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भारतीय फौजों ने ऑपरेशन सिंदूर के तहत बुधवार को पाकिस्तान के पंजाब सूबे के बहावलपुर, मुरीदके, सियालकोट और शकरगढ़ में आतंकी ठिकानों पर कसकर हमला बोला। पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में आतंकी ठिकानों को निशाना बनाया गया। सरहद पार का पंजाब भारत के लिए सिरदर्द बना हुआ था। ये इस्लामिक कट्टरपंथियों का स्वर्ग बन गया है। ये भारत पर लगातार हमले करते हैं। ये वही धरती है जो ऐतिहासिक रूप से सांस्कृतिक और धार्मिक विविधता का केंद्र रही है। इधर बुल्ले शाह और बाबा फरीद जैसे संतों की समृद्ध परंपरा रही है, जिन्होंने प्रेम और भाईचारा का संदेश दिया।
हालांकि, बीते तीस-चालीस सालों में सरहद पार का पंजाब बदल गया। राज मोहन गांधी ने अपनी किताब Punjab- A History from Auranhzeb to Mountbatten में एक जगह लिखा है कि पाकिस्तान के हिस्से वाले पंजाब में कट्टरपंथी इस्लामिक संगठनों में अपने को एक-दूसरे से बड़ा कट्टरपंथी साबित करने की होड़ रहती है।
क्यों पंजाब बदलने लगा ?
दरअसल भारत के विभाजन ने पंजाब को गहरे रूप से प्रभावित किया। पाकिस्तानी पंजाब में बड़े पैमाने पर जनसंख्या विस्थापन हुआ। पाकिस्तान के निर्माण के बाद, इस्लाम को वहां राष्ट्रीय पहचान का आधार बनाया गया, जिसने धीरे-धीरे कट्टरपंथी विचारधाराओं को पनपने का मौका दिया।
पंजाब ने मसूद अजहर और हाफिज सईद जैसे कट्टरपंथियों को प्रभाव जमाने का अवसर दिया। आप कह सकते हैं कि 1970 और 1980 के दशक ने पंजाब को इस्लामिक कट्टरपंथ की ओर धकेला। इसकी कई ठोस वजह रहीं।
सोवियत-अफगान युद्ध ( 1979-1989) के दौरान, पंजाब अमेरिका और सऊदी अरब द्वारा समर्थित जिहादी समूहों का गढ़ बन गया। जालंधर में पैदा हुए जनरल जिया-उल-हक की सरकार ने इस्लामीकरण को खाद-पानी दिया। उस दौर में मदरसों की संख्या में वृद्धि हुई, जिनमें से कई ने कट्टरपंथी विचारधारा को बढ़ावा दिया। पंजाब के शहरों, जैसे लाहौर, बहावलपुर और फैसलाबाद, में ये मदरसे तेजी से बढ़े।
वाहबी विचारधारा को ताकत
सऊदी अरब ने वहाबी विचारधारा को प्रचारित करने के लिए बड़े पैमाने पर धन दिया। इसने सूफीवाद और उदार इस्लाम की परंपराओं को नष्ट किया। पंजाब में कई मस्जिदों और मदरसों ने इस विचारधारा को अपनाया। पाकिस्तान ने 1990 के दशक में कश्मीर में जिहादी समूहों को समर्थन दिया। लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद जैसे संगठन, जो पंजाब में सक्रिय थे, ने कट्टरपंथ को और बढ़ाया। इन संगठनों ने पंजाब के युवाओं को भर्ती किया और उन्हें जिहादी विचारधारा से प्रभावित किया। ये दोनों संगठन भारत पर मुंबई, उरी, संसद, पठानकोट, पहलगाम वगैरह पर बार-बार कायराना हमले करवाते रहे।
दिल्ली के सेंट स्टीफंस कॉलेज के स्टुडेंट रहे जनरल जिया-उल-हक (1977-1988) के शासनकाल में पाकिस्तान में इस्लामीकरण की नीति ने कट्टरपंथ को संस्थागत रूप दिया। जिया ने इस्लाम को राज्य का आधार बनाया और कई कट्टरपंथी कानून लागू किए, जैसे ब्लासफेमी कानून। जिया के शासन पंजाब में हजारों नए मदरसे खोले गए, जिनमें से कई ने देवबंदी और अहल-ए-हदीस विचारधारा को बढ़ावा दिया। ये मदरसे गरीब और ग्रामीण युवाओं के लिए शिक्षा का एकमात्र स्रोत बन गए, जिससे कट्टरपंथ को बढ़ावा मिला।
