अब देश अपना गणतंत्र दिवस मनाने के लिए तैयार है। गणतंत्र दिवस परेड कर्तव्यपथ से राजधानी के विभिन्न मार्गों से गुजरते हुए लाल किले की तरफ जाएगी। उधर,कर्तव्यपथ से चंदेक किलोमीटर के फासले पर डॉ. कर्ण सिंह आजकल देश के पहले गणतंत्र दिवस को याद कर रहे हैं। उस दिन उन्होंने राजधानी दिल्ली से दूर जम्मू में जम्मू-कश्मीर के सदरे रियासत की हैसियत से तिरंगा फहराया था। उसके बाद वे लगातार 75 सालों से देश के किसी भाग में गणतंत्र दिवस पर तिरंगा फहराते रहे हैं। तो कह सकते हैं कि उनका भारत के गणतंत्र दिवस समारोह से अटूट संबंध बना हुआ है। वे आगामी 26 जनवरी को एक बार तिरंगा फहराएंगे।
स्वास्थ्य मंत्री रहते देश चेचक मुक्त घोषित हुआ
93 साल के डॉ. कर्ण सिंह बहुमुखी प्रतिभा के धनी व्यक्ति हैं। वे एक ऐसे व्यक्ति हैं जो प्राचीन ज्ञान और संस्कृति को आधुनिक जीवन के साथ जोड़ते हैं। उनका योगदान न केवल विद्वानों के लिए बल्कि आम लोगों के लिए भी प्रेरणादायक है। वे जब देश के स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्री थे तब देश ने अपने को चेचक मुक्त घोषित किया था। यह 1977 की बात है। इतनी बड़ी उपलब्धि के पीछे उनका दृढ़ विश्वास और कुशल नेतृत्व था। हो सकता है कि आज देश की युवा पीढ़ी को मालूम ना हो कि डॉ. कर्ण सिंह राष्ट्रीय चेचक उन्मूलन कार्यक्रम को खुद देख रहे थे। इस कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य देश भर में चेचक के मामलों को कम करना और अंततः इसका पूरी तरह से उन्मूलन करना था। इस कार्यक्रम के तहत, देश भर में व्यापक टीकाकरण अभियान चलाया गया। बच्चों को चेचक के टीके लगाए गए और घर-घर जाकर टीकाकरण किया गया। टीकाकरण की गुणवत्ता और कवरेज पर विशेष ध्यान दिया गया।
एक मजबूत निगरानी प्रणाली स्थापित की गई, जिससे चेचक के नए मामलों को तुरंत पहचाना जा सके। स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं को चेचक के लक्षणों की पहचान करने और मामलों की रिपोर्ट करने के लिए प्रशिक्षित किया गया था। इससे बीमारी के प्रसार को रोकने में मदद मिली। इन अभियानों में पोस्टर, पर्चे, रेडियो और टेलीविजन का उपयोग किया गया। डॉ. कर्ण सिंह कहते हैं गणतंत्र बनने के बाद, सरकार ने देश के हर नागरिक तक स्वास्थ्य सेवाएं पहुंचाने के लिए कई कार्यक्रम शुरू किए। इन कार्यक्रमों के तहत, नए अस्पताल और स्वास्थ्य केंद्र खोले गए, डॉक्टरों और नर्सों की भर्ती की गई, और टीकाकरण और परिवार नियोजन जैसी योजनाएं शुरू की गईं।
बेदाग रहा है डॉ.कर्ण सिंह का सार्वजनिक जीवन
वे लंबे समय तक केन्द्रीय मंत्री और सांसद रहे, पर उन्होंने कभी एक पैसा भी वेतन के रूप में नहीं लिया। उन्होंने कभी सरकारी बंगले में रहना भी स्वीकार नहीं किया। हालांकि उन्हें राजधानी में भव्य बंगला मिल सकता था। वे सदैव अपने निजी आवास में किताबो के बीच में रहे। डॉ.कर्ण सिंह देश के रजवाड़े के पहले शासक थे जिसने प्रिवी पर्स में मिलने वाली सुविधाओं को लेने से मना कर दिया था। कहां मिलते हैं डॉ. कर्ण सिंह जैसे महामानव।। ये वक्त ताकाजा है कि डॉ. कर्ण सिंह को भारत रत्न से सम्मान से सम्मानित किया जाए। वे इस सम्मान के निर्विवाद रूप से हकदार हैं।
