सोमवार को जब डोनाल्ड ट्रंप ने दूसरी बार अमेरिका के राष्ट्रपति पद की शपथ ली तब ज्यादातर भारतीयों के लिए सोने का समय हो चुका था। भारत और अमेरिका के बीच करीब आधे दिन के समय अंतराल के कारण आज जब करोड़ों भारतीय सूर्योदय देखेंगे तबतक डोनाल्ड ट्रंप राष्ट्रपति के रूप में पदभार सम्भालकर 31 अध्यादेश जारी कर चुके हैं। राष्ट्रपति ट्रंप ने अपने पहले आठ अध्यादेश पर हस्ताक्षर करने के बाद उस कलम को जनता के बीच उछाल दिया। डोनाल्ड ट्रंप शायद यह संदेश देना चाहते थे कि अध्यादेश पर दस्तखत भले ही वे कर रहे हों मगर कलम जनता की है। डोनाल्ड ट्रंप ने पद की शपथ के लिए दो बाइबिल का प्रयोग किया। एक उस बाइबिल का जिसका प्रयोग अब्राहम लिंकन ने राष्ट्रपति पद की शपथ लेने के लिए किया था। दूसरी बाइबिल उनकी माँ ने उन्हें बचपन में दी थी।
राष्ट्रपति ट्रंप ने अपने भाषण में अपने दूसरे कार्यकाल को अमेरिका के ‘स्वर्ग युग का आरम्भ’, ‘कॉमन सेंस की क्रान्ति’ का क्षण और “मुक्ति दिवस” बताया। उन्होंने अमेरिका जनता से वादा किया कि उनके इस कार्यकाल में अमेरिकी ध्वज मंगल ग्रह पर लहराएगा। ट्रंप के मंगल-गान से सभी को बीसवीं सदी की दूसरी दहाई की याद आना स्वाभाविक है जब उत्तरी अमेरिका और सोवियत रूस के बीच चन्द्रमा पर ध्वजारोहण की प्रतिस्पर्धा चल रही थी।
न्यूयॉर्क पोस्ट के अनुसार ट्रंप ने अपने कामकाज के पहले दिन जिन अध्यादेश पर दस्तखत किये उनमें पूर्व राष्ट्रपति जो बाइडन द्वारा जारी 78 आदेश कों निरस्त करने का अध्यादेश, सरकारी सेंसरशिप को बहाल करने का अध्यादेश, पैरिस जलवायु समझौते से बाहर होने का अध्यादेश, सरकारी मशीनरी के आयुधकरण पर रोक का अध्यादेश, बोलने की आजादी सुनिश्चित करने का अध्यादेश, महँगाई पर नियंत्रण के लिए सभी सरकारी विभागों को जारी अध्यादेश, सरकारी कर्मचारियों की पूर्णकालिक नौकरी पर बहाली का अध्यादेश शामिल थे। ट्रंप ने संयुक्त राष्ट्र संघ को पत्र लिखकर जलवायु समझौते से बाहर होने के बारे में सूचित किया। उन्होंने अपने कार्यकाल के पहले ही दिन करीब 1500 लोगों को क्षमादान दिया जिनपर पिछले अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव के दौरान अमेरिकी संसद भवन में घुसकर तोड़फोड़ करने का आरोप था।
डेमोक्रेट पूर्व राष्ट्रपति जो बाइडन ने अपने कार्यकाल के समापन के कुछ दिन पहले आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस (AI) टेक्नोलॉजी के विकास पर नियंत्रण से जुड़ा अध्यादेश जारी किया था जिसे ट्रंप ने पहले दिन ही निरस्त कर दिया। डोनाल्ड ट्रंप ने अमेरिका को विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) से भी अलग होने का आदेश जारी किया है। ट्रंप कहते रहे हैं कि डब्ल्यूएचओ अमेरिका को ‘लूट’ रहा है। रूस, यूक्रेन, ग्रीनलैंड, मेक्सिको इत्यादि पर भी ट्रंप ने चुनाव प्रचार के दौरान जो वादे किये थे, उनपर कायम रहने का संकेत अपने पहले दिन दे दिया।
