खबरों से आगे: उमर सरकार और एलजी मनोज सिन्हा के बीच टकराव क्यों लगभग तय है?

जम्मू-कश्मीर में कई ऐसे मुद्दे हैं, जिसे लेकर आने वाले दिनों में उपराज्यपाल मनोज सिन्हा और उमर अब्दुल्ला सरकार के बीच खींचतान देखने को मिलेगी।

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खबरों से आगे: उमर सरकार और एलजी मनोज सिन्हा के बीच टकराव क्यों लगभग तय है?

जम्मू कश्मीर के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा और मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला (फोटो-IANS)

पिछले हफ्ते इस साप्ताहिक कॉलम में हमने आने वाले दिनों में उपराज्यपाल मनोज सिन्हा और मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला के बीच मनमुटाव की संभावना पर चर्चा की थी। इसकी वजह केंद्र शासित जम्मू-कश्मीर की संवैधानिक व्यवस्था है, जहां सत्ता के दो समानांतर केंद्र बन गए लगते है।

अगले सप्ताह में कई घटनाक्रमों ने हमें यह विश्वास करने के लिए और अधिक कारण दिए हैं कि यह मनमुटाव जल्द नजर आने संभावना है। यह सबकुछ संभवत: उससे भी जल्दी होता नजर आएगा, जितना हमने सोचा था। जम्मू-कश्मीर के लिए राज्य का दर्जा बहाल करने के मुद्दे पर कांग्रेस और नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेताओं के कुछ सहज लगने वाले बयान इस संबंध में ध्यान देने वाली कुछ पहली बातों में से एक हैं।

राज्य का दर्जा बहाल करने की मांग पर खींचतान

भविष्य में जम्मू-कश्मीर के लिए राज्य का दर्जा बहाल करने की मांग और भी तेज होने वाली है। यह भी याद रखने की जरूरत है कि केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने 5 अगस्त, 2019 को ही घोषणा की थी कि एक दिन जम्मू-कश्मीर के लिए राज्य का दर्जा बहाल किया जाएगा। यही वह दिन था जब अनुच्छेद 370 को निरस्त किया गया था और तत्कालीन राज्य के विभाजन की घोषणा की गई थी। इसके बाद 11 दिसंबर 2023 को सुप्रीम कोर्ट ने अनुच्छेद 370 पर फैसला सुनाते हुए राज्य का दर्जा बहाल करने की बात कही थी।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और कई अन्य भाजपा नेताओं ने पिछले पांच वर्षों के दौरान राज्य का दर्जा बहाल करने के संबंध में बार-बार घोषणाएं की हैं। लेकिन अभी तक कुछ ठोस इस संबंध में हुआ नहीं है। पीएम मोदी ने सितंबर में जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव के दौरान राज्य का दर्जा बहाल करने का जिक्र अपने भाषण में किया था। जाहिर है आने वाले दिनों में जम्मू-कश्मीर की राजनीति में यह एक प्रमुख मुद्दा बनने जा रहा है।

रोहिंग्याओं और अवैध प्रवासियों का मुद्दा

इसके अलावा जम्मू में रोहिंग्याओं की मौजूदगी विवाद का एक और मुद्दा है। संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी उच्चायुक्त (UNHCR) की दो सदस्यीय टीम ने हाल में जम्मू की एक झुग्गी बस्ती में रोहिंग्या मुसलमानों से मुलाकात की थी। यह मुलाकात इस बात पर जारी तीखी बहस के बीच हुई कि अवैध रूप से बसे इन अप्रवासियों को पानी और बिजली मुहैया कराई जाए या नहीं।

वरिष्ठ सुरक्षा अधिकारी तोमोको फुकुमुरा ने सुरक्षा सहयोगी रागिनी ट्रैकरू जुतुशी के साथ सोमवार (10 दिसंबर) को नरवाल के किरयानी तालाब इलाके में रोहिंग्या मुसलमानों और कुछ स्थानीय लोगों से मुलाकात की थी।

इससे पहले 7 दिसंबर को, जम्मू-कश्मीर के जल शक्ति मंत्री जावेद अहमद राणा ने कहा था कि जब तक केंद्र से अप्रवासियों के निर्वासन पर कोई फैसला नहीं आता, तब तक इन लोगों की झुग्गियों में पानी की आपूर्ति नहीं रोकी जाएगी। राणा का बयान तब आया जब जम्मू के नरवाल इलाके में तीन भूखंडों पर रहने वाले रोहिंग्याओं ने दावा किया था कि यूएनएचसीआर के साथ पंजीकृत होने के बावजूद हाल ही में उनकी बिजली और पानी की आपूर्ति बंद कर दी गई थी।

वहीं, इस विषय पर प्रतिक्रिया देते हुए मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने कहा कि केंद्र को जम्मू में बसे रोहिंग्या आबादी के बारे में फैसला करना चाहिए। उन्होंने कहा कि उन्हें भूख या ठंड से मरने नहीं दिया जा सकता।

रोहिंग्याओं के मुद्दे पर उमर अब्दुल्ला और भाजपा के आरोप

उमर अब्दुल्ला ने पत्रकारों से कहा था, 'यह एक मानवीय मुद्दा है। केंद्र सरकार को उनके (रोहिंग्या) बारे में निर्णय लेना चाहिए। अगर उन्हें वापस भेजना है तो ऐसा करें। अगर आप कर सकते हैं, तो उन्हें वापस भेज दें। यदि आप उन्हें वापस नहीं भेज सकते, तो हम उन्हें भूखा नहीं मार सकते। उन्हें ठंड से मरने नहीं दे सकते।'

