राज की बातः बिहार- जहां पहाड़ भी बेचे जा रहे, भूमि से जुड़े विवादों में देश में सबसे आगे

बिहार, पूरे देश में भूमि विवाद से जुड़ी हत्याओं के मामलों में शीर्ष पर है। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के अनुसार, भूमि विवाद के कारण 815 लोगों की हत्या हुई।

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पिछले सप्ताह बिहार में भूमि विवाद से जुड़ी कई विचित्र घटनाएं सामने आईं। भागलपुर में पर्यटक स्थल के रूप में प्रसिद्ध मुरली पहाड़ी, जो कि सरकारी संपत्ति है, एक स्थानीय नागरिक शमशुल खान के नाम पर निबंधित पाई गई। बेगूसराय में स्थानीय न्यायालय ने 108 साल पुराने भूमि विवाद का निपटारा किया, जबकि भोजपुर में 66 वर्षों से लंबित जमीन के विवाद पर कोर्ट ने फैसला सुनाया।

बिहार, पूरे देश में भूमि विवाद से जुड़ी हत्याओं के मामलों में शीर्ष पर है। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के अनुसार, भूमि विवाद के कारण 815 लोगों की हत्या हुई। इन आंकड़ों के अनुसार, भूमि विवाद से जुड़े अपराधों की कुल 3,363 घटनाएं हुईं, जबकि महाराष्ट्र इस मामले में दूसरे स्थान पर है जहां 1,259 मामले दर्ज हुए। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार स्वयं स्वीकार कर चुके हैं कि बिहार में पुलिस द्वारा दर्ज किए गए कुल अपराधों में से 60 प्रतिशत भूमि विवाद से संबंधित होते हैं।

न्यायालयों में 20 हजार से अधिक मामले विचाराधीन

बिहार में भूमि विवाद से संबंधित मुकदमों की संख्या हजारों में है। इनमें से कई मामले बिहार भूमि विवाद निवारण अधिनियम के अंतर्गत आते हैं। जिला स्तर पर राजस्व कोर्ट, सब-जज कोर्ट, प्रमंडलीय आयुक्तों के न्यायालय, राज्य स्तरीय भूमि विवाद निवारण ट्रिब्यूनल और उच्च न्यायालय में करीब 20,000 से अधिक मामले विचाराधीन हैं।

पटना के कंकड़बाग कॉलोनी में बिहार राज्य विद्युत बोर्ड के अध्यक्ष जब निरीक्षण के लिए पहुंचे, तो उन्हें बताया गया कि वह जमीन अब सरकार की नहीं, बल्कि एक स्थानीय भूमि माफिया के नाम पर दर्ज है।
जांच के बाद जिला प्रशासन ने पाया कि राजस्व कर्मियों और सर्किल अधिकारियों ने अवैध रूप से पैसे लेकर विद्युत बोर्ड की जमीन भी बेच दी थी। बाद में तीन कर्मियों को गिरफ्तार किया गया।

भागलपुर के जिलाधिकारी नवल किशोर चौधरी को राज्य सरकार ने निर्देश दिया कि सुल्तानगंज में गंगा नदी के किनारे स्थित प्राचीन मुरली पहाड़ी को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित किया जाए। यह स्थान हर वर्ष श्रावण महीने में लाखों यात्रियों का केंद्र होता है। दो दिन पहले जब जिलाधिकारी वहां पहुंचे, तो आंचल अधिकारी रवि कुमार ने बताया कि यह पहाड़ी तो 2012 में ही शमशुल खान को बेच दी गई थी। कलेक्टर द्वारा दस्तावेजों की जांच में सामने आया कि तत्कालीन आंचल अधिकारी ने शमशुल खान को मालिकाना अधिकार और दाखिल-खारिज भी दे दिया था। अब उस अधिकारी की तलाश की जा रही है जिसने आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया द्वारा संरक्षित पहाड़ को अवैध रूप से बेच दिया।

भोजपुर जिले के इकोना गांव के निवासी विशेष्वर सिंह ने 21 अप्रैल 1947 को आरा न्यायालय में अपने पाटीदार के खिलाफ गंगा नदी के किनारे स्थित जमीन पर कब्जे को लेकर मुकदमा दायर किया था।
इस मामले में फैसला 68 साल बाद निचली अदालत ने सुनाया। विशेष्वर सिंह ने वकीलों पर लगभग 20 लाख रुपये खर्च किए। फैसला जीतने के बाद भी वे दुखी हैं- "अब कौन खरीदेगा यह जमीन? गंगा की धारा बदल गई है, अब केवल थोड़ी सी जमीन ही बची है जो नदी के बाहर है।"

नौ धुर जमीन के विवाद में नौ बीघा जमीन बिक गई

बेगूसराय के बरियारपुर चरैया गांव में नौ धुर जमीन के विवाद में नौ बीघा जमीन बिक गई। 108 साल बाद निचली अदालत का फैसला आया। जिसने केस दायर किया था, उसकी तीसरी पीढ़ी ने कहा,"प्रतिष्ठा की लड़ाई में नौ बीघा जमीन बिक गई, कोई बात नहीं।"

राजधानी पटना में वर्ष 1913 में अधिकारियों की कोठियों के लिए ज़मीन का अधिग्रहण हुआ था। जिस बंगले – 32 हार्डिंग रोड – में अभी राज्य निर्वाचन आयोग का कार्यालय है, उस ज़मीन के पुराने मालिक, जो एक किसान थे, ने अधिग्रहण के बाद मुआवज़े की मांग की थी। यह मामला निचली अदालतों से होते हुए पटना हाईकोर्ट के न्यायाधीश जे. एन. सिंह के समक्ष पहुँचा। 94 साल बाद फैसला आया, जिसमें मालिक की तीसरी पीढ़ी को 'जी-बैक हार्डिंग रोड' कहे जाने वाले क्षेत्र की ढाई कट्ठा ज़मीन का मालिक घोषित किया गया। अब वे वहीं आराम से रह रहे हैं। 1913 की दर पर मिली क्षतिपूर्ति नगण्य थी।

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