कदम कुआं, जहां जयप्रकाश नारायण का आवास महिला चरखा समिति है, के कुछ ही दूरी पर एक दो-मंजिला मकान में पटना नागरिक बैंक की स्थापना 50 साल पहले की गई थी। इसके पहले और अंतिम अध्यक्ष कांग्रेस के विधान सभा सदस्य नवल किशोर सिन्हा चुने गए। बैंक के प्रमोटर्स में मुख्यमंत्री डॉ. जगन्नाथ मिश्र और उनके राजनीतिक सचिव श्री जीवानंद झा भी शामिल थे।
बैंक प्रारंभ से ही विवादों में रहा। विधान सभा की प्राक्कलन समिति ने अपनी वार्षिक रिपोर्ट, जो सभा पटल पर रखी गई और सभी सदस्यों व पत्रकारों के बीच वितरित हुई, में सनसनीखेज खुलासा किया। इसमें कई अनुलग्नक भी थे।
लोन के लिए गांधी मैदान, पटना जंक्शन और प्लेटफॉर्म रख दिए गए गिरवी
समिति ने इस बात के सबूत पाए कि बैंक में भारी अनियमितताएं थीं, आर्थिक प्रबंधन का उल्लंघन हुआ था। बैंक ने कई बनावटी लोगों को लोन दिए, जो वास्तव में मौजूद ही नहीं थे, और यदि थे भी, तो बैंक के सदस्य नहीं थे। कई लोगों ने पटना के मध्य स्थित विशाल गांधी मैदान को गिरवी रखा, तो कुछ ने पटना रेलवे स्टेशन को। एक लाभुक ने तो प्लेटफार्म नंबर एक को ही बंधक रखकर लोन लिया।
मैंने द सर्चलाइट (The Searchlight) में प्रथम पृष्ठ पर रिपोर्ट प्रकाशित की, जिसमें जनता की सार्वजनिक संपत्तियों को गिरवी रखे जाने का खुलासा किया गया था। बिहार सचिवालय कर्मचारी संघ ने तत्कालीन गृहमंत्री चौधरी चरण सिंह को मेमोरेंडम देकर जांच की मांग की। उस समय डॉ. जगन्नाथ मिश्र मुख्यमंत्री थे और उनके करीबी नवल किशोर सिन्हा बैंक के अध्यक्ष।
जांच शुरू हुई तो पटना सेंट्रल बैंक की शाखा से कुछ पे-इन स्लिप मिले, जिनसे पता चला कि पटना अर्बन बैंक से विभिन्न दिनों में इनके बचत खातों में पैसे जमा किए गए।
सरकारी हस्तक्षेप और केस वापसी का प्रयास
बाद में जनता सरकार का पतन हो गया और डॉ. जगन्नाथ मिश्र 1980 में फिर से मुख्यमंत्री बन गए। 10 जून 1980 को मंत्रीमंडल ने निर्णय लिया कि पटना अर्बन बैंक मामले की सुनवाई, जो पटना के मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी के यहां चल रही थी, वापस ली जाए। इसके लिए सरकारी वकील लल्लन प्रसाद सिन्हा ने केस विथड्रॉ करने का आवेदन दिया, जिसे सीजेएम ने स्वीकार कर लिया।
शिवनंदन पासवान, जो एक प्रशासनिक अधिकारी और विधानसभा के उपाध्यक्ष भी थे, ने कर्पूरी ठाकुर के निर्देश पर पटना उच्च न्यायालय में सीजेएण के आदेश को चुनौती दी। यहां उनकी जीत हुई और सीजएम के आदेश को गलत ठहराया गया।
इस बीच, दिल्ली में कांग्रेस की सरकार आ गई थी। जस्टिस बहरुल इस्लाम की बेंच ने पटना उच्च न्यायालय के फैसले को पलट दिया और डॉ. जगन्नाथ मिश्र को आरोपों से मुक्त कर दिया।
सतर्कता पुलिस की कार्रवाई और सजा
इसके बाद, बिहार सरकार की सतर्कता पुलिस ने पटना की अदालत में सात लोगों पर मुकदमा दायर किया। सतर्कता पुलिस के आरक्षी महानिदेशक एस. के. चटर्जी ने खुद मामले की निगरानी की। नवल किशोर सिन्हा, जो कांग्रेस के विधायक थे, को गिरफ्तार कर जीप में थाने लाया गया। बैंक के सचिव, मैनेजर, लोन अधिकारी और दो बेनामी सदस्य भी गिरफ्तार हुए। सभी को 1986 में भारतीय दंड संहिता और भ्रष्टाचार निरोधक कानून के तहत सजा सुनाई गई।
इसके बाद बैंक में लिक्विडेशन की प्रक्रिया शुरू हुई। रिजर्व बैंक ने 1974 में जारी बैंक का लाइसेंस रद्द कर दिया। बिहार में रजिस्ट्रार ऑफ कोऑपरेटिव सोसाइटीज, टी. नंद कुमार (जो बाद में भारत सरकार में सचिव बनकर रिटायर हुए) को बैंक का लिक्विडेटर नियुक्त किया गया। तब से लेकर आज तक यह बैंक बंद है।