डोनाल्ड ट्रंप के उद्घाटन भाषण के संकेत
राष्ट्रपति ट्रंप का उद्घाटन भाषण सुनकर भारतीयों को थोड़ा अजीब लग सकता है क्योंकि उन्होंने अमेरिका को संप्रभु, स्वतंत्र, शक्तिशाली, गौरवान्वित, समृद्ध इत्यादि बनाने की बात कही। ट्रंप ने जैसा भाषण दिया वैसे भाषण आमतौर पर बदहाल देशों के नेता अपनी अवाम में आशा और ऊर्जा का संचार करने के लिए करते हैं। किसी भारतीय की नजर में अमेरिका बेहद ताकतवर और धनी देश है मगर राष्ट्रपति ट्रंप और उनके समर्थक शायद ऐसा नहीं सोचते। उनके चुनाव प्रचार के दौरान ‘अमेरिका को फिर से महान बनाने’ (MAGA) कैंपेन काफी लोकप्रिय रहा। ट्रंप को मिली जीत से साफ है कि अमेरिका में बहुसंख्यक जनता को लगता है कि अमेरिका का पहले जैसा कद नहीं रहा, और उसे फिर से ‘नंबर वन’ की पोजीशन हासिल करनी होगी।
डोनाल्ड ट्रंप के शपथ-ग्रहण के बाद अरबपति एलन मस्क ने ट्वीट किया, “दि रिटर्न ऑफ दि किंग।’ ‘रिटर्न ऑफ दि किंग’ अमेरिकी साहित्यकार जेम्स टोल्किन का उपन्यास है जो उनकी फैंटेसी उपन्यास सीरीज ‘दि लॉर्ड ऑफ दि रिंग्स’ के अंतर्गत छपा था। इस उपन्यास सीरीज पर फिल्म सीरीज भी बन चुकी है और वह भी कॉफी चर्चित रही। डोनाल्ड ट्रंप की वापसी भी किसी फैंटेसी से कम नहीं रही है। मस्क ने अपने ट्वीट में वह स्क्रीनशॉट भी शेयर किया जिसमें सोशलमीडिया कंपनी ट्विटर ने डोनाल्ड ट्रंप का अकाउंट बन्द करने की सूचना दी गयी थी। मस्क ने उस अकाउंट बंद करने वाले मैसेज के स्क्रीनशॉट के साथ ही ट्रंप के अमेरिका के ताजा बॉयो की इमेज भी शेयर की है।
वर्ष 2020 के राष्ट्रपति चुनाव के बाद जब ट्रंप ने मतगणना पर सवाल उठाते हुए कई उग्र ट्वीट किये तब ट्विटर ने यह कहकर उनका अकाउंट ब्लॉक कर दिया था कि वे उसके दिशानिर्देशों का उल्लंघन कर रहे हैं। बाद में एलन मस्क ने ट्विटर को खरीद लिया और उसका नाम बदलकर एक्स कर दिया। ट्रंप प्रशासन में मस्क को एक नवगठित अर्ध-सरकारी विभाग का प्रमुख बनाया गया है जिसका काम सरकारी विभागों की कार्यकुशलता को बढ़ाना होगा। ट्रंप के कार्यकाल के पहले ही दिन एलन मस्क को भी उनका नया कार्यालय आवंटित हो गया जिसमें उनके साथ 20 सहयोगी काम करेंगे।
अभी तक आप समझ चुके होंगे कि जब हम भारत के लोग नींद के आगोश में थे, उन 10-12 घण्टों में अमेरिका नई राह पर कदम रख चुका है। अंग्रेजी मुहावरे में कहें तो आज सुबह भारत समेत दुनिया के कई हिस्सों में लोगों की नींद नए सच के साथ खुलेगी। भारत एवं उसके पासपड़ोस के बारे में भी डोनाल्ड ट्रंप के विचार डेमोक्रेट और पूर्व रिपब्लिकन राष्ट्रपतियों से काफी अलग हैं।