ये जानकारी बहुत कम लोगों को ज्ञात है कि भारत सरकार ने प्रोजेक्ट टाइगर डॉ. कर्ण सिंह की सलाह पर शुरू किया था।। डॉ. कर्ण सिंह उन शुरुआती लोगों में से थे जिन्होंने भारत में बाघों की घटती संख्या पर चिंता जताई थी। उन्होंने 1970 के दशक की शुरुआत में बाघों के संरक्षण के लिए एक राष्ट्रीय कार्यक्रम की आवश्यकता पर जोर दिया था। 1973 में, भारत सरकार ने प्रोजेक्ट टाइगर लॉन्च किया, और डॉ. कर्ण सिंह ने इस परियोजना के निर्माण और कार्यान्वयन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने बाघों के संरक्षण के लिए विभिन्न रणनीतियों का समर्थन किया, जिसमें उनके आवासों को सुरक्षित करना, शिकार को नियंत्रित करना, और लोगों में जागरूकता बढ़ाना शामिल है।
सबको पता है कि 26 जनवरी 1950 को, भारत ने अपना संविधान अपनाया और एक संप्रभु, समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक गणराज्य बन गया। संविधान ने देश की शासन प्रणाली, नागरिकों के अधिकार और कर्तव्य, और सरकार के विभिन्न अंगों की भूमिका को परिभाषित किया। डॉ. कर्ण सिंह मानते हैं कि गणतंत्र बनने के साथ ही, भारत ने एक लोकतांत्रिक शासन प्रणाली को अपनाया, जिसमें लोगों को अपने प्रतिनिधि चुनने का अधिकार मिला। वयस्क मताधिकार की शुरुआत हुई और सभी नागरिकों को बिना किसी भेदभाव के वोट देने का अधिकार मिला।
राजशाही, विदेशी राज, फिर आजादी और गणतंत्र देश होने के साक्षी
वो साल था 1945 का। यानी 80 साल पहले। भारत के वायसराय लॉर्ड वेवेल के वायसराय हाउस (अब राष्ट्रपति भवन) में आयोजित एक कार्यक्रम में भाग लेने के लिए देश के राजे-रजवाड़े आ रहे थे। जम्मू-कश्मीर के महाराजा हरि सिंह के साथ उनके युवा पुत्र कर्ण सिंह भी पहुंचे। उन्हें वहां पर यूनियन जैक को हवा में लहराता हुआ देखकर झटका लगा। वे उदास हो गए। अपने देश में पराए देश का झंडा। यह कैसी विडंबना थी। दो सालों के बाद भारत आजाद हुआ। 26 जनवरी 1950 को भारत गणतंत्र राष्ट्र बना। उस दिन जम्मू में डॉ. कर्ण सिंह ने राज्य के सदरे रियासत के रूप में तिरंगा झंडा फहराया। वे तब सिर्फ 19 साल के थे। वे उस महान दिन को अब भी याद करते हुए भावुक हो जाते हैं। डॉ. कर्ण सिंह 1950 से लेकर 1966 तक वे जम्मू या श्रीनगर में स्वाधीनता दिवस और गणतंत्र दिवस पर तिरंगा फहराते रहे। उन्हें 1967 में केन्द्रीय कैबिनेट में शामिल कर लिया। वे दिल्ली आ गए। उसके बाद कर्तव्यपथ पर होने वाले गणतंत्र दिवस समारोह को देखने के लिए जाने लगे। हालांकि कैबिनेट मंत्रियों के लिए कर्तव्यपथ पर रहना अनिवार्य तो नहीं होता पर उन्हें परेड, झांकियां और बच्चों को देखना अच्छा लगता है। उन्हें गर्व की अनुभूति होती है। वे राजशाही, विदेशी राज, फिर आजादी और गणतंत्र देश होने के साक्षी हैं।
शिव के अनन्य भक्त
डॉ. कर्ण सिंह की राय में गणतंत्र होना भारत के लिए एक महान उपलब्धि है। यह एक ऐसा राजनीतिक ढांचा है जो हमें संप्रभुता, लोकतंत्र, समानता, न्याय और स्वतंत्रता जैसे मूल्यों को जीने की अनुमति देता है। यह हमें एक मजबूत, एकजुट और समृद्ध राष्ट्र बनाने का मार्ग प्रशस्त करता है। डॉ.कर्ण सिंह पहली बार तिरंगा फहराने से लेकर अब तक सक्रिय हैं। उन्हें सार्वजनिक जीवन में आए साढ़े सात दशक बीत गए हैं। पर उनकी सक्रियता पहले जैसी हैं। मुस्कराहट उनके चेहरे का स्थायी भाव है। कहते हैं कि भले ही जन्म महल में हुआ,पर गरीब परिवार से संबंध रखने वाली मां ने उन्हें मानवीय बना दिया। मां के संस्कारों और शिक्षाओं से उनके पैर जमीन पर रहे। वो शिक्षित नहीं थीं, पर उन्होंने उन्हें पढ़ने-लिखने के संसार और शिव से जोड़ा। वे शिव के अनन्य भक्त हैं। रोज साढ़े तीन घंटे शिव की आराधना करते हैं। डॉ.कर्ण सिंह के घर मानसरोवर से निकलते हुए आप यह अवश्य सोचते हैं कि उन्हें अब तक क्यों भारत रत्न से सम्मानित नहीं किया गया। हालांकि उनके मन में किसी पद या पुरस्कार को पाने को लेकर निर्विकार भाव ही नजर आये।