मार्च 2000 में अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति बिल क्लिंटन भारत दौरे पर आए थे। उनके विमान के भारत में लैंड करने से पहले ही कश्मीर के अनंतनाग जिले के छत्तीसिंहपुरा गांव में 36 लोगों की निर्मम हत्या कर दी गई। सभी मृतक स्थानीय सिख परिवारों के सदस्य थे।

आतंकवादियों ने गांव के सभी पुरुषों को रात में घर से बाहर निकाला, गुरुद्वारा के पास एक दीवार के सामने खड़ा किया और अत्याधुनिक हथियारों से गोलियों की बौछार कर दी। सरकार का प्रयास था कि इस घटना को अमेरिकी राष्ट्रपति के दौरे के बाद सार्वजनिक किया जाए।

उस समय मैं टाइम्स ऑफ इंडिया का श्रीनगर में प्रतिनिधि था। मैं सुबह ही घटनास्थल पर पहुंच गया। वहां चारों तरफ शव बिखरे पड़े थे। श्रीनगर लौटकर मैंने लैंडलाइन फोन से नरेंद्र मोदी, जो उस समय बीजेपी के कश्मीर प्रभारी थे, को सूचना दी। हाल ही में प्रधानमंत्री मोदी ने फोन पर इस घटना का स्मरण कराया और कहा— "सबसे पहले आपने ही इसकी सूचना दी थी।"

एक सप्ताह के भीतर ही प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने एक सर्वदलीय टीम भेजी, जिसमें नरेंद्र मोदी और एस.एस. आहलूवालिया भी शामिल थे। यह टीम छत्तीसिंहपुरा पहुंची और प्रार्थना सभा में भाग लिया। तत्कालीन मुख्यमंत्री फारूक अब्दुल्ला की उपस्थिति में नरेंद्र मोदी ने मुझे गले लगाया और घटना की पूरी जानकारी ली।

इस दौरान, दुनिया भर से सिख संगठनों के नेता भी वहां पहुंचे और दिल खोलकर आर्थिक सहायता की घोषणा की। कनाडा से आए प्रतिनिधिमंडल ने नगद सहायता दी और खेती के लिए ट्रैक्टर भी भेंट किया।

इसी बीच खबर आई कि अनंतनाग के ही पथरीबल गांव में पांच आतंकवादियों को मार गिराया गया है। 7 राष्ट्रीय राइफल्स ने दावा किया कि ये पांच विदेशी आतंकी छत्तीसिंहपुरा नरसंहार के जिम्मेदार थे। लेकिन स्थानीय लोगों ने इस दावे को खारिज कर दिया और सबूतों के साथ मीडिया को बताया कि सभी मारे गए लोग स्थानीय मजदूर थे।

इस मामले ने बड़ा राजनीतिक और सामाजिक तूफान खड़ा कर दिया। जम्मू-कश्मीर सरकार ने पहले राज्य के डीजीपी को जांच का आदेश दिया, लेकिन सिख संगठनों की मांग पर एक न्यायिक जांच आयोग का गठन किया गया।

मई 2000 में आयोग गठित हुआ और सुप्रीम कोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायाधीश एस. रत्नावेल पांडियन को इसका प्रमुख बनाया गया। जस्टिस पांडियन को डल झील के सामने पहाड़ी पर एक बड़े होटल में ठहराया गया। उनकी सुरक्षा की जिम्मेदारी आईटीबीपी को दी गई और आयोग के कामकाज के लिए एम.ए. रोड पर मुख्यमंत्री आवास के पास एक सरकारी बंगला आवंटित किया गया।

एक दिलचस्प घटना यह हुई कि जस्टिस पांडियन जब लाल चौक पर जूता खरीदने गए तो जूता मापते समय बाहर बम विस्फोट हो गया। सुरक्षा अधिकारियों ने स्थिति संभाली और उन्हें सुरक्षित गेस्ट हाउस पहुंचाया।