डोनाल्ड ट्रंप का भारत, चीन, पाकिस्तान, बांग्लादेश पर असर
चीन की कम्युनिस्ट सरकार द्वारा नियंत्रित अखबार साउथ चीन मार्निंग पोस्ट के अनुसार डोनाल्ड ट्रंप के आगमन को लेकर चीन में लगभग चुप्पी है। अखबार ने यह आशंका व्यक्त की है कि है कि ट्रंप द्वारा मंगल ग्रह पर अमेरिकी ध्वज लहराने की घोषणा से चीन और अमेरिका के बीच इसको लेकर होड़ हो सकती है। जाहिर है कि नए विश्व व्यवस्था में सोवियत रूस की जगह चीन ले चुका है और अमेरिका वहीं का वहीं है। फर्क केवल इतना है कि सोवियत रूस में लेनिनवादी कम्युनिस्ट शासन था जिसने अपने समाजवादी आर्थिक मॉडल में बदलाव नहीं किया और आखिरकार विघटित हो गया। चीन में माओवादी कम्युनिस्ट पार्टी का शासन है जिसने देंग शियाओ पिंग का आर्थिक सुधारवाद अपनाकर समृद्धि और शक्ति हासिल की है। चीन की ट्रंप से जुड़ी सबसे बड़ी चिन्ता उनकी व्यापार नीति है। ट्रंप दूसरे देशों के साथ व्यापार में जैसे को तैसा की सोच रखते हैं। यानी जितना टैक्स अमेरिका उन देशों में निर्यात के लिए देता है, उतना ही टैक्स उन देशों को अमेरिका में निर्यात करने के लिए देना चाहिए। आमतौर पर विभिन्न देशों की आर्थिक स्थिति और माँग-आपूर्ति के समीकरण के हिसाब से आयात-निर्यात शुल्क की दर तय होती है। ट्रंप की इस सोच का असर भारत, चीन समेत दुनिया के लगभग सभी देशों पर पड़ेगा।
डोनाल्ड ट्रंप के शपथ-ग्रहण पर पाकिस्तानी अखबार डॉन ने संपादकीय लिखा है। मोहम्मद अली जिन्ना द्वारा स्थापित डॉन के संपादकीय में डोनाल्ड ट्रंप द्वारा अवैध प्रवासियों को अमेरिका से वापस भेजने की सर्वप्रथम चिंता की गयी है। डॉन ने ट्रंप के इस कदम को वहाँ के “अल्पसंख्यकों” के लिए दूरगामी परिणाम वाला कदम माना है। जाहिर है कि डॉन को मुख्यतः उन पाकिस्तानियों की चिन्ता है जो गैर-कानूनी रूप से अमेरिका में बसे हुए हैं। आर्थिक बदहाली से गुजर रहे पाकिस्तान के लिए प्रवासी पाकिस्तानियों द्वारा घर भेजे गये पैसे आय का एक बड़ा स्रोत हैं। ऐसे में डॉन का ट्रंप के इस कदम से चिंतित होना स्वाभाविक है। मगर अभी कुछ समय पहले ही पाकिस्तान में कई दशकों से रह रहे करीब 20 लाख अफगानियों को वापस अफगानिस्तान भेजा गया। हाल-फिलहाल के इतिहास में शायद ही किसी देश ने इतनी बड़ी संख्या में लोगों को देश-निकाला दिया होगा।
डॉन के संपादकीय में ट्रंप और उनके समर्थकों के नस्लवादी नजरिए और रंगभेदी विद्वेष के इतिहास को लेकर भी चिंता जाहिर की गयी है। डॉन ने राष्ट्रपति ट्रंप के पहले कार्यकाल के उथल-पुथल वाला मानते हुए भी उनके कल के भाषण को सुशासक योग्य सम्बोधन माना है। मगर डॉन ने पाकिस्तान की अन्दरूनी रानजीति और भारत के साथ उसके सम्बन्धों पर असर के बारे में चप्पी साध रखी है।