उमर अब्दुल्ला ने आगे कहा, 'भारत सरकार को हमें बताना चाहिए कि हमें उनके साथ क्या करना है। जब तक वे यहां हैं, हमें उनकी देखभाल करने की जरूरत है।'

उमर अब्दुल्ला जो नेशनल कॉन्फ्रेंस के उपाध्यक्ष भी हैं, ने कहा कि वे रोहिंग्याओं को जम्मू लेकर नहीं आए हैं। उमर अब्दुल्ला ने कहा, 'उन्हें यहां लाया गया और बसाया गया है। अगर केंद्र की नीति में बदलाव होता है, तो उन्हें वापस ले लें। जब तक वे यहां हैं, हम उनके साथ जानवरों जैसा व्यवहार नहीं कर सकते। वे इंसान हैं और उनके साथ ऐसा ही व्यवहार किया जाना चाहिए।'

हालाँकि, दूसरी ओर भाजपा ने जम्मू में रोहिंग्या और बांग्लादेशी नागरिकों के बसने को एक बड़ी 'राजनीतिक साजिश' बताया है। भाजपा ने इन्हें शहर में लाने और बसाने में शामिल लोगों की पहचान करने के लिए सीबीआई जांच तक की मांग कर डाली है।

अवैध प्रवासियों को पानी और बिजली कनेक्शन देने पर अब्दुल्ला सरकार पर हमला करते हुए भाजपा ने आरोप लगाया कि यह इसलिए किया जा रहा है क्योंकि वे एक 'विशेष समुदाय' से हैं।

जम्मू-कश्मीर में कितने रोहिंग्या और बांग्लादेशी?

सरकारी आंकड़ों के अनुसार जम्मू और जम्मू-कश्मीर के अन्य जिलों में 13,700 से अधिक विदेशी बसे हैं। इनमें से अधिकांश रोहिंग्या और बांग्लादेशी नागरिक हैं। 2008 से 2016 के बीच इनकी आबादी 6,000 से अधिक बढ़ी है।

मार्च 2021 में, पुलिस ने एक वेरिफिकेशन अभियान के दौरान जम्मू शहर में महिलाओं और बच्चों सहित 270 से अधिक रोहिंग्याओं को अवैध रूप से रहते हुए पाया। इसके बाद इन्हें कठुआ उप-जेल के अंदर एक होल्डिंग सेंटर में रखा गया। इस साल 25 नवंबर को, शहर दक्षिणी जम्मू के पुलिस अधीक्षक अजय शर्मा ने कहा कि जिला मजिस्ट्रेट के आदेश के अनुसार पुलिस को जानकारी दिए बिना रोहिंग्या और अन्य लोगों को अपना घर किराए पर देने वाले मकान मालिकों के खिलाफ एक बड़े अभियान में 18 एफआईआर दर्ज की गईं।

शर्मा ने कहा था, 'प्रशासन ने उन लोगों की पहचान करने के लिए एक अभियान भी शुरू किया है जिन्होंने रोहिंग्याओं के आवास वाले भूखंडों में बिजली और पानी के कनेक्शन की सुविधा प्रदान की है।'

भारत, 1951 के संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी सम्मेलन पर हस्ताक्षर नहीं करने की वजह से रोहिंग्याओं को 'अवैध अप्रवासी' के रूप में देखता है। यह कन्वेंशन शरणार्थी की अधिकारों और उनकी रक्षा के लिए देशों के कानूनी दायित्वों की बात करता है।

दरबार मूव फिर से बहाल करने की बात

कुछ दिन पहले दिए एक इंटरव्यू में उमर ने घोषणा की थी कि राज्य का दर्जा बहाल करना कुछ ऐसा काम है जो केंद्र को करना चाहिए। उन्होंने कहा कि यह जरूरी है ताकि जम्मू-कश्मीर में सत्ता के दो केंद्र न रहें। उमर ने कहा कि जम्मू-कश्मीर दिल्ली की तरह छोटा राज्य नहीं है। इसके अलावा, इसकी सीमाएं पाकिस्तान और चीन के साथ लगती हैं। ऐसे में, वह शक्तियों के दो समानांतर केंद्र रखने का जोखिम नहीं उठा सकता।

नेशनल कॉन्फ्रेंस ने एलजी मनोज सिन्हा को पत्र लिखकर एक बार फिर 5 दिसंबर को सार्वजनिक अवकाश घोषित करने का आग्रह भी किया है। 2019 से पहले 5 दिसंबर को सार्वजनिक अवकाश हुआ करता था। इस तारीख को नेशनल कॉन्फ्रेंस के संस्थापक शेख मोहम्मद अब्दुल्ला की जयंती होती है। उमर ने यह भी कहा कि वह दरबार मूव को बहाल करने जा रहे हैं जिसे एलजी सिन्हा ने कुछ साल पहले खत्म कर दिया था।

यह एलजी मनोज सिन्हा और केंद्र के लिए एक और चुनौती की बात होगी। ये सभी चीजें आने वाले हफ्तों और महीनों में और चर्चा में होगी। ये बातें जम्मू-कश्मीर में अगले कुछ महीनों के भीतर होने वाले पंचायतों और शहरी स्थानीय निकायों (यूएलबी) के चुनावों के दौरान भी भड़केंगी।

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