मैंने आयोग की प्रारंभिक बैठकों की खबरें बायलाइन से प्रकाशित कीं। एक दिन आयोग के सचिव, जो अपर सचिव स्तर के अधिकारी थे, का फोन आया कि जस्टिस पांडियन आपसे मिलना चाहते हैं। अगले दिन मैं उनसे मिलने गया। उन्होंने नाश्ता करवाया और लंबी बातचीत की। उसी दिन उन्होंने मुझे अपनी बुलेटप्रूफ एम्बेसडर कार में बैठाकर आयोग की बैठक में भी ले गए। वहां पुलिस और सेना के वरिष्ठ अधिकारी मौजूद थे। एक आईजी स्तर के अधिकारी ने मेरी उपस्थिति पर आपत्ति जताई, तो जस्टिस पांडियन ने कहा— "यह जांच पूरी तरह ओपन और ट्रांसपेरेंट होगी और मैं इनकी मदद ले रहा हूं।"

आयोग की बैठकें अनंतनाग, पहलगाम, छत्तींसिंहपुरा और पथरीबल में भी हुईं, जहां पीड़ित परिवारों से भी मुलाकात की गई।

पथरीबल एनकाउंटर: झूठ का पर्दाफाश

गवाही के दौरान सेना और पुलिस ने दावा किया कि वे पथरीबल एनकाउंटर में शामिल नहीं थे। लेकिन मेरे पास 7 राष्ट्रीय राइफल्स का एक पुराना प्रेस रिलीज था, जिसमें स्पष्ट लिखा था कि स्थानीय पुलिस भी उस एनकाउंटर में शामिल थी, और सभी अधिकारियों के नाम (कर्नल और मेजर तक) सूचीबद्ध थे। मैंने अगली सुबह जस्टिस पांडियन को वह प्रेस रिलीज सौंप दिया।

आयोग ने यह प्रेस रिलीज गवाहों के सामने रखा और बारी-बारी से सेना-पुलिस अधिकारियों से स्पष्टीकरण मांगा। जांच के दौरान आयोग उस स्थान पर भी गया, जहां मारे गए लोगों को दफनाया गया था। जिस झोपड़ी में कथित आतंकवादी रुके थे, उसे सेना ने जला दिया था।

आयोग ने यह निष्कर्ष निकाला कि मारे गए सभी लोग स्थानीय नागरिक थे और किसी आतंकी गतिविधि में शामिल नहीं थे। बाद में सात अधिकारियों का कोर्ट मार्शल हुआ। सीबीआइ ने भी अपनी जांच रिपोर्ट 2012 सुप्रीम कोर्ट में पेश की। सात अधिकारी जिनमें कुछ ब्रिगेडियर स्तर तक प्रमोट हुए, सभी को सजा मिली।

शिवरात्रि के दिन जस्टिस पांडियन ने फोन कर बताया कि वे अपनी रिपोर्ट मुख्यमंत्री को सौंपना चाहते हैं। मैंने मुख्यमंत्री के करीबी अधिकारी जे.आर. जंडियाल को सूचना दी। मुख्यमंत्री ने अगले दिन का समय दे दिया।

जस्टिस पांडियन की दरियादिली

राष्ट्रीय राइफल्स रिपोर्ट सौंपने के बाद जस्टिस पांडियन ने अपने 32 सुरक्षा कर्मियों को घड़ी, कपड़े और नकद राशि भेंट की। सर्किट हाउस के स्टाफ को भी साड़ी और उपहार दिए। पीड़ित परिवारों की महिलाओं को कांचीपुरम साड़ी और लिफाफे में पैसे दिए।

जब मैंने उनसे पूछा कि आपने अपनी पूरी फीस कश्मीर में ही खर्च कर दी, तो उन्होंने कहा- "मेरी पत्नी ने श्रीनगर आने से पहले ही कहा था-  कश्मीर का एक पैसा घर मत लाना।" सारी साड़ियां और घड़ियां उनकी पत्नी ने मद्रास से भेजी थीं।

जस्टिस पांडियन चाय नहीं पीते थे। उनका कहना था कि उनकी मां ने बचपन में ही कहा था- "गाय का दूध बछड़े का होता है।" उन्होंने प्लेटफार्म की रोशनी में पढ़ाई की थी और मद्रास हाईकोर्ट से सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचे।

उन्होंने 5वें वेतन आयोग के अध्यक्ष के रूप में सियाचिन और कश्मीर का दौरा किया था और सैनिकों की कठिनाइयां देखकर उनके वेतन और भत्तों में बड़ा इजाफा करवाया था। विदा लेते समय उन्होंने कहा— "भगवान ने बहुत दिया है, कश्मीर का पैसा कश्मीर में ही रहना चाहिए।" आज उनके बेटे भी मद्रास हाईकोर्ट के जज हैं।