बांग्लादेश के दि डेली स्टार ने ट्रंप के नए कार्यकाल पर रकीब अल हसन का आलेख प्रकाशित किया है। रकीब अल हसन ने डोनाल्ड ट्रंप की आर्थिक और सामरिक नीतियों का बांग्लादेश पर पड़ने वाले असर को लेकर विस्तृत चिन्ता जाहिर की है। बांग्लादेश का अर्थव्यवस्था में वहाँ के रेडीमेड गार्मेंट उद्योग का बड़ा योगदान है। रकीब अल हसन के अनुसार बांग्लादेश का करीब 80 प्रतिशत रेडीमेड गार्मेंट अमेरिका निर्यात होता है। बांग्लादेश करीब 10 अरब डॉलर (898 अरब भारतीय रुपये) का सामान अमेरिका को निर्यात करता है। रकीब अल हसन ने डोनाल्ड ट्रंप द्वारा पहले कार्यकाल में बांग्लादेश के बारे में अपनाए नकारात्मक रुख को याद करते हुए गैरकानूनी प्रवासियों को निकालने की उनकी नीति के प्रति भी चिन्ता जाहिर की है। हसन ने बांग्लादेश के ऊपर चीन और अमेरिका के बीच संतुलन बनाने की जरूरत बतायी है। साफ है कि उनकी चिन्ता के केन्द्र में बांग्लादेश के आर्थिक हित ज्यादा हैं।
ट्रंप की व्यापार-वाणिज्य नीति से सभी गैर-अमेरिकी देश प्रभावित होंगे। गैर-कानूनी प्रवासियों के निकासी से भी भारत, पाकिस्तान, मेक्सिको समेत कई देश प्रभावित होंगे। मगर डोनाल्ड ट्रंप का पाकिस्तान को संरक्षण देने की अमेरिकी नीति का विरोधी होना भारतीय उपमहाद्वीप की राजनीति को विशेष रूप से प्रभावित करेगा। बांग्लादेश में पिछले साल हुए तख्तापलट पर भी इसका असर देखने को मिल सकता है। डोनाल्ड ट्रंप संकेत देते रहे हैं कि वे दूसरे देशों में कठपुतली सरकार बनाने में रुचि नहीं रखते बल्कि वे अपने हितों को आगे बढ़कर खुद साधने में यकीन रखते हैं। पनामा नहर और ग्रीनलैंड पर नियंत्रण जैसे उनके इरादे उनकी इस सोच का प्रमाण हैं।
राष्ट्रपति ट्रंप ने शपथ ग्रहण के बाद आश्वस्त किया कि वे ‘शान्ति-दूत’ के रूप में काम करेंगे और युद्ध और टकराव को बढ़ावा देने की नीति से दूर रहेंगे। अगर वे ऐसा करते हैं तो भारतीय उपमहाद्वीप के कुछ आशान्त क्षेत्रों में भी शान्ति बहाली की राह खुल सकती है। ट्रंप की आर्थिक और प्रवासी नीतियों का भारत पर सीधा असर होगा मगर जिस तरह भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले चुनाव में डोनाल्ड ट्रंप के लिए अमेरिकी भारतीय समुदाय के बीच आउटरीच प्रोग्राम में हिस्सा लिया था, उससे उम्मीद जगती है कि ट्रंप नरेंद्र मोदी के प्रति अन्य शासकों के बनिस्बत थोड़ी उदारता से पेश आएंगे। ट्रंप के दूसरे कार्यकाल की खास बात यही रही है कि उन्होंने इस बार उन लोगों को अपना साथी चुना है जिन्होंने उनका राष्ट्रपति चुनाव हारने के बाद साथ दिया।