शहादत को महिमामंडित करना
यही नहीं, स्कूली पाठ्यक्रम में जिहाद और शहादत को महिमामंडित किया गया। इससे नई पीढ़ी में कट्टरपंथी विचारों का प्रसार हुआ। एक बात माननी होगी कि पंजाब में कट्टरपंथ के बढ़ने में सामाजिक-आर्थिक कारकों का भी योगदान रहा। पंजाब के ग्रामीण और अर्ध-शहरी क्षेत्रों में गरीबी और बेरोजगारी ने युवाओं को कट्टरपंथी संगठनों की ओर आकर्षित किया। ये संगठन न केवल आर्थिक मदद देते थे, बल्कि एक उद्देश्य और पहचान भी प्रदान करते थे। सरकारी स्कूलों की खराब स्थिति और निजी शिक्षा की महंगाई ने गरीब परिवारों को अपने बच्चों को मदरसों में भेजने के लिए मजबूर किया। इन मदरसों में अक्सर कट्टरपंथी शिक्षा दी जाती थी।
इन तमाम वजहों के चलते सूफीवाद, जो कभी पंजाब की आत्मा था, धीरे-धीरे कमजोर पड़ गया। कट्टरपंथियों ने सूफी परंपराओं जैसे दरगाहों पर चढ़ावा और कव्वाली, को "गैर-इस्लामी" करार दिया। इससे पाकिस्तान की सरकारों ने सूफीवाद को बढ़ावा देने के बजाय कट्टरपंथी संगठनों को समर्थन दिया, क्योंकि ये संगठन भू-राजनीतिक उद्देश्यों के लिए उपयोगी थे।
निशाने पर लश्कर
जाहिर है कि इन तमाम वजहों के चलते पंजाब में लश्कर-ए-तैयबा (LeT) जैसा संगठन उभरा। इसी के मुरिदके में स्थित दफ्तर पर भारत ने हमला किया। ये कश्मीर और भारत के खिलाफ जिहादी गतिविधियों के लिए जाना जाता है। इसी तरह से जैश-ए-मोहम्मद (JeM) स्थापित हो गया। इसके बहावलपुर में स्थित दफ्तर को भी भारत ने तबाह कर दिया।
इसी तरह से पंजाब में सिपाह-ए-सहाबा नाम का संगठन है। यह सुन्नी कट्टरपंथी संगठन शिया विरोधी हिंसा के लिए जाना जाता है और पंजाब के कई हिस्सों में सक्रिय है।
इन संगठनों ने पंजाब के सामाजिक ताने-बाने को प्रभावित किया और धार्मिक असहिष्णुता को बढ़ाया। आज, पंजाब को कट्टरपंथ ने तबाह कर दिया है।
महत्वपूर्ण है कि पंजाब में बुल्ले शाह (1680-1757), दाता गंज बख्श, और बाबा फरीद जैसे सूफी संतों ने इस्लाम को एक उदार और समावेशी रूप में फैलाया था। उनकी शिक्षाएं हिंदू, सिख और मुस्लिम समुदायों के बीच सांप्रदायिक सद्भाव को बढ़ावा देती थीं।
अयूब से मुनीर तक
दुर्भाग्यवश कठमुल्लों के साथ-साथ सरहद पार जनरल अयूब खान से लेकर जनरल आसिफ मुनीर तक सभी के सभी घोर भारत विरोधी फौज के जनरल रहे हैं। पाकिस्तान की सेना में पंजाबियों का वर्चस्व साफ है। उसमें 80 फीसद से ज्यादा पंजाबी हैं। ये भारत से नफरत करते हैं। पाकिस्तान का पंजाब इस्लामिक कट्टरपन की प्रयोगशाला बन चुका है। पंजाब के अलावा पाकिस्तान के बाकी भागों में भारत विरोधी माहौल इतना मुखर नहीं है।
पाकिस्तानी सेना ने साल 1969-71 में अपने ही मुल्क के बंगाली भाषी लोगों पर जुल्म ढाहना शुरू किया। इस कार्रवाई को पाकिस्तानी सेना ने आपरेशन सर्च लाइट का नाम दिया। यह जुल्म ऐसा-वैसा नहीं था। लाखों लोगों की बेरहमी से हत्या, हजारों युवतियों से सरेआम बलात्कार, तरह-तरह की अमानवीय यातनाएं। पाकिस्तानी सेना के दमन में मारे जाने वालों की तादाद 30 लाख थी। इतना ही नहीं पाकिस्तानी फौजी दरिंदों ने दो लाख महिलाओं से बलात्कार किया था। कुल मिलाकर बात ये है कि भारत ने उस पंजाब के कठमुल्लों पर कड़ा हमला बोलकर एक बहुत नेक काम ही किया है। आखिर धैर्य की भी एक सीमा है।