्यमंत्री बनने के बाद भी 5 दिसंबर को किसी सार्वजनिक अवकाश की घोषणा नहीं हुई। वहीं, एक दिलचस्प घटनाक्रम में मंत्रिपरिषद ने जरूर साल 2025 से 5 दिसंबर के सार्वजनिक अवकाश को बहाल करने के लिए उपराज्यपाल मनोज सिन्हा को एक औपचारिक प्रस्ताव भेजा। वैसे अगले साल की छुट्टियों की सूची सामान्य प्रशासन विभाग (जीएडी) द्वारा आमतौर पर नवंबर या दिसंबर में जारी कर दी जाती है। हालांकि, इस बार अब तक ऐसा नहीं किया गया है और इसलिए यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या 2025 में कोई बदलाव होता है या यह 2024 की चिह्नित छुट्टियों की ही पुनरावृत्ति होगी।
सवाल है क्यों? तो जीएडी एलजी का अधिकार है, न कि राजनीतिक रूप से चुनी गई सरकार का। तो? अपने दादा की जयंती सहित किसी भी छुट्टी की बहाली उमर नहीं कर सकते। इस संबंध में शक्ति एलजी मनोज सिन्हा के पास है।
सीएम के राजनीतिक सलाहकार नासिर असलम वानी ने गुरुवार (5 दिसंबर) को स्वीकार किया कि उनकी सरकार ने 5 दिसंबर को सार्वजनिक अवकाश के रूप में बहाल करने का प्रस्ताव दिया है। उन्होंने यह भी उम्मीद जताई कि अगले साल के लिए समय पर छुट्टियां बहाल कर दी जाएंगी। स्थानीय अखबारों में उमर के बयान छपे हैं। इसमें उन्होंने कहा, ‘कई अन्य तारीखें भी हैं लेकिन हमें एक बड़ा मुकाबला लड़ना है। हमें जम्मू-कश्मीर के राज्य के रूप में दर्जे की बहाली के लिए लड़ना है।’
नेशनल कॉन्फ्रेंस के मुख्य प्रवक्ता विधायक तनवीर सादिक ने 7 दिसंबर को इस बात से इनकार किया कि एलजी और सीएम के बीच कोई झगड़ा है। यह संदर्भ कुछ रिपोर्टों का था जिसमें बताया गया था कि उनके बीच शक्तियों के विभाजन ने दो समानांतर शक्ति केंद्र बना दिए हैं।
सादिक ने ऐसे विवाद के बारे में सवालों के जवाब देते हुए कहा, ‘हमें यह समझने की जरूरत है कि आज की तारीख में जम्मू-कश्मीर एक केंद्र शासित प्रदेश है। वहीं, वर्तमान में यहां चुनी हुई सरकार है। जहां तक खींचतान की बात है तो यह (मुद्दा) उन लोगों द्वारा उठाया जा रहा है जो किसी भी तरह से एलजी प्रशासन और सरकार के बीच किसी तरह की समस्या पैदा करना चाहते हैं। हमारा मानना है कि अब तक कोई बड़ी समस्या नहीं हुई है और हमें उम्मीद है कि ऐसी कोई समस्या नहीं होगी।’
सादिक ने आगे कहा, ‘हम यहां सत्ता की व्यवस्था नहीं चाहते। जब से यह सरकार आई है सब कुछ सकारात्मक दिशा में चल रहा है। हमें उम्मीद है कि जल्द ही जम्मू-कश्मीर का राज्य का दर्जा बहाल हो जाएगा ताकि केवल एक ही शक्ति केंद्र बना रहे और लोगों की समस्याओं का तुरंत समाधान हो सके…जिसे निर्वाचित सरकार द्वारा किया जाता है, न कि नामांकित व्यक्तियों द्वारा।’
उन्होंने कहा, ‘हमें उम्मीद है कि एलजी प्रशासन और वर्तमान में मौजूद अधिकारी इस बात को ध्यान में रखेंगे कि देर-सबेर राज्य का दर्जा बहाल किया जाएगा। इसलिए उन्हें (अधिकारियों को) निर्वाचित लोगों की बात सुननी चाहिए और उनके निर्देशों का पालन करना चाहिए।’
फिलहाल, नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता राज्य का दर्जा मिलने अपनी सारी उम्मीदें लगाए बैठे हैं। उन्हें लगता है कि राज्य का दर्जा उनके लिए रामबाण होगा। हालाँकि, जब केंद्र सरकार जम्मू-कश्मीर को राज्य का दर्जा बहाल करती है, तब भी इस बात की कोई गारंटी नहीं है कि उमर शक्तियों से भरपूर मुख्यमंत्री बनेंगे। केंद्र दिल्ली मॉडल या पुडुचेरी मॉडल ला सकती है और तब जम्मू-कश्मीर को राज्य बनाते समय भी उसे बहुत अधिक शक्तियां नहीं दी जाएंगी।
तब सही मायनों में केंद्र की ओर से नामित उपराज्यपाल और निर्वाचित मुख्यमंत्री के बीच खींचतान सही मायनों में दिख सकता है। दिल्ली जैसी स्थिति जहां सीएम के रूप में रह चुके अरविंद केजरीवाल का या जो भी उस पद पर रहता है, वहां के एलजी के साथ मतभेद दिखता है। बहरहाल, जम्मू-कश्मीर में इसे हम उमर के नेतृत्व वाली नई सरकार का हनीमून पीरियड कह सकते हैं, लेकिन देर-सबेर एलजी और सीएम के बीच शक्तियों के बंटवारे के मामले टकराव की कई वजहें सामने आने लगेंगी।
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