बिहार के उपमुख्यमंत्री तथा बीजेपी नेता विजय कुमार सिन्हा ने दस्तावेजों के साथ आरोप लगाया है कि उनके पूर्ववर्ती डिप्टी सीएम तेजस्वी प्रसाद यादव ने 26 करोड़ का आर्थिक घपला लोक निर्माण विभाग में सिर्फ गया प्रमंडल में किया है।
सिन्हा ने कहा कि तेजस्वी ने अपने चहेते ठेकेदार को वजीरगंज में सड़क निर्माण में 26 करोड़ का अवैध भुगतान करवाया। यह भुगतान पाकुड़ (झारखंड) से स्टोन चिप्स को गया लाने के लिए परिवहन खर्च के लिए किया गया। सिन्हा का आरोप है कि बिहार सरकार ने पाकुड़ के जिला खनन अधिकारी से जांच कराई तो पता चला उनके जिला से स्टोन चिप्स गया ही नहीं। यह उसी तरह का आरोप है जब तेजस्वी के पिता लालू प्रसाद के मुख्य मंत्री रहते स्कूटर और मोटर साइकिल पर कई टन चारा ढोया गया था।
लोक निर्माण विभाग में बीजेपी के भी मंत्री पूर्व में रहे हैं,लेकिन विभाग के अधिकारियों ने पहले यह रहस्य उद्घाटन नहीं किया। अब सिन्हा बीजेपी कोटा के मंत्री है। लालू जी द्वारा किया गया चारा घोटाले की जांच उच्च न्यायालय के हस्तक्षेप के कारण संभव हो पाया था।
बिहार के मंत्रियों द्वारा भ्रष्ट आचरण कोई नई बात नहीं है। 1967 में प्रथम गैर कांग्रेसी सरकार के मुख्यमंत्री महामाया प्रसाद सिन्हा ने कांग्रेस के मुख्यमंत्री कृष्ण वल्लभ सहाय और उनके कैबिनेट के सदस्यों जिसमें रामलखन सिंह यादव (लोक निर्माण मंत्री), सत्येंद्र नारायण सिंह, राघवेंद्र नारायण सिंह, अंबिका शरण सिंह के खिलाफ जांच के लिए अवकाश प्राप्त न्यायधीश पीएल वेंकटरामन अय्यर की अध्यक्षता में आयोग गठन किया।
उस वक्त आरोप छोटे थे कि लोक निर्माण मंत्री ने एक ठेकेदार को डेढ़ लाख रुपए का फायदा पहुंचाया। सिंचाई मंत्री ने एक ठेकेदार से पचास हजार घूस लिए। एक मंत्री ने अपने पद का दुरुपयोग करते हुए नगर निगम क्षेत्र में एक दुकान सौदा फाउंटेन अलॉट करवाया। एक मंत्री पर विभाग में अभियंताओं के ट्रांसफर पोस्टिंग में जातिवादी करने का आरोप था।
आयोग में पैरवी के लिए मुंबई से प्रसिद्ध वकील पीपी खंबाटा आते थे। आयोग की बैठक अभी मुख्यमंत्री आवास के समीप 6,सर्कुलर रोड में होती और निगरानी विभाग भी समीप हिज 6 स्ट्रैंड रोड में था। आयोग ने अपनी रिपोर्ट में मंत्रियों को दोषी पाया। सरकार ने आयोग की रिपोर्ट पर कार्रवाई के लिए एक वरिष्ठ भारतीय सेवा अधिकारी एनएम पटनायक को नियुक्त किया था।
इसी बीच महामाया बाबू की सरकार बिंदेश्वरी प्रसाद मंडल ने कांग्रेस के सहयोग से गिरा दी। फिर महामाया बाबू,उनके उपमुख्य मंत्री कर्पूरी ठाकुर, रामगढ़ के राजा कामाख्या नारायण सिंह,उनके भाई बसंत नारायण सिंह (सभी मंत्री) के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच के लिए नागपुर उच्च न्यायालय के अवकाश प्राप्त न्यायधीश जगदीश आर मुधोलकर की अध्यक्षता में जांच आयोग गठित किए। इसकी रिपोर्ट सितंबर 1970 में पेश की गई।
अगले साल फिर सरकार बदली,और दोनों आयोग की जांच रिपोर्ट कूदे दान में चली गई। दोनों आयोग द्वारा दोषी पाए गए मंत्री बाद में फिर मंत्री बने,लोक सभा के लिए चुने गए, केंद्र में भी मंत्री बने।
विजय कुमार सिन्हा भी तेजस्वी प्रसाद यादव के खिलाफ लगे आरोप को लॉजिकल एंड तक नहीं पहुंचा पाएंगे। मुख्यमंत्री शायद जांच के लिए भी नहीं तैयार हों। तेजस्वी नीतीश कुमार के भी उपमुख्य मंत्री रहे हैं। और विधान सभा में उन्होंने तेजस्वी को अपना उत्तराधिकारी भी घोषित किया था।