सड़क जोड़ रही है सुदूर देहात को किसी कस्बे से! ये सारी सड़कें किसी न किसी विधानसभा क्षेत्र की ही तो है, जो जोड़ देती है देहात को राजधानी पटना से! चुनाव से पहले बिहार का हर विधानसभा कुछ न कुछ करने को बेताब है, वो चाहे दिन हो या फिर रात! ये दावेदारी का वक्त है, ये उम्मीदवारों के उम्मीद का वक्त है! इन्हीं सब दावेदारियों को समझने-बूझने हम इन दिनों बिहार के अलग अलग विधानसभा क्षेत्रों में बतकही कर रहे हैं, समाज को समझने की कोशिश कर रहे हैं।
यह आम का महीना भी है, आम तो फलों को राजा है ही। आम की बात चली तो बताते चलें कि पिछले कुछ वर्षों से मधुबनी जिला स्थित सरिसब पाही गांव में एक अनोखा आम महोत्सव होता आ रहा है। आम की बात चली तो ग़ालिब की भी एक बात याद आ गई। कहते हैं कि एक दफे किसी ने ग़ालिब से पूछा था कि आपको कौन से आम पसंद हैं। उन्होंवे जवाब दिया था- “आम में दो ही गुण होने चाहिए- एक मीठे होने चाहिए, और दो, बहुत सारे होने चाहिए।“
सरिसब पाही का आम महोत्सव
ग़ालिब के अंदाज में कहें तो सरिसब पाही में आयोजित इस महोत्सव में ऐसे ही बहुत सारे आम हमें देखने को मिलते हैं। हाल ही में आयोजित इस महोत्सव में आम की 100 से अधिक प्रजातियां प्रदर्शित की गई थी। फिर हर साल की भांति शाम में आम खाने की प्रतियोगिता भी हुई। लोगों ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया और फिर उनमें से कुछ खबरों का हिस्सा बन गए और कुछ तो सोशल मीडिया में वायरल हो गए।
इस आम महोत्सव की सबसे बड़ी खासियत है कि यह समाज का उत्सव है, किसी एक व्यक्ति या किसी संस्था का नहीं। इस अनोखे उत्सव के पीछे वरिष्ठ पत्रकार मदन झा हैं लेकिन वे खुद को पोस्टर- प्रचार आदि से कोसों दूर रखते हैं। आज के दौर में जब सार्वजनिक से लेकर निजी आयोजन तक में लोग अपने नाम और तस्वीर को पोस्टर और बैनर में छाप कर अपना ही प्रचार करते रहते हैं, ठीक उसी दौर में सरिसब पाही का आम महोत्सव समाज की हिस्सेदारी का पाठ पढ़ा रहा है। फल की दुनिया से रूबरू करा रहा है! आम के समाजशास्त्र को विस्तार से बता रहा है।
सरिसब पाही गांव का ज़िक्र बड़े कैनवास पर होना चाहिए। व्यक्तिगत तौर पर सरिसब पाही गांव का मतलब मेरे लिए अच्छी मिठाई और कमाल के गप्प के शौकीन लोग हैं। इस गांव में ऐसा बहुत कुछ है, जिसे हर गांव को समझना-बूझना होगा। यहां की एक मिठाई है- रामभोग। अद्भूत है इसका स्वाद।
रिटायरमेंट के बाद शहर के लोगों का यहां फिर से बस जाना, मेरे जैसे लोगों के लिए 'मोरल बुस्टिंग टॉनिक' की तरह है। यही वजह है कि एक किसान के तौर पर जब भी मैं पलायन के संकट से जूझता हूं तब सरिसब पाही का ज़िक्र करता हूं।
सरिसब पाही गांव में साहित्य चर्चा
सरिसब पाही जैसे गांव में साहित्य चर्चा के लिए बैठकी करना, इस 'बाजार युग' में अजूबे से कम नहीं। साहित्यकी नाम की संस्था इस ग्रामीण इलाक़े में सक्रिय है। यह संस्था साहित्य विषय पर बैठक आयोजित करती है, किताबें प्रकाशित करती है। केवल संस्था ही नहीं, इस इलाके में पुस्तकालय संस्कृति भी जीवित है। इस ग्रामीण अंचल में कई सार्वजनिक पुस्तकालय हैं, जो बिना किसी सरकारी सहयोग के चल रहे हैं।
आम के बगीचे से भरा यह इलाका हर किसी को अपनी ओर खींच लेता है। इस गांव के गौरवशाली इतिहास में डूबने के बदले वर्तमान को समझने की कोशिश करता हूं। यह मधुबनी विधानसभा क्षेत्र में आता है।
आज के दौर में गांव में शहरी सुविधा पहुंच चुकी है। लेकिन इन सुविधाओं के संग गांव भी बदल भी रहा है। बदलाव के इस समाजशास्त्रीय पहलू को समझने की जरूरत है। माइग्रेशन केवल गांव से शहर की तरफ नहीं होता, एक खास आयु वर्ग का शहर से गांव की ओर भी होता है।
सरिसब पाही और आसपास के कई गांव में हमें यह देखने को मिला। इन बुजुर्ग लोगों की जरूरतों की पूर्ति के लिए गांव का शहर हो जाना अपने आप में खबर है।
100 साल पुराने स्कूल में सामूहिक छात्रवृति योजना
इस गांव को आम महोत्सव के संग तो हमने याद किया ही, सामूहिक छात्रवृति के लिए भी सरिसब पाही को याद करना चाहिए। यहां के 100 साल पुराने एक स्कूल लक्ष्मीश्वर एकेडमी के पूर्ववर्ती छात्रों के परिजन पिछले एक दशक से छात्रवृति योजना चला रहे हैं। हर साल इस स्कूल से 10वीं और 12वीं की परीक्षा के टॉपर बच्चों को 10 -10 हजार रुपये की छात्रवृति दी जाती है। इस बार 11 छात्र-छात्राओं को यह छात्रवृति मिली है।
बिहार के किसी भी सरकारी स्कूल में उसके पूर्ववर्ती छात्रों के वंशजों की ओर से ऐसी पहल करने वाला यह शायद पहला गांव होगा।
इस तरह के ग्रामीण इलाके हम जैसे किसानी कर रहे लोगों के लिए खास होते जा रहे हैं। हम सभी को ऐसे सुंदर-सुंदर गाँव की बातें करनी होगी। गाँव को देखने का नज़रिया अब हमें बदलना होगा क्योंकि 'शौक़-ए-दीदार अगर है तो नज़र पैदा कर।'