इस शहर में 14 अगस्त की आधी रात को ही क्यों फहराया जाता है तिरंगा?

झंडा चौक पर 14 अगस्त की रात माहौल बेहद उत्साहपूर्ण होता है—लोग घरों, गलियों और स्कूलों में रोशनी करते हैं, देशभक्ति गीत गाते हैं और तिरंगे को सलामी देते हैं।

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देश भर में आज आजादी का पर्व मनाया जा रहा है। हर जगह तिरंगा फहराया जा रहा है। लेकिन बिहार के पूर्णिया शहर में 15 अगस्त की सुबह का इंतजार नहीं किया जाता है, बल्कि रात ठीक 12 बजे झंडोत्तलन किया जाता है। पूर्णिया में यह परंपरा 14 अगस्त 1947 से आज तक चली आ रही है।
 
संविधान सभा में जब जवाहर लाल नेहरू 14 अगस्त की मध्यरात्रि को वायसराय लॉज से ऐतिहासिक भाषण 'ट्रिस्ट विद डेस्टनी' दे रहे थे, ठीक उसी वक्त बिहार के पूर्णिया शहर के एक चौराहे पर भारत के आजाद होने का जश्न मनाया जा रहा था और तिरंगा लहराया जा रहा था।

पिछले 78 वर्षों से यहां 14 अगस्त की तारीख बदलते ही अंधेरी रात में तिरंगा अपने शौर्य और वैभव की अलख बिखेरता नजर आता है।

अब आईए, इसकी कहानी आपको सुनाते हैं कि आखिर कैसे शुरू हुई यह परंपरा।

14 अगस्त 1947 की रात सबको उस पल का इंतजार था जब देश आजाद होनेवाला था। सुबह से ही पूर्णिया के लोग आजादी की खबर सुनने के लिए बेचैन थे। दिनभर पूर्णिया शहर के एक चौक पर लोगों की भीड़ लगी रही, मगर जब आजादी की खबर रेडियो पर नहीं आयी, तो लोग घर लौट आये। लेकिन उसी चौक पर स्थित एक रेडियो की दुकान बंद नहीं हुई।

14 अगस्त 1947, रात के 11:00 बजे थे कि झंडा चौक स्थित रेडियो की दुकान पर रामेश्वर प्रसाद सिंह, रामजतन साह, कमल देव नारायण सिन्हा, गणेश चंद्र दास सहित उनके सहयोगी दुकान पर पहुंचे और फिर आजादी की बात शुरू हो गयी।

इसी बीच, रेडियो की दुकान पर सभी के आग्रह पर रेडियो ऑन किया गया। रेडियो ऑन होते ही माउंटबेटन की आवाज सुनाई दी। आवाज सुनते ही लोग खुशी से उछल पड़े। साथ ही निर्णय लिया कि इसी जगह आजादी का झंडा फहराया जाएगा। तुरंत बांस, रस्सी और तिरंगा झंडा मंगवाया गया। 14 अगस्त, 1947 की रात 12 बजे रामेश्वर प्रसाद सिंह ने तिरंगा फहराया। उसी रात चौराहे का नाम झंडा चौक रखा दिया गया।

झंडोत्तोलन के दौरान मौजूद लोगों ने शपथ ली कि इस चौराहे पर हर साल 14 अगस्त की रात सबसे पहला झंडा फहराया जाएगा।

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पूर्णिया में 14 अगस्त की आधी रात को तिरंगा फहराते स्थानीय लोग

पूर्णिया के इस झंडा चौक पर झंडोत्तोलन की कमान लोगों ने रामेश्वर प्रसाद सिंह के परिवार के कंधे पर दे दी। रामेश्वर प्रसाद सिंह के निधन के बाद उनके पुत्र सुरेश कुमार सिंह ने झंडात्तोलन की कमान संभाली और उनके साथ रामजतन साह, कमल देव नारायण सिन्हा, गणेश चंद्र दास, स्नेही परिवार, शमशुल हक के परिवार के सदस्यों ने मदद करनी शुरू की। अब रामेश्वर प्रसाद सिंह के पोते विपुल कुमार सिंह झंडा चौक पर 14 अगस्त की रात झंडोत्तोलन करते हैं।

14 अगस्त 1947 की उस स्वर्णिम पल को लोग याद करते हैं जब ठीक 12 बजकर एक मिनट पर स्वतंत्रता सेनानी रामेश्वर कुमार सिंह ने झंडोत्तोलन किया था। आज भी झंडा चौक पर इस ऐतिहासिक पल का साक्षी बनने पहुंचे लोग देशभक्ति की रंग से लबरेज होकर आते हैं। बच्चों से लेकर युवा और बुजुर्ग हाथों में तिरंगा लेकर ‘भारत माता की जय’ का जयघोष करते हैं।

झंडा चौक पर 14 अगस्त की रात माहौल बेहद उत्साहपूर्ण होता है—लोग घरों, गलियों और स्कूलों में रोशनी करते हैं, देशभक्ति गीत गाते हैं और तिरंगे को सलामी देते हैं। इस अनोखे आयोजन का मकसद आजादी के उस ऐतिहासिक क्षण को याद करना है, जब देश ने पहली बार ब्रिटिश हुकूमत से मुक्ति पाई थी।

स्थानीय लोगों का कहना है कि पूर्णिया के झंडा चौक पर ध्वाजारोहण की जो अलग परंपरा चली आ रही है, उस पर सरकार संज्ञान ले और इसे राजकीय दर्जा मिले। इस मसले पर पूर्णिया के विधायक विजय खेमका ने बताया कि पूर्णिया का झंडा चौक निश्चित रूप से एक ऐतिहासिक स्थल है, जिसे पर्यटन स्थल के रुप में विकसित किया जाना चाहिए। उन्होंने बताया कि यहां होने वाले झंडोत्तोलन समारोह को राजकीय दर्जा मिलना चाहिए और इस संबंध में उन्होंने विधानसभा में भी मांग उठायी थी।

हालांकि हम इसे विडंबना ही कहेंगे कि आजादी के 78वें साल में भी इस स्थल को सजाने –संवारने को लेकर सरकार की तरफ से कोई भी पहल नहीं हो सकी है। जबकि हर साल देश भर के मीडिया में इस जगह की बात आपको सुनने, देखने और पढ़ने को मिलती है लेकिन इस ऐतिहासिक जगह को सुंदर बनाने के लिए सरकार की तरफ से कुछ भी नहीं किया जाता